नैनीताल । उत्तराखंड हाईकोर्ट ने  एनडीपीएस एक्ट के तहत निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए एक आरोपी की अपील लंबित रहने तक उसकी सज़ा को निलंबित कर दिया है और उन्हें ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ में हुई ।
  याचिकाकर्ता इसरार ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (एनडीपीएस अधिनियम), विकासनगर, जिला देहरादून की अदालत द्वारा 9 अप्रैल2025 के निर्णय और आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के तहत, अपीलकर्ता को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8/20 के तहत दोषी ठहराया गया और सज़ा सुनाई गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार इसरार के पास अक्टूबर 2011 में चरस बरामद की गई थी।
अपीलकर्ता के वकील, गौरव नागपाल और अमित त्यागी ने तर्क दिया कि पूरा मामला झूठा है। उन्होंने अदालत को बताया कि आवेदक को बस से उतारकर झूठे तरीके से फँसाया गया है, जिसकी पुष्टि बस के चालक  ने भी की है। ज़मानत के पक्ष में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह उठाया गया कि कथित रूप से बरामद चरस की कस्टडी स्थापित नहीं हुई है। उनका तर्क था कि मालखाना रजिस्टर में यह एंट्री नहीं है कि कथित तौर पर बरामद वस्तु को मजिस्ट्रेट के समक्ष जाँच और फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) को भेजने के लिए कब निकाला गया और कब वापस जमा किया गया।
राज्य की ओर से उप महाधिवक्ता मनीषा राणा सिंह ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपने मामले को साबित करने में सक्षम रहा है। हालांकि, उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि मालखाना रजिस्टर में इस बात की कोई एंट्री नहीं है कि वस्तु को मालखाने से कब निकाला गया और कब वापस मालखाने में रखा गया। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि मालखाना रजिस्टर में इस बात की कोई एंट्री नहीं है कि वस्तु को फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी भेजा गया था।
 इन तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने आरोपी की सजा को निलम्बित रखते हुए उसे जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए।

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