महान संत श्री नीम करौली महाराज जी और अम्मा श्रीमती रामबेटी जी: आध्यात्मिक जीवन और गृहस्थ धर्म का दिव्य संगम ।

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जनपद के अकबरपुर गाँव में मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी तिथि (30 नवम्बर 1900) को एक दिव्य आत्मा ने जन्म लिया। इस बालक का नाम रखा गया लक्ष्मी नारायण शर्मा, जो आगे चलकर सम्पूर्ण विश्व में नीम करौली बाबा के नाम से विख्यात हुए। उनके जन्म के समय परिवार में श्रद्धा, धर्म और विद्वत्ता की समृद्ध परंपरा रही। पिता पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा और माता कौशल्या देवी शर्मा ने उन्हें संस्कार और ज्ञान से परिपूर्ण वातावरण दिया।

बाल्यकाल और प्रारंभिक शिक्षा

बाल्यकाल से ही लक्ष्मी नारायण जी में आध्यात्मिक झुकाव स्पष्ट था। दस वर्ष की आयु में वे बनारस गए, जहाँ उन्होंने वेद और व्याकरण का गहन अध्ययन किया। इसी समय उनके हृदय को गहरा आघात लगा – उनकी माता कौशल्या देवी का देहांत हो गया। यह दुःख उनके जीवन की पहली आध्यात्मिक परीक्षा साबित हुआ।

गृहस्थ जीवन की शुरुआत

बालक की आत्मिक प्रवृत्ति को देखते हुए पिता ने उनका विवाह मात्र 11 वर्ष की उम्र में रामबेटी जी (उम्र 9 वर्ष) से कर दिया। गृहस्थ जीवन की पारंपरिक जिम्मेदारियाँ और प्रेम पूर्ण संबंध उन्हें कभी भी पूर्ण संतोष नहीं दे सके। लगभग 13वर्ष की अल्पायु में लक्ष्मी नारायण जी बिना किसी को बताए घर से निकल पड़े और अपने आध्यात्मिक साधना-पथ पर चल पड़े।

आध्यात्मिक यात्रा और तपस्वी जीवन

अपने घर से निकलकर वे भारत के अनेक भागों में भ्रमण करने लगे। गुजरात, बवानिया, नीब करोरी गाँव और विभिन्न वनप्रदेशों में उन्होंने साधना की। इस दौरान उन्हें विभिन्न नामों से जाना गया – ‘बाबा लक्ष्मण दास’, तलैया बाबा,‘हांडी वाले बाबा’, ‘तिकोनिया बाबा’, चमत्कारी बाबा और नीब करोरी गाँव के लोगों द्वारा दिया गया नाम ‘नीब करोरी बाबा’।

ALSO READ:  नैनीताल नगर पालिकाध्यक्ष डॉ.सरस्वती खेतवाल का सभासदों के प्रति सख्त रुख । कहा "मैं डरूँगी नहीं"। 'मैं जाऊंगी तो इन्हें (सभासदों को) भी जाना पड़ेगा ।

 

सत्रह वर्ष की आयु तक आते-आते उन्होंने अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं और सामाजिक बंधनों से ऊपर उठकर मानवता के लिए करुणा, प्रेम और सेवा के प्रतीक बन गए। 1917 में रेल यात्रा के दौरान रेल रोक दिए जाने की प्रसिद्ध अलौकिक लीला और साधु-संतों के सम्मान की घटनाएँ उनकी दिव्यता और अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति का संदेश देती हैं।

अम्मा श्रीमती रामबेटी जी का सहयोग

नीम करौली बाबा ने गृहस्थ जीवन को पूर्णता के साथ निभाया। उनकी धर्मपत्नी अम्मा रामबेटी जी ने उनके आध्यात्मिक जीवन में पूर्ण सहयोग किया। उन्होंने पति की अनुपस्थिति में जमींदारी, सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए सेवा, धैर्य और प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।

