मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्म दिवस के उपलक्ष में रामनवमी मनाई जाती है। जो कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की नवमी तिथि को पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के जन्मोत्सव को मनाया जाता है जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है नवमी तिथि मधुमास पुनीता अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम मधुमास अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राजा दशरथ के घर पैदा हुए थे। पौराणिक मान्यता के अनुसार राम नवमी के दिन ही प्रभु श्री राम जीने राजा दशरथ के घर जन्म लिया था। भगवान राम को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है। यही मुख्य कारण है कि चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि को रामनवमी भी कहा जाता है। पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म दिवस संपूर्ण विश्व भर में सभी राम भक्तों बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन राम रक्षा स्तोत्र व रामायण का पाठ करना चाहिए। यदि संपूर्ण राम चरित्र मानस पाठ संभव न हो तो कम से कम सुंदरकांड पाठ अवश्य करना चाहिए।


शुभ मुहूर्त, ,,,,,,,, इस बार
दिनांक 30 मार्च 2023 दिन गुरुवार को रामनवमी मनाई जाएगी। इस दिन नवमी मध्य रात्रि 11:30 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन पुनर्वसु नामक नक्षत्र रात्रि 10:58 बजे तक है। अतिगंड नामक योग मध्य रात्रि 12: 59 बजे तक है। बालव नामक करण प्रातः 10:17 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति जाने हैं तो इस दिन चंद्रदेव शाम 4:15 बजे तक मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्र देव कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।
राम अवतार का महत्व, ,,,,,,, श्री राम की बाल लीला तथा विद्या अभ्यास अतुलनीय और बालकों के लिए अनुकरणीय है। उनकी गुरु भक्ति आदर्श गुरु भक्ति थी। जिसके प्रताप से वह सब विद्या में निपुण हो सके थे। विश्वामित्र जी के साथ जाकर उनकी सेवा रूप गुरु सेवा से ही बला और अति बला विद्या को प्राप्त करके धनुर्विद्या और अस्त्र शस्त्र की विद्या में पारंगत हो सके थे। विश्वामित्र जी से उन्होंने गुरु भक्ति के कारण ही धर्म शास्त्र की शिक्षा पौराणिक कथा के रूप में प्राप्त की थी और धर्म संकट के समय कर्तव्य कार्यों की शिक्षा स्त्री वध रूप ताड़का वध के रूप से प्राप्त कर धार्मिक मात्र के लिए एक आदर्श स्थापन कर दिया है। क्षत्रिय बालकों के लिए बालक पन से ही निर्भीकता वीरता और पापियों को समुचित दंड देने की प्रकृति का होना आवश्यक है। इसको श्रीराम ने विश्वामित्र जी के साथ जाकर वीरता पूर्वक सुबाहु को मारकर और मारीच को दंड देने आदि का कार्य करके बतला दिया है। योग वशिष्ट की कथा के आधार पर कहा जा सकता है कि आदर्श गुरु भक्त और आदर्श वैराग्य संपन्न श्रीराम ने उस प्रारंभिक अवस्था में ही ज्ञान की प्राप्ति करके जीव मुक्त पद को प्राप्त करते हुए अपने अवतार के शक्ल कार्यों को किया था। प्रत्येक मनुष्य को इसी प्रकार गृहस्थ आश्रम से पूर्व ही यथा अधिकार और यथासंभव सब प्रकार का ज्ञान प्राप्त करके कर्तव्य कर्म रूप से ग्रस्त आदि आश्रमों के कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य