*14 दिसंबर 2024 दिन शनिवार को सिद्धि योग में मनाई जाएगी इस बार दत्तात्रेय जयंती। दत्तात्रेय जन्म की रोचक कथा पढ़ें इस आलेख में।*


हमारे सनातन धर्म उपासना एवं सन्यास धर्म में दत्तात्रेय भगवान का विशेष महत्व है। इन सब के अतिरिक्त इस दिन
सन्यासियों के अखाड़ों में विशेष आध्यात्मिक प्रवचन भी चलते हैं जिससे आराधना और
साधना से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। महा योगेश्वर दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अवतार हैं।
इनका अवतरण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था अतः इस दिन समारोह पूर्वक दत्तात्रेय जयंती का उत्सव मनाया जाता है। श्रीमद्भागवत में लिखा है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्रि के व्रत करने पर- *”दत्तोमयाहमिति यद् भगवान सः दत्तः”* मैंने
अपने आप को तुम्हें दे दिया है विष्णु के ऐसा
कहने से भगवान विष्णु ही अत्रि के पुत्र रूप में
अवतरित हुए और दत्त कहलाये। अत्रि पुत्र होने
से यह आत्रेय कहलाए। दत्त और आत्रेय के
सहयोग से इनका नाम दत्तात्रेय प्रसिद्ध हो
गया। उनकी माता का नाम अनसूया है। उनका
पतिव्रता धर्म संसार में प्रसिद्ध है। पुराणों में यह
कथा भी आती है कि एक बार ब्रह्मणी रुद्राणी
और लक्ष्मी को अर्थात माता सरस्वती, माता
पार्वती ,एवं माता लक्ष्मी को अपने पतिव्रत धर्म
पर गर्व हो गया भगवान को अपने भक्तों का अभिमान सहन नहीं होता है तब उन्होंने एक
अद्भुत करने की सोची। भक्तवत्सल भगवान ने
देवर्षि नारद के मन में प्रेरणा उत्पन्न की। नारद
जी घूमते घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों के पास बारी-बारी से जाकर कहा पति-
पत्नी अनसूया के समक्ष आपका सतीत्व नगण्य है। तीनों देवियों ने अपने स्वामियों अर्थात ब्रह्मा विष्णु एवं महेेश से देवर्षि नारद की कही हुई यह बात बताई और उनसे
अनुसुइया की पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने को
कहा देवताओं ने बहुत समझाया परंतु उनके
हट के सामने देवताओं की एक न चली। अंतत:
साधु वेश बनाकर तीनों देव अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे अतिथियों को आया हुआ देख देवी अनुसूया ने उन्हें प्रणाम कर और कंदमूल आदिअर्पित किए किंतु वह बोले हम लोग तब तक आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे जब तक आप हमें अपनी गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराती।यह बात सुनकर सर्वप्रथम तो देवीअनुसूया
अवाक रह गई किंतु अतिथि धर्म की महिमा का लोप ना हो इस दृष्टि से उन्होंने नारायण का
ध्यान किया। अपने पतिदेव का स्मरण किया
और इसे भगवान की लीला समझकर वह बोली यदि मेरा पतिव्रता धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु 6-6 माह के शिशु हो जाए इतना कहना ही था कि तीनों देव छह छह माह के शिशु बन गए। और रूदन करने लगे। तब माता ने उन्हें गोद में लेकर दुग्ध पान कराया। फिर पालने में झूलाने लगी। ऐसे ही कुछ समय
व्यतीत हो गया। जब यह तीनों देव बहुत समय
तक वापस नहीं आए तब तीनो देवियों को अर्थात मां सरस्वती मां पार्वती एवं मां लक्ष्मी को बड़ी चिंता होने लगी। फलत: नारद जी वहां आए और उन्होंने सारा वृत्तांत कह सुनाया।तदुपरांत तीनों देवियां अनुसूया के पास आई और उन्होंने उनसे क्षमा मांगी। देवी अनुसया ने अपने पतिव्रता से तीनों देवों को पूर्व रूप में कर दिया। इस प्रकार प्रसन्न होकर तीनों देवों ने
अनुसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोली आप तीनों देव मुझे पुत्र रू्प में प्राप्त हो।तथास्तु कहकर तीनों देव और देवियां अपने लोक को चले गए। कुछ समय बाद यही तीनों देव अनुसूया के गर्भ से प्रकट हुए। ब्रह्मा केअंश से चंद्रमा शंकर के अंश से दुर्वासा तथा
विष्णु के अंश से दत्तात्रेय श्री विष्णु भगवान के
अवतार हैं और इन्हीं के आविर्भाव की तिथि
दत्तात्रेय जयंती कहलाती है।

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शुभ मुहूर्त-: इस बार सन 2024 में दिनांक 14 दिसंबर 2024 दिन शनिवार को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाएगी। इस दिन यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो 24 घड़ी 51 पल अर्थात शाम 4:59 से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो रोहिणी नक्षत्र 52 घड़ी 10 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 3:55 बजे तक है। सिद्धि योग प्रातः 8:26 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे।
आप सभी को दत्तात्रेय जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान दत्तात्रेय की कृपा आप और हम सभी पर बनी रहे किसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।
लेखक -: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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