आदेश-: कार्यरत शिक्षकों पर भी होगा असर ।

सुप्रीम कोर्ट ने अंजुमन इशाअत-ए-तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य (सिविल अपील संख्या 1385/2025) में एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाला निर्णय सुनाया है। न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि प्राथमिक से लेकर आठवीं कक्षा तक अध्यापक के पद पर नियुक्ति तथा पदोन्नति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टी ई टी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा। यह निर्णय न केवल नए आवेदकों पर बल्कि पहले से सेवा में कार्यरत शिक्षकों पर भी लागू होगा।

यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति मनमोहन की खण्डपीठ ने 1 सितम्बर को पारित किया है । 110 पेज का यह आदेश सोशियल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है ।

 

न्यायालय ने माना कि बिना किसी संक्रमण काल के सीधे-सीधे सभी पर टी ई टी की अनिवार्यता थोपना कठिनाइयाँ पैदा कर सकता है। इसलिए न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए सेवा में पहले से कार्यरत शिक्षकों को आंशिक राहत प्रदान की है।

जिन शिक्षकों की सेवा सेवानिवृत्ति में पाँच वर्ष से अधिक शेष है, उन्हें दो वर्ष के भीतर टी ई टी उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा।

जिन शिक्षकों की सेवा सेवानिवृत्ति में पाँच वर्ष से कम शेष है, वे अपने पद पर बने रहेंगे, परंतु उन्हें पदोन्नति का लाभ नहीं मिलेगा, जब तक वे टी ई टी पास नहीं करते।

 

पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आर टी ई) के अंतर्गत बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना राज्य और समाज दोनों की संवैधानिक जिम्मेदारी है। अध्यापकों की न्यूनतम योग्यता तय किए बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लक्ष्य अधूरा रहेगा। टी ई टी को इसी कारण से न्यूनतम पात्रता मानक के रूप में आवश्यक करार दिया गया है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी संकेत दिया कि पूर्व में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दी गई व्यापक छूट पर अब पुनर्विचार आवश्यक है। न्यायालय ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सभी संस्थानों पर समान न्यूनतम मानक लागू होना चाहिए।

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इस फैसले का असर देशभर के लाखों शिक्षकों पर पड़ने वाला है। विशेषकर वे शिक्षक जो लंबे समय से सेवा में हैं और जिन्होंने कभी टी ई टी परीक्षा नहीं दी है, उन्हें अब अगले दो वर्षों में परीक्षा पास करनी होगी। यदि वे इसमें असफल रहते हैं तो पदोन्नति से वंचित रहेंगे और आगे सेवा में बने रहने पर भी प्रश्न खड़े हो सकते हैं।

 

फैसले के बाद कई राज्य सरकारें हरकत में आ गई हैं। केरल समेत कुछ राज्यों ने इस निर्णय पर असहमति जताते हुए समीक्षा याचिका दाखिल करने की संभावना जताई है। वहीं कुछ राज्य विशेष टी ई टी आयोजित करने और शिक्षकों के लिए मार्गदर्शन शिविर लगाने पर विचार कर रहे हैं।
शिक्षक संगठनों ने भी मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ संगठनों का मानना है कि टी ई टी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएगा, जबकि अन्य इसे सेवा सुरक्षा और पदोन्नति अधिकारों पर संकट मान रहे हैं।

उत्तराखंड प्राथमिक शिक्षक संघ ने भी इस आदेश प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री व अन्य से हस्तक्षेप की मांग की है ।

उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संगठन की प्रांतीय सदस्य समिति के पदाधिकारी मनोज तिवारी ने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री एवं शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री सहित सभी उच्च स्तरों पर ज्ञापन भेज कर तत्काल समाधान की मांग की है।
श्री तिवारी ने कहा की न्यायालय में इस विषय पर सही पैरवी नहीं किए जाने के कारण यह स्थिति बनी है क्योंकि इस प्रकरण के सभी वैधानिक एवं व्यावहारिक पहलुओं को न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया क्योंकि वर्ष 2000 पूर्व से बेसिक शिक्षकों की नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता इंटरमीडिएट होती थी जबकि टेट हेतु न्यूनतम अर्हता स्नातक है, ऐसे में न्यायालय द्वारा टेट करने हेतु दी गई दो वर्ष की शिथिलता मैं इनके द्वारा टेट किया जाना संभव नहीं होगा इसी प्रकार पूर्व में नियुक्त  45% से कम अंक वाले स्नातक योग्यताधारी शिक्षक भी आज की तिथि में 2 वर्ष के भीतर तकनीकी रूप से टेट की अर्हता नहीं रखते हैं ।
क्योंकि टेट हेतु स्नातक में न्यूनतम 45% अंकों की बाध्यता रखी गई है, इसी प्रकार डीपीएड एवं बीपीएड योग्यता धारी शिक्षक तथा मृत्यु आश्रित कोटे के अंतर्गत नियुक्त प्रशिक्षित नानबीटीसी  शिक्षक भी पात्रता परीक्षा के लिए अहर्ता नहीं रखते हैं।
उन्होंने बताया की पूर्व में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय के क्रम में बीएड की डिग्री को बुनियादी शिक्षा हेतु वैध नहीं माना गया जबकि पूर्व में इन्हीं बीएड योग्यता धारीशिक्षकों को विशिष्ट बीटीसी के आधार पर सेवायोजित किया गया क्योंकि आज की तिथि में टेट करने हेतु योग्य नहीं है।
श्री तिवारी ने कहा की वर्तमान परिपेक्ष में इस आदेश के संवैधानिक पहलुओं से भी ज्यादा इसके व्यावहारिक पक्ष पर ध्यान दिया जाना आवश्यक होगा क्योंकि इस निर्णय के चलते कई यक्ष प्रश्न खड़े हो रहे हैं कि क्या यह नियम देश के पेंशन भोगियों पर भी प्रभाव डालेगा और इससे पूर्व वह समस्त पदधारी जो वर्तमान में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं । यदि उनके द्वारा ली गई डिग्री अथवा डिप्लोमा टेट योग्यताधारी शिक्षकों से प्रदान नहीं की गई तो क्या वह भी इस निर्णय से प्रभावित होंगे।
उन्होंने बताया कि संगठन इस विषय पर कानूनी प्रक्रिया सहित सभी  विकल्पों पर विचार कर रहा है।
आदेश के अंश-

 

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By admin

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