नैनीताल । सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक युगांतरकारी फैसला सुनाते हुए देश में गिरफ्तारी संबंधी कानून की पूरी रूपरेखा बदल दी है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी व्यक्ति को लिखित में गिरफ्तारी के कारणों  की जानकारी दिए बिना की गई गिरफ्तारी और उसके बाद की रिमांड अवैधानिक और अंसवैधानिक होगी। इस ऐतिहासिक निर्णय को संविधान के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 की सुरक्षा में सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है।
 * कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण कानूनी सवालों का निपटारा करते हुए यह अनिवार्य कर दिया कि गिरफ्तारी के आधार हर मामले में — चाहे वह भारतीय न्याय संहिता (बी एन एस 2023) (पूर्व में आई पी सी) के तहत हो या किसी अन्य विशेष कानून के तहत—गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ की भाषा में और लिखित रूप में सूचित किए जाने चाहिए। न्यायालय ने साफ किया कि केवल मौखिक रूप से कारण बता देना अब पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि यह संवैधानिक जरूरत को पूरा नहीं करता है।
 * यह फैसला अनुच्छेद 22(1) के तहत मिले मौलिक अधिकार को मजबूत करता है, जो हर गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार देता है। पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के कारणों को बताना केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। इस नियम का पालन न होने पर हिरासत को अवैध माना जाएगा।
 * फैसले में असाधारण परिस्थितियों  के लिए भी सख्त समय सीमा तय की गई है। यदि किसी आपात स्थिति के कारण पुलिस तुरंत लिखित आधार नहीं दे पाती है, तो उन्हें किसी भी हालत में आरोपी को रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले लिखित कारण उपलब्ध कराने होंगे।
 * सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि रिमांड आदेश किसी भी अवैध गिरफ्तारी को वैध नहीं बना सकता। कोर्ट ने सभी मजिस्ट्रेटों को संवैधानिक प्रहरी की भूमिका निभाने का निर्देश दिया है। मजिस्ट्रेट का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह रिमांड का आदेश देने से पहले यह सुनिश्चित करे कि आरोपी को उसकी गिरफ्तारी के लिखित आधार सौंपे गए हैं।
 * यह ऐतिहासिक मामला मुंबई के मिहिर राजेश शाह से संबंधित था, जो जुलाई 2024 में एक घातक हिट-एंड-रन दुर्घटना के आरोपी थे। आरोपी ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने प्रक्रियात्मक त्रुटि (लिखित आधार न देना) को स्वीकार करते हुए भी गिरफ्तारी को वैध ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न पर फैसला करने के लिए लिया था।
 * कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को मानवाधिकारों की जीत बताया है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना है कि यह निर्णय पुलिस को मनमानी गिरफ्तारी करने से रोकेगा और जांच एजेंसियों को अधिक जवाबदेह बनाएगा। यह फैसला पीएमएलए  और यूएपीए  जैसे कड़े कानूनों के तहत होने वाली गिरफ्तारियों पर भी लागू होगा।
 * न्यायालय ने अपने फैसले में पिछली मिसालें जैसे पंकज बंसल बनाम भारत संघ और प्रबीर पुरकायस्था मामलों के फैसलों पर भरोसा जताया। यह दर्शाता है कि अदालत ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को समय-समय पर दोहराया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी की सूचना देने का तरीका अर्थपूर्ण होना चाहिए ताकि यह अपने उद्देश्य को पूरा कर सके।
 * यह फैसला भारत के लोकतंत्र और न्याय प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ता है। यह प्रत्येक नागरिक को राज्य की शक्तियों के विरुद्ध एक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति बिना ठोस लिखित कारण जाने अपनी आजादी से वंचित न हो सके। यह कानून के शासन को सर्वोच्चता प्रदान करने वाला एक मील का पत्थर साबित होगा।
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