नैनीताल। किसी के मर जाने से अगर रिश्ते खत्म हो जाते तो यह दुनिया रिश्तों की दुविधा में जी नहीं रही होती… इस संवाद ने आज नैनीताल के दर्शकों की आंखें नम कर दीं। मौका था अनुकृति रंगमंडल कानपुर द्वारा शैले हॉल नैनीताल क्लब में आयोजित नाट्य समारोह में नाटक संबोधन के मंचन का।
नाटक में दिखाया गया कि मानवीय रिश्तों का महज संबोधन में बंध जाना दुर्भाग्य है। संबोधन सिर्फ पुकार नहीं वरन ह्रदय के अंतस से जुड़ी भावना है, जिसके लिए मनुष्य अपना जीवन समर्पित करता है।
बीस वर्ष की एक बेटी अपने पिता को न सिर्फ तलाशती है बल्कि उसके मन में झांकना भी चाहती हैं कि ऐसी क्या वजह रही होगी जिसके चलते बीस वर्ष पहले उसके पिता ने उसकी माँ को छोड़ दिया था। पिता से किये सवालों में वह उन जवाबों को पा जाती है जिसे उसकी माँ सारे संबोधनों में जीवन भर तलाशती रही थी।
शुभी मेहरोत्रा ने पत्नी श्रृद्धा, आरती शुक्ला बेटी श्रुति और दीपक राज राही ने पति व पिता राजेश्वर की भूमिका बखूबी निभायी।
*लेखक सुनील राज के इस नाटक का निर्देशन डा. ओमेन्द्र कुमार ने किया।*
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*निशब्द ने जगायीं मानवीय संवेदनाएं*
“सोशल मीडिया पर संवेदनाओं का मैं क्या करूं, मुझे पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए चार कंधे चाहिए … सिर्फ चार कंधे …” आज की दूसरी नाट्य प्रस्तुति निशब्द का यह संवाद मानवीय संवेदनाएं जगाने में सफल रहा।
नाटक में अजय साहनी (शैलेन्द्र अग्रवाल)और गार्गी (आरती शुक्ला) दिल्ली -एनसीआर के एक अपार्टमेंट में रहते हैं। अजय साहनी को रिटायर हुए करीब दस साल हो चुके हैं। उनकी लड़की कुक्कू (संध्या सिंह) अपने पति के साथ बेंगलुरू में रहती है। जबकि लड़का नकुल (शिवेन्द्र त्रिवेदी) यू.एस. के किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता है।
अजय और गार्गी प्राइवेट हॉस्पिटल से कोरोना का पहला डोज़ लगवा कर अपने घर आते हैं । अजय को थोड़ा बुखार महसूस होता है। गार्गी कोरोना टेस्ट कराने को कहती है। नकुल टेस्ट के लिए ऑनलाइन बुकिंग कर देता है। टेस्ट रिजल्ट में अजय नेगेटिव जबकि गार्गी पॉजिटिव निकलती हैं।
एहतियातन गार्गी अपने को एक कमरे में क़वारन्टीन कर लेती है। रसोई का जिम्मा अब अजय साहनी पर आ जाता है। गार्गी से बात करने के दौरान अजय महसूस करता है कि उसे सांसें लेने में परेशानी हो रही है ।ऑक्सिमेटर से जांचने पर गार्गी का ऑक्सीजन लेवल काफी कम मिलता है । नकुल ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए काफी प्रयास करता है लेकिन कहीं नहीं मिलता।
कुक्कू के प्रयास से किसी एनजीओ के माध्यम से आखिर सिलेंडर मिलता तो है मगर कितने दिन चलता। सिलेंडर खत्म होते ही गार्गी की तबीयत बिगड़ने लगती है।
अजय और नकुल सारे हॉस्पिटल छान मारते हैं, मगर कहीं भी एक बेड नहीं मिलता।
आखिरकार गार्गी का निधन हो जाता है। श्मशान घाट में रजिस्ट्रेशन के लिए लंबी कतार लगी है । तीन दिन बाद भी नगर निगम वाले शव ले जाने की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं।दिल को हिला कर रख देने वाली परिस्थितियों के बीच नाटक का पटाक्षेप होता है।
मुख्य भूमिकाओं में शैलेन्द्र अग्रवाल, आरती शुक्ला, संध्या सिंह, शिवेन्द्र त्रिवेदी, दिलीप सिंह सेंगर ने जीवंत अभिनय किया। मंच परे दीपिका सिंह, महेश जायसवाल, विजय भास्कर (संगीत) का योगदान था। लेखक राजेश कुमार के नाटक का निर्देशन एवं प्रकाश संचालन कृष्णा सक्सेना ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ रंगकर्मी जहूर आलम, मोहित सनवाल, नवीन बेगाना, नरेन्द्र सिंह, मिथलेश पांडेय, अनुकृति कानपुर की जौली घोष, सुरेश श्रीवास्तव, विजयभान सिंह मौजूद रहे।