के लिए यही एक राजमार्ग है। जिससे वह अंत में आवागमन चक्र से छूट कर मुक्त हो सकता है। यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति से गृहस्थाश्रम छूट जाता है अथवा गृहस्थआश्रम धारण करने की प्रवृत्ति नहीं होती यह विभीषिका मात्र है। यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य का मार्ग सरल हो जाता है। और कर्तव्य कर्म रूप से सब कर्मों को करते हुए कर्म त्याग की प्रवृत्ति की आवश्यकता ही नहीं होती। इस अवस्था के प्रधान उदाहरण विदेह राज जनक हैं। जनकपुर की फुलवारी में जिस समय सीता जी को श्री राम के दर्शन हुए थे उस समय श्रीराम ने कहा था कि मैंने सपने में भी पर स्त्री को प्रेम दृष्टि से नहीं देखा फिर सीता पर दृष्टि पढ़ते ही मेरा मन क्यों आकर्षित हुआ? इस कथन से यह सिद्ध होता है कि श्री राम ने मातृवत् परदारेषु का अभ्यास बालक पन से ही कर रखा था। इस आदर्श को ग्रहण करने में किस मनुष्य का मतभेद हो सकता है? यह तो सर्व वादी सम्मत सिद्धांत है। पिता दशरथ की प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए श्रीराम ने केवल राज्य का ही त्याग नहीं किया अपितु वनवास का कठिन व्रत पालन करके जगत को पित्र भक्ति की पराकाष्ठा बतला दी थी। यदि ऐसा नहीं करते तो पिता के सत्य की पूर्ण रक्षा नहीं हो सकती। श्री राम ने माता कौशल्या से कहा था की पिता माता की परस्पर विरुद्ध आज्ञा के पालन करते समय पिता की आज्ञा ही पुत्र के लिए शिरोधार्य हुआ करती है। ऐसे धर्म संकट के समय अपने कर्तव्य का निश्चय कर उसको कार्य में परिणत करते हुए श्रीराम ने क्षेत्र की अपेक्षा बीज का ही प्राधान्य सिद्ध कर दिया है। क्योंकि पुत्र संतान में वीर्य प्रधान्य होने के कारण पुरुष शक्ति की ही अर्थात पिता की ही प्रधानता हुआ करती है। श्री राम ने आदर्श भ्राता प्रेम अपने तीनों भाइयों के साथ सारी रामायण में जहां-जहां दिखलाया है वह एक अद्भुत आदर्श है। सब अवसरों में यह आदर्श भ्राता प्रेम अक्षुण्ण रहा है। सहधर्मिणी के साथ पति का क्या कर्तव्य है वह सीता के साथ किए हुए श्री राम के व्यवहारों से सब पर प्रकट ही है। वनवास जाते समय सब प्रकार की वनवास की यातनाओं को समझाते हुए श्री राम ने सत्पतिका ही आदर्श दिखलाया था। और वनवास में अपनी सहधर्मिणी की सब प्रकार से रक्षा करते हुए आदर्श गृहस्थ के धर्मों की पराकाष्ठा बतला दी थी। चित्रकूट में इंद्र पुत्र जयंत को दंड दिया शूर्पणखा के कान नाक लक्ष्मण से कटवाए। खर दूषण त्रिशिरा को अकेले ही मारा और अंत में अपनी सहधर्मिणी के उद्धार के लिए ही रावण कुल का विध्वंस किया। आदर्श गृहस्थ धर्म का कार्य निरूपण करने के लिए लंका में सीता की अग्नि परीक्षा ली और आदर्श प्रजा वत्सल ता जो राजा के लिए मुख्य धर्म स्वरूप है उसका संसार में प्रचार करने के लिए ही श्री राम ने सीता का अयोध्या में परित्याग कर दिया अब इससे अधिक क्या कहा जाए। पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एक आदर्श मानव रूप से अवतीर्ण हुए थे। चित्रकूट में भरत के आने पर दशरथ के मंत्रियों की सभा के एक मंत्री को धमकाते हुए श्रीराम ने जैसा राजधर्म का आदर्श प्रतिपादन किया और उसके अनुसार कार्य किया वह एक अपूर्व दृष्टि था। ऐसे धर्म संकट के समय इस प्रकार निर्णय करना एक आदर्श नरपति का ही कार्य था। जिसको पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अद्भुत रीत से निभाया। पंचवटी में सीता को रावण से छुड़वाने की चेष्टा करते हुए मृत दशरथ के मित्र जटायु का दाह संस्कार श्रीराम ने स्वयं किया। यह कार्य ईश्वर अवतार श्री राम के महत्त्व को अधिक उज्जवल बनाने वाला है। प्रत्येक मनुष्य को महान से महान होने पर भी ऐसी ही दयालुता की वृत्ति रखनी चाहिए इससे उसका महत्व ही बढ़ता है।
