*ब्रह्माण्ड की रचना करने की शक्ति रखने वाली मां कूष्माण्डा।अवश्य पढ़ें यह कथा*
12 अप्रैल 2024 दिन शुक्रवार को चैत्र के महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है।
आज का दिन माता कूष्मांडा को समर्पित होता है।
मान्यता है कि मां कूष्मांडा ने ही इस ब्रह्मांड की रचना की थी और सूर्य भी उन्हीं की शक्ति से प्रकाशित होते हैं।
आज माता के इस रूप की पूजा करते समय उनकी कथा जरूर पढ़ें।कूष्मांडा को शक्तिस्वरूप
माना गया है। कहा जाता है कि सूर्यदेव के ऊपर मां
कूष्मांडा का आधिपत्य है। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। सूर्यदेव को दिशा और ऊर्जा मां कूष्मांडा ही प्रदान करती हैं। मां कूष्मांडा शेर की
सवारी करती हैं और अपने हाथों में कमण्डल, धनुष,बाण, कमल, अमृत से भरा कलश, चक्र, गदा और माला धारण करती हैं। कहा जाता है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व ही नहीं था, तब इन्होंने ब्रह्मांड की रचना की। इन्हीं से महा सरस्वती,
महाकाली और महालक्ष्मी उत्पन्न हुई।आदिशक्ति मं कूष्मांडा बेहद कोमल हृदय वाली हैं।
वे भक्त द्वारा की गई अल्प भक्ति से भी प्रसन्न हो जाती हैं। माता की पूजा से रोग-शोक दूर हो जाते हैं।और आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
आज नवरात्रे के चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा करते समय आप उनकी कथा को जरूर पढ़ें और उनकी महिमा को जानें। इससे आपको मां की कृपा जरूर प्राप्त होगी।
*मां कूष्मांडा की कथा*
पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था,तब एक ऊर्जा, गोले के रूप में प्रकट हुई। इस गोले से
बेहद तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ और देखते ही देखते ये नारी के रूप में परिवर्तित हो गया। माता ने सबसे पहले तीन देवियोंमहाकाली, महा लक्ष्मी और महासरस्वती को उत्पन्न किया। महाकाली के शरीर से
एक नर और नारी उत्पन्न हुए। नर के पांच सिर और
दस हाथ थे, उनका नाम शिव रखा गया और नारी का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम सरस्वती रखा
गया। महालक्ष्मी के शरीर से एक नर और नारी का
जन्म हुआ। नर के चार हाथ और चार सिर थे, उनका नाम ब्रह्मा रखा और नारी का नाम लक्ष्मी रखा गया।
फिर महासरस्वती के शरीर से एक नर और एक नारी का जन्म हुआ। नर का एक सिर और चार हाथ थे,उनका नाम विष्णु रखा गया और महिला का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम शक्ति रखा गया।इसके बाद माता ने ही शिव को पत्नी के रूप में शक्ति, विष्णु को पत्नी के रूप में लक्ष्मी और ब्रह्मा को
पत्नी के रूप में सरस्वती प्रदान कीं। ब्रह्मा को सृष्टि
की रचना, विष्णु को पालन और शिव को संहार करने का जिम्मा सौपा। इस तरह संपूर्ण ब्रहमांड की रचना
मां कूष्मांडा ने की। ब्रह्मांड की रचना करने की शक्ति रखने वाली माता को कूष्मांडा के नाम से जाना गया।
*लेखक- आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*