अम्मा (धर्मपत्नी राम बेटी शर्मा जी )का जीवन न केवल गृहस्थ जीवन का आदर्श है, बल्कि यह दिखाता है कि साधना केवल आश्रमों तक सीमित नहीं होती, बल्कि गृहिणी के दैनिक कर्तव्यों और प्रेम में भी फलित होती है। उनका संयम, त्याग और करुणा आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान

सामाजिक जगत में नीम करौली महाराज जी ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अपार योगदान दिया। गांव के जमींदार होते हुए उन्होंने अकबरपुर में स्कूल, कुएँ, बाग-बगीचे, मार्ग और पुष्पवाटिकाओं का निर्माण कराया। उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता, गरीबों की मदद और समाज कल्याण के लिए कई कार्य किए।

आध्यात्मिकता के शीर्ष पर वे प्रखर सूर्य की भांति प्रखर हैं।उत्तराखंड के नैनीताल क्षेत्र में उन्होंने श्री हनुमानगढ़ी मंदिर, भूमियाधार, कैंची धाम की स्थापना कर तथा काकड़ीघाट( में श्री हनुमानमूर्ति की स्थापना) के द्वारा जनमानस को सेवा और भक्ति का संदेश दिया। उनके आश्रम और मंदिर आज भी भक्तों को आध्यात्मिक दिव्यता प्रदान करते हैं।

ALSO READ:  वीडियो-: संयुक्त कर्मचारी महासंघ कुमाऊँ मंडल विकास निगम द्वारा संघ कार्यालय सूखाताल में किया गया सुंदरकांड पाठ ।

अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव

नीम करौली महाराज जी का आध्यात्मिक प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी सहित कई देशों के भक्त उनकी दिव्य कृपा के साक्षी बने। हॉवर्ड विश्वविद्यालय के डॉ. रिचर्ड अल्पर्ट (रामदास) , कृष्णदास ,लैरी ब्रिलिएंट और अनेक अंतर्राष्ट्रीय शिष्यों ने उनके चरणों में जीवन समर्पित किया।

महाप्रयाण और उनके उपरांत जीवन

महान संत श्री नीम करौली बाबा का महाप्रयाण 11 सितम्बर 1973 को हुआ। उनकी दिव्यता आज भी भक्तों के जीवन में अनुभव की जाती है। अम्मा(धर्मपत्नी )श्रीमती रामबेटी जी का महाप्रयाण 14 जून 1996 को हुआ। उन्होंने अपने जीवन में सभी कर्तव्यों को प्रेम, धैर्य और संयम के साथ निभाया।

उनका जीवन संदेश देता है कि ‘जहाँ प्रेम है वहाँ परमात्मा वास करते हैं; और जहाँ त्याग और सेवा का संकल्प है, वहाँ गृहस्थ जीवन भी तपोवन बन जाता है।’

नीम करौली महाराज जी और अम्मा श्रीमती रामबेटी जी का जीवन आज भी हमारे लिए आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शक है। उनकी जीवन गाथा यह प्रमाण है कि आध्यात्मिक और गृहस्थ जीवन का संतुलन संभव है, और यही जीवन का सर्वोच्च आदर्श है।

(अकबरपुर में आयोजित हो रहे कार्यक्रमों की झलक)

उनकी दिव्यता, सेवा, प्रेम और करुणा की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। उनके आदर्श हमारे जीवन में स्थायी प्रकाश बने रहेंगे, और हमें प्रेम, सेवा और त्याग के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहेंगे।

(लेखिका)

डॉ कुसुम शर्मा
नैनीताल
उत्तराखंड

Ad Ad

By admin

"खबरें पल-पल की" देश-विदेश की खबरों को और विशेषकर नैनीताल की खबरों को आप सबके सामने लाने का एक डिजिटल माध्यम है| इसकी मदद से हम आपको नैनीताल शहर में,उत्तराखंड में, भारत देश में होने वाली गतिविधियों को आप तक सबसे पहले लाने का प्रयास करते हैं|हमारे माध्यम से लगातार आपको आपके शहर की खबरों को डिजिटल माध्यम से आप तक पहुंचाया जाता है|

You cannot copy content of this page