शुभ मुहूर्त—इस बार कामदा एकादशी व्रत स्मार्त(शैव) एवं वैष्णव समुदाय के लोग दो अलग-अलग दिन मनाएंगे। स्मार्त अर्थात शिव समुदाय के लोग दिनांक 1 अप्रैल 2023 एवं वैष्णव समुदाय के लोग दिनांक 2 अप्रैल 2023 को कामदा एकादशी व्रत मनाएंगे। यदि एकादशी तिथि की बात करें तो दिनांक 1 अप्रैल 2023 को 55 घड़ी 38 पल अर्थात अगले दिन यानी 2 अप्रैल को प्रातः 4:20 तक रहेगी। अश्लेषा नामक नक्षत्र अगले दिन 4:46 बजे तक रहेगा यदि करण की बात करें तो बव नामक करण शाम 3:11 बजे तक रहेगा यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्रदेव सिंह राशि में विराजमान रहेंगे।
कामदा एकादशी व्रत कथा।, ,,,, कामदा एकादशी व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। प्राचीन काल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुंडरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सराएं किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललित और ललिता नामक दंपति अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था। यहां तक कि वह दोनों अलग अलग हो जाने पर व्याकुल हो जाते थे। एक समय पुंडरी की सभा में अन्य गंधर्व सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते हुए उसे अपने प्रिय ललिता का ध्यान आ गया था। और उसका स्वर बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोटक नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुंडरीक ने क्रोध पूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है अतः तू कच्चा मांस हार और मनुष्य को खाने वाला राक्षस बनकर अपने कर्मों का फल भोग। पुंडरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाल विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर नेत्र सूर्य चंद्र की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान और सिर के बाल पर्वत पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे। उसका शरीर 8 योजन विस्तार में हो गया। इस प्रकार वह राक्षस होकर अनेक प्रकार के दुख भोगने लगा। जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत दुख हुआ। वह अपने पति के उद्धार का यत्न करने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के दुख सहते हुए घने जंगल में रहने लगा। उसकी स्त्री अपने पति के पीछे घूमते हुए विंध्याचल पर्वत पर पहुंच गई। जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में आ गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले हे सुभाष तुम कौन हो? और यहां किस लिए आई हो? ललिता बोली की हे मुनि !मेरा नाम ललिता है। मेरे पति राजा पुंडरीक के श्राप से राक्षस बन गया है। उसका मुझे महान दुख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बताएं। ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या !अब चैत्र शुक्ल एकादशी व्रत आने वाला है जिसका नाम कामदा एकादशी व्रत है। इस व्रत के करने से पुण्य का फल अपने पति को दे देना वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा। और राजा का श्राप भी अवश्य शांत होगा। मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देते हुए भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी कि” हे भगवान !मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पति को प्राप्त हो। और वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए।” एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्ग लोग चले गए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। तथा राक्षस आदि योनि छूट जाती है। संसार में इसके बराबर व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
लेखक–:: पंडित प्रकाश जोशी गेठिया, नैनीताल।