अश्विनी मास की पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा या शरद्पूर्णिमा कहते हैं। यह पूर्णिमा व्रत धन व
समृद्धि का आशीष देती है। हिंदू धर्म में इस दिन को जागरण व्रत रखा जाता है। इसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था।

मान्यता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का रिवाज है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत निकलता है।

कोजागिरी पूर्णिमा को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है यह व्रत लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने वाला माना जाता है। “कोजागिरी” एक शब्द नहीं अपितु एक संपूर्ण वाक्य है। एक प्रश्नवाचक वाक्य।यह 3 शब्दों से मिलकर बना है कोजागिरी का अर्थ है कौन जाग रहा है?
को जागि री (को+ जागि+री) यह
कुमाऊनी भाषा के 3 शब्दों के संयुक्त होने से बना वाक्य है।जिसका अर्थ होता है कि कौन
जाग रहा है? इस दिन मध्य रात्रि को माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करती है और कोजागिरी,
कोजागिरी पुकारती है। अर्थात मेरा कौन कौन भक्त जाग रहा है।माता लक्ष्मी के जो भक्त जागरण कर रहे होते हैं।
उन्हें माता लक्ष्मी अनेक प्रकार के धन-संपत्ति आदि प्रदान करती है और उन पर अपनी कृपा बरसाती है।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार दिनांक 16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार को कोजागिरी पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दिन यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो 35 घड़ी 59 पल अर्थात रात्रि 8:41 से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी और अगले दिन 26 घड़ी 36 पल अर्थात शाम 4:56 बजे तक रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन उत्तरा भाद्रपद नामक नक्षत्र 32 घड़ी 31 पल अर्थात शाम 7:18 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मीन राशि में विराजमान रहेंगे।
*पूजा का शुभ मुहूर्त-:*
यदि लक्ष्मी की पूजा के मुहूर्त के बारे में जानें तो इस दिन मध्य रात्रि 11:42 बजे से 12:32 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त है।
कोजागिरी पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है तथा कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को
कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा व भगवान विष्णु का पूजन कर, यह व्रत कथा पढ़ी जाती है-

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*व्रत कथा*
कोजागिरी पूर्णिमा व्रत की प्रचलित कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी
और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी।उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो
उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है।
पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से
तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया।उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा ) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी
बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बडी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे को छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा।
तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक
लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह
जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा
पिटवा दिया।
*चन्द्र पूजा के पांच सरल मंत्र -:*
1. ॐ ऐं क्लीं सौमाय नामाय नमः।
2. ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः।
3.ॐ सों सोमाय नमः ।
4. ॐ चं चंद्रमस्यै नमः
5. ॐ शीतांशु, विभांशु अमृतांशु नमः इन मंत्रों का विधिवत जाप करने से संपूर्ण पूर्णिमा का दिव्य फल प्राप्त होता है।

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लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*

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