…अब तदर्थ सेवा में दी गई वेतनबृद्धियों से गड़बड़ी की आशंका –
नैनीताल – विधानसभा में हुई तदर्थ नियुक्तियों को लेकर मचे बबाल के बाद अब उत्तराखंड के तमाम विभागों के कार्यरत एवं सेवानिवृत्त कार्मिकों को उनके तदर्थ सेवाकाल में दी गयी वेतनबृद्धियों को लेकर गम्भीर सवाल उठ गया है । कोषागार अल्मोड़ा द्वारा सेवानिवृत्त सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी रमेश चंद्र पाण्डे के पेंशन प्रकरण में लगाई गयी आपत्ति के परिपालन में डिस्ट्रिक्ट आडिट आफिसर द्वारा
किये गये वेतन निर्धारण में उनके तदर्थ सेवाकाल में दी गयी चार वेतनबृद्धियों को विलुप्त कर दिये जाने से यह सवाल उठा है । रिटायरमेंट के आठ माह बाद हुए वेतन निर्धारण आदेश में चार वार्षिक वेतनबृद्धियों को विलुप्त किये जाने से आहत श्री पाण्डे ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में ऐसा गम्भीर सवाल उठाया है जिससे राज्य में पेंशन भुगतान में वित्तीय गड़बड़ी एवं करोड़ों के अधिक भुगतान की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है ।
श्री पाण्डे के अनुसार राज्य में सरकारी कार्मिकों की पेंशन की स्वीकृति के लिए निदेशालय कोषागार तथा पेंशन एवं हकदारी अधिकृत हैं जबकि स्थानीय निकाय के कार्मिकों की पेंशन के लिए आडिट निदेशालय अधिकृत हैं । उन्होंने दावा किया कि कोषागार अल्मोड़ा द्वारा तदर्थ सेवा में दी गई वेतनबृद्धियों को लेकर जो आपत्ति उठाई गयी है ऐसी आपत्ति उत्तराखंड में अब तक और किसी के स्तर से नहीं लगाई गयी है । ऐसे मे यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि आखिर कौन सही है?..और कौन गलत ?
श्री पाण्डे ने कहा कि कोषागार अल्मोड़ा के पत्र दिनांक 15 सितम्बर 2022 तथा एसीपी से सम्बन्धित 9मार्च 2019 को जारी शासनादेश का हवाला देते हुए उनके वेतन निर्धारण में तदर्थ सेवा अवधि (अप्रैल 1984 से सितम्बर 1990 तक )में दी गई वेतनबृद्धियों को विलुप्त करते हुए नियमितीकरण की तिथि 12 अक्टूबर 1990 को न्यूनतम वेतन पर वेतन निर्धारित कर दिया गया है लेकिन उक्त शासनादेश जारी होने के बाद से अब तक रिटायर हुए सैकड़ों कार्मिकों में से किसी की भी तदर्थ सेवा की वेतनवद्धियों में किसी भी स्तर से कटौती नहीं हुई । ऐसे में ये साफ है कि यदि ट्रेज़री अल्मोड़ा सही है तो अन्य के स्तर से स्वीकृत पेंशन प्रकरणों में वित्तीय गड़बड़ी के साथ ही करोड़ों का अधिक भुगतान हुआ है ।