नैनीताल। शीशमहल काठगोदाम में 11 वर्ष पूर्व 7 वर्षीय मासूम के साथ दरिंदगी के बाद हुई नृशंस हत्या के आरोपी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किये जाने पर जनता में व्याप्त जनाक्रोश को देखते हुए राज्य सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है । इस क्रम में शासन व पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर नैनीताल पुलिस ने आवश्यक कार्यवाही शुरू कर दी है ।
शासन द्वारा मांगी गई आख्या के क्रम में एस एस पी नैनीताल ने थानाध्यक्ष काठगोदाम,एस पी हल्द्वानी व डी जी सी क्राइम से रिपोर्ट देने को कहा था । इस सम्बंध में थानाध्यक्ष काठगोदाम द्वारा यह रिपोर्ट एस एस पी, को दे दी है ।
थानाध्यक्ष की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि थाना काठगोदाम में दर्ज इस मामले में विवेचना के उपरान्त अभियुक्त अख्तर अली, प्रेमपाल वर्मा एवं जूनियर मसीह के विरुद्ध 26 जनवरी 2015 को आरोपपत्र न्यायालय प्रेषित किया गया था। पोक्सो न्यायालय द्वारा अभियुक्त अख्तर अली को मृत्यु दण्ड एवं अन्य धाराओं में कठोर सजा सुनाई गई थी, जबकि प्रेमपाल वर्मा को अधिकतम सात वर्ष का कारावास दिया गया था। तीसरे अभियुक्त जूनियर मसीह को साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय, नैनीताल ने भी निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था। किन्तु अभियुक्तों की अपील पर मा० उच्चतम न्यायालय ने 10 सितम्बर 2025 को दोनों अभियुक्तों को बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की ओर से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ियों को जोड़ने में गंभीर कमी, प्रमुख गवाह निखिल चन्द को न्यायालय में पेश न करना, घटनास्थल से खून के धब्बों की बरामदगी न होना, बरामद हेयरबैंड व प्राथमिकी के बीच विरोधाभास, तथा डीएनए रिपोर्ट में केवल एक अभियुक्त का मिलना जैसे बिंदुओं पर संदेह जताते हुए अभियुक्तों को दोषमुक्त किया।
पत्र में यह भी कहा गया है कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत कई महत्वपूर्ण साक्ष्य — जैसे डीएनए रिपोर्ट, सीसीटीवी फुटेज, कॉल डिटेल रिकॉर्ड तथा अभियुक्तों का घटनास्थल से फरार होना को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया। इसके अतिरिक्त, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 8 (नवीन अधिनियम 2023 की धारा 6) के आलोक में अभियुक्तों का भाग जाना उनके अपराधोपरान्त आचरण को दर्शाता है, जिसे न्यायालय ने पर्याप्त तवज्जो नहीं दी।
पत्र में स्पष्ट राय व्यक्त की गई है कि इस गंभीर प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के निर्णय 10 सितम्बर 2025 के विरुद्ध पुनर्विलोकन याचिका दायर की जानी चाहिए।