भारतीय मनीषा ने राम नाम को राष्ट्र का प्राण तत्व माना है। सनातन धर्म यों के बीच अभिवादन और परिणाम के हर रूप में राम-राम शब्द का प्रचलन यूं ही नहीं बना है इसके पीछे हमारे ऋषि मुनियों का गूढ़ ज्ञान विज्ञान निहित है। विख्यात मानस मनीषी प्रेमभूषण जी महाराज राम तत्व की अनूठी व्याख्या करते हुए कहते हैं राम अर्थात र+आ+म हिंदी वर्णमाला में र अक्षर 27 नंबर आ अक्षर दो नंबर और म अक्षर 25 नंबर पर आता है इन तीनों अक्षरों का योग 54 है और दो बार राम राम कहने से यह 108 हो जाता है इस तरह कोई व्यक्ति राम-राम कहता है तो वह बिना किसी यत्न के राम नाम का एक माला जाप कर लेता है। व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी के जीवन का बारीकी से अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि उनको देवी शक्ति प्राप्त की थी। यदि वह चाहते तो एक इशारे में कुछ भी कर सकते थे परंतु उन्होंने हर काम एक आम व्यक्ति की भांति मर्यादा में रहकर किया ताकि लोग उनसे सीख ले सकें। समाज वर्ण भेद का अभिशाप भोग रहा था छोटी जाति के साथ बड़ी जाति वालों के दौरा भाव के कारण समाज के लोगों के आचरण में प्रेम सेवा और सहयोग का अभाव था । किंतु गंगा पार कर वन पथ पर बढ़ते समय वे निषाद राज को हृदय से लगाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी का मकसद था सामाजिक समानता का लोक शिक्षण। 14 वर्ष के वनवास में उन्होंने अनेक ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की। तपस्या की और अन्यायकारी ताकतों का दमन कर ऋषि-मुनियों एवं पीड़ित वनवासियों को भय मुक्त किया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के वनवास में पग पग पर मर्यादा त्याग प्रेम और अद्भुत लोग व्यवहार के दर्शन होते हैं। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी और निर्माण प्रतीत होता है। यहां तक की उनके दया और प्रेम ने पशु एवं पक्षियों को भी मित्र बना दिया। जिसे देखकर माता सीता भी अचंभित हो गई रामचरितमानस के प्रसंग में अशोक वाटिका में माता सीता हनुमान जी से कहती है” नर वानर का संग कहो कैसे” ।
अपारशक्ति के बावजूद मर्यादा पुरुषोत्तम राम संयमित हैं। सारा पराक्रम स्वयं का है परंतु सारा श्रेय वे वन के महान ऋषियों के आशीर्वाद ,भक्त शिरोमणि हनुमान जी, मित्र वानर राज सुग्रीव, और उनकी वानर सेना, शरणागत विभीषण तथा अनुज लक्ष्मण को देते हैं। क्षमाशील इतने हैं कि राक्षसों को भी सहज ही मुक्ति दे देते हैं। वे राज परिवार से थे चाहते तो केवट निषाद राज या शबरी को बिना गले लगाए ही अपना वनवास गुजार सकते थे परंतु उन्होंने उनको गले लगा कर लोगों में समानता का विश्वास जगाया।

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लेखक-:: पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया, नैनीताल।

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