*संयोग से  24 मई 2024 को नारद जयंती(पत्रकारिता दिवस) एवं राष्ट्रीय भ्राता दिवस एक साथ मनाए जायेंगे*
हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को मनायी जाती है नारद
जयंती। नारद मुनि को देवताओं का संदेश
वाहक भी कहा जाता है। ये तीनो लोकों में संवाद का माध्यम बनते थे। इसलिए नारद जयंती को पत्रकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इसबार नारद जयंती या पत्रकार दिवस दिनांक 24 मई 2024 दिन शुक्रवार को मनाया
जाएगा। नारद जयंती पर पत्रकारों के लिए इसलिए विशेष रूप से पूजनीय है क्योंकि भारतीय परंपरा में प्रत्येक कार्य क्षेत्र के लिए एक अधिष्ठाता देवी देवताओं का होना हमारे पूर्वजों ने सुनिश्चित किया है। इसका उद्देश्य प्रत्येक
कार्य क्षेत्र के लिए कुछ सनातन मूल्यों की स्थापना करना ही रहा होगा। पत्रकार बन्धु
आदि काल से अब तक और भविष्य में भी प्रत्येक समय और परिस्थितियों में कार्य की पवित्रता एवं उनके लोकहित कारी स्वरूप को बचाने में सहायक होते हैं। यह स्वभाविक ही है कि समय के साथ कार्य की प्रद्धति एवं स्वरूप बदलता है। इस क्रम में मूल्यों से भटकाव की स्थिति भी आती है। देश काल परिस्थितियों के
अनुसार हम मूल्यों की पुनर्स्थापना पर विमर्श
करते हैं। तब अधिष्ठाता देवता हमें सनातन
मूल्यों का स्मरण कराते हैं। ये आदर्श हमें
भटकाव व फिसलन से बचाते है। इसलिए
भारत में जब आधुनिक पत्रकारिता प्रारंभ हुई
तब हमारे पूर्वजों ने इसके लिए अधिष्ठान की खोज आरंभ कर दी। उनकी वह तलाश तीनों लोको में भ्रमण करने वाले और कल्याण कारी समाचारों का संचार करनेवाले देवर्षि नारदजी पर जाकर पूरी हुई। पाठकों की जानकारी के
लिए बता दूँ कि भारत के प्रथम हिन्दी
समाचार-पत्र उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशन के लिए संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने नारद जयंती 30 मई 1826 को ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि का चयन किया। हिन्दी पत्रकारिता की आधारशिला रखने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने उदन्त मार्तण्ड के प्रथम अंक के प्रथम पृष्ठ पर आन्नद व्यक्त करते हुए लिखा था कि “आद्य पत्रकार देवर्षि नारदजी की जयंती के शुभ अवसर पर यह पत्रकारिता प्रारंभ होने जा रही है।”

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आज अति आधुनिक युग
में समाचारपत्र के साथ साथ अनेक न्यूज़
पोर्टल भी समाचारों को समाचारपत्र की अपेक्षा जल्दी जनसाधारण तक पंहुचाने का कार्य अपने अथक प्रयासों एवं अथक परिश्रम से कर रहे हैं। अब बात करते हैं नारदजी के जन्म की। पौराणिक कथाओं के अनुसार नारदरजी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। ब्रह्मा जी का मानस पुत्र बनने के लिए उन्होंने पिछले जन्म में कड़ी तपस्या की थी। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में नारदजी गंधर्व कुल में पैदा हुए थे। और
उन्हें अपने रूप में बडा घंमड था। पूर्व जन्म में
उनका नाम उपबर्हण था। एक बार कुछ अप्सराओं और गंधर्व गीत और नृत्य से भगवान ब्रह्मा जी की उपासना कर रही थी। तब
उपबहर्ण स्रियों के साथ श्रंगार भाव से वहाँ
आये यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित होकर
उपबहर्ण को श्राप दिया कि वह शूद्र योनि में
जन्म लेगा। ब्रह्मा जी के श्राप से उपबहर्ण का
जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ।
बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में
लगाया और ईश्वर को जानने और उनके दर्शन
करने की इच्छा पैदा हुई। बालक के लगातार तप
के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई थी कि हे बालक! इस जन्म में आपको भगवान
दर्शन ही नहीं बल्कि अगले जन्म में आप उनके पार्षद के रूप में उन्हें प्राप्त कर सकेंगे। *लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*

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