भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है। कुशोत्पाटिनी का अर्थ है कुश को उखाड़ना। यह अमावस्या भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है जिसमें पूजा पाठ आदि के लिए वर्ष भर तक चलने वाली कुश का संग्रहण किया जाता है अर्थात इस दिन कुशा इकट्ठी की जाती है।
शुभ मुहूर्त—
इस बार सन 2023 में दिनांक 14 सितंबर 2023 दिन गुरुवार को कुश ग्रहणी अमावस्या मनाई जाएगी। इस दिन अमावस्या तिथि अहोरात्रि तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नामक नक्षत्र 57 घड़ी 10 पल अर्थात अगले दिन प्रात 4:51:00 तक है। इस दिन साध्य नामक योग 52 घड़ी 18 पल अर्थात अगले दिन प्रात 2:54 बजे तक है। इस दिन यदि चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण सिंह राशि में विराजमान रहेंगे।
महत्व —
इस दिन पवित्र नदी में स्नान दान और पितरों की पूजा और श्राद्ध आदि करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। कुशा एक अहम प्रकार की घास होती है जिसका उपयोग पूजा पाठ के अलावा श्राद्ध आदि में किया जाता है। इस दिन वैदिक मंत्रोचार के साथ अपने हाथों में कुश लेकर पितरों की पूजा