नैनीताल । 20 फरवरी 1856 को सर हेनरी रैम्जे कुमाऊं के छठे कमिश्नर बने और 1884 तक इस पद पर रहे । इससे पहले वे करीब 16 वर्ष तक कुमाऊं के सहायक आयुक्त भी रहे । उन्होंने 44 वर्षों तक विभिन्न पदों पर ब्रिटिश कुमाऊँ में कार्य किया।
आइए जानते हैं सर हैनरी रैम्जे के बारे में कुछ रोचक तथ्य-:
रैम्जे मूलतः : स्कॉटलैंड के निवासी और लॉर्ड डलहौली के चचेरे भाई थे। लुशिंगटन की बेटी से इनका विवाह हुआ था । ईसाई मत के वे बड़े प्रचारक थे।पहाड़ी भाषा भी बोल लेते थे एवं कृषकों के घर की मंडवे की रोटी भी खा लेते थे।
सम्पूर्ण कुमाऊँ में ‘रामजी साहब’ के नाम से लोकप्रिय हुए। अंग्रेज लेखकों ने तो उन्हें ‘कुमाऊँ का राजा’ की संज्ञा से भी विभूषित किया है।1884 ई0 में सेवानिवृत्त हुए और 1892 तक अल्मोड़ा में ही रहे। वे नवाबी तरीके से शासन करते थे। वे चार माह विन्सर, चार माह अल्मोड़ा तथा चार माह भावर में रहते थे। उनका सबसे प्रशसनीय कार्य तराई-भावर को आबाद करना था।उनके प्रयासों से इस क्षेत्र में मलेरिया का प्रकोप कम हुआ। सड़कों, नहरों एवं नगरों के विकास के साथ ही तराई-भावर में खेती का खूब विस्तार हुआ। लॉर्ड मेयो जब कुमाऊँ आए तो उन्होंने रैम्जे के तराई-भावर प्रबन्धन की खूब प्रंशसा की । 1857 के सैनिक विद्रोह के अवसर पर रैम्जे के अधीन यह क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत रहा। सैन्य विद्रोह की अवधि में विद्रोह के केन्द्र के इतने निकट होते हुए भी रैम्जे कुमाऊँ, टिहरी क्षेत्र में शान्ति बहाल रखने में सफल रहे। इसी कार्य के पुरस्कार स्वरूप वे अगले 26 वर्षों तक कुमाऊँ के निर्बाध शासक रहे । खाम स्टेट प्रबन्धन के माध्यम से रैम्जे को सफल वन प्रबन्धन का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने 1861 में हिमालय के तराई क्षेत्र के जंगलों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करवाई। वे 1868 तक कुमाऊँ कमिश्नर के साथ-साथ वन संरक्षक भी रहे ।