(लेखक – पं. प्रकाश जोशी)।

नारद जयंती अथवा पत्रकारिता दिवस का महत्व।

हिंदू पंचांग के अनुसार जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को नारद जयंती मनाई जाती है। नारद मुनि को देवताओं का संदेशवाहक भी कहा जाता है। यह तीनों लोकों में संवाद का माध्यम बनते थे। इसलिए नारद जयंती को पत्रकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,, इस बार नारद जयंती दिनांक 17 मई 2022 दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन प्रतिपदा तिथि दो घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 6:25 बजे तक है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन अनुराधा नामक नक्षत्र 13 घड़ी 27 पल अर्थात प्रातः 10:44 बजे तक है तदुपरांत जेष्ठा नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन शिव नामक योग 43 घड़ी 5 पल अर्थात रात्रि 10:35 बजे तक रहेगा। कौलव नामक करण दो घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 6:25 बजे तक रहेगा। और इन सबसे महत्वपूर्ण यदि चंद्रमा की स्थिति देखें तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे।
नारद जयंती पर पत्रकारों के लिए विशेष रूप से पूज्यनीय है। भारतीय परंपरा में प्रत्येक कार्य क्षेत्र के लिए एक अधिष्ठाता देवी देवताओं का होना हमारे पूर्वजों ने सुनिश्चित किया है। इसका उद्देश्य प्रत्येक कार्य क्षेत्र के लिए कुछ सनातन मूल्यों की स्थापना करना ही रहा होगा। पत्रकार बंधु आदिकाल से अब तक और भविष्य में भी प्रत्येक समय और परिस्थितियों में कार्य की पवित्रता एवं उनके लोक हितकारी स्वरूप को बचाने में बहुत सहायक होते हैं। यह स्वाभाविक है कि समय के साथ कार्य की पद्धति एवं स्वरूप बदलता है। इस क्रम में मूल्यों से भटकाव की स्थिति भी आती है। देशकाल परिस्थितियों के अनुसार हम मूल्यों की पुनर्स्थापना पर विमर्श करते हैं। तब अधिष्ठाता देवता हमें सनातन मूल्यों का स्मरण कराते हैं। यह आदर्श हमें भटकाव व फिसलन से बचाते हैं। इसलिए भारत में जब आधुनिक पत्रकारिता प्रारंभ हुई तब हमारे पूर्वजों ने इसके लिए अधिष्ठान की खोज आरंभ कर दी। उनकी वह तलाश तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले और कल्याणकारी समाचारों का संचार करने वाले देवर्षि नारद जी पर जाकर पूर्ण हुई। प्रिय पाठकों की जानकारी के लिए बताना चाहूंगा कि भारत के प्रथम हिंदी समाचार पत्र उदंत मार्तंड के प्रकाशन के लिए संपादक महोदय पंडित जुगल किशोर शुक्ल जी ने नारद जयंती 30 मई 1826 को जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि का चयन किया। हिंदी पत्रकारिता की आधारशिला रखने वाले श्री पंडित जुगल किशोर शुक्ला जी ने उदंत मार्तंड के प्रथम अंक के प्रथम पृष्ठ पर आनंद व्यक्त करते हुए लिखा था कि आद्य पत्रकार देवर्षि नारद जी की जयंती के शुभ अवसर पर यह पत्रकारिता प्रारंभ होने जा रही है।

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अब बात करते हैं नारद जी के जन्म की। पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। ब्रह्मा जी का मानस पुत्र बनने के लिए उन्होंने पिछले जन्म में कड़ी तपस्या की थी। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में नारद जी गंधर्व कुल में पैदा हुए थे। और उन्हें अपने रूप में बड़ा घमंड था। पूर्व जन्म में उनका नाम उपबहर्ण था। एक बार कुछ अप्सराओं एवं गंधर्व गीत और नृत्य से भगवान ब्रह्मा जी की उपासना कर रही थी। तब उपबहर्ण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां आए यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित होकर उन को श्राप दिया कि वह शूद्र योनि में जन्म लेगा। ब्रह्मा जी के श्राप से उनका जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाया और ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा पैदा हुई। बालक के लगातार तपस्या के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि हे बालक! इस जन्म में आपको भगवान दर्शन ही नहीं बल्कि अगले जन्म में आप उनके पार्षद के रूप में उन्हें प्राप्त कर सकेंगे।

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