नैनीताल। शीशमहल काठगोदाम में नन्ही बच्ची के साथ 10 साल पूर्व हुए दुराचार के बाद हुई जघन्य हत्या के एक आरोपी को निचली अदालत व हाईकोर्ट से मिली फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में रद्द करते हुए बरी कर दिया है ।
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ — न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने अभियुक्त अख्तर अली उर्फ अली अख्तर उर्फ शमीम उर्फ राजा उस्ताद तथा सह-अभियुक्त प्रेमपाल वर्मा को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
अभियुक्तों ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उन्हें मृत्युदंड की सजा दी गई थी ।
यह घटना 20 नवम्बर 2014 की है जब हल्द्वानी के शीशमहल, काठगोदाम क्षेत्र से एक नाबालिग लड़की विवाह समारोह के दौरान लापता हो गई। चार दिन बाद उसका शव गौला नदी के निकट जंगल से बरामद हुआ। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यौन शोषण, गंभीर चोटों और अत्यधिक रक्तस्राव से मृत्यु की पुष्टि हुई।
पुलिस जांच में अभियुक्त अख्तर अली, प्रेमपाल वर्मा और जूनियर मसीह उर्फ फॉक्सी को नामजद किया गया। सत्र न्यायालय, हल्द्वानी ने 2016 में अख्तर अली को धारा 376ए, 302, 201 आई पी सी एवं पॉक्सो अधिनियम की धाराओं में दोषी ठहराकर मृत्युदंड दिया। प्रेमपाल वर्मा को धारा 212 आईपीसी में दोषी ठहराकर सज़ा सुनाई गई, जबकि तीसरे अभियुक्त को बरी कर दिया गया।
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने 18 अक्तूबर 2019 को सत्र न्यायालय के निर्णय की पुष्टि करते हुए अख्तर अली के मृत्युदंड को बरकरार रखा और प्रेमपाल की सज़ा को भी सही ठहराया। हालांकि, दोनों अभियुक्तों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66सी से बरी कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों की सुनवाई में अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी साक्ष्यों और परिस्थितियों का पुनर्मूल्यांकन किया। पीठ ने पाया कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर सका कि साक्ष्यों की श्रृंखला “संपूर्ण और अविच्छिन्न” है। हेयरबैंड और अन्य वस्तुओं की बरामदगी पर गंभीर संदेह पाया गया, डी एन ए रिपोर्ट और “चैन ऑफ कस्टडी” में भी खामियाँ थीं। इसके अतिरिक्त, गिरफ्तार करने और जांच की प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएँ सामने आईं।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मृत्युदंड जैसे कठोर दंड को केवल “दुर्लभतम” मामलों में और निर्विवाद साक्ष्यों पर ही लागू किया जा सकता है। जब तक अभियोजन संदेह से परे दोष सिद्ध न करे, तब तक दोषसिद्धि बरकरार नहीं रह सकती।
इस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने अख्तर अली और प्रेमपाल वर्मा को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।
इस निर्णय के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल मृत्युदंड समाप्त किया बल्कि यह भी दोहराया कि किसी भी अभियुक्त को संदेहास्पद और अपूर्ण साक्ष्यों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।