इस बार दिनांक 5 नवंबर 2025 दिन बुधवार को कार्तिक पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा। इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसीलिए भगवान भोलेनाथ को त्रिपुरारी भी कहा जाता है।

इसके अतिरिक्त आज ही के दिन श्री हरि भगवान विष्णु मत्स्य अवतार के रूप में प्रकट हुए थे और आज ही के दिन भगवान कार्तिकेय और वृंदा का जन्म हुआ था। इस बार कार्तिक पूर्णिमा कुछ खास बनने जा रही है इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग एवं अमृत सिद्धि योग बन रहा है। यह दोनों ही योग 4 नवंबर की दोपहर 12:34 बजे से प्रारंभ होकर 5 नवंबर की प्रातः तक रहेंगे। इस दिन यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो 30 घड़ी 42 पल अर्थात शाम 6:49 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। अश्विनी नामक नक्षत्र सात घड़ी 50 पल अर्थात प्रातः 9:40 बजे तक है। सिद्धि योग 12 घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 11:28 बजे तक है। इस दिन यदि चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूप से मेष राशि में विराजमान रहेंगे।
*क्यों कहते हैं इसे देव दिवाली?*
देवता क्यों मनाते हैं यह दिवाली? भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करके देवताओं को भय से मुक्त कर पुनः स्वर्ग का राज्य सौंप दिया था। इसी की खुशी में देवता लोग गंगा और यमुना के तट पर एकत्रित होकर स्नान करते हैं और खुशी में दिवाली मनाते हैं। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।

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*पौराणिक कथा :-*
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया।अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

 

तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

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इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनी। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बने। भगवान शिव खुद बाण बने और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।

*आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*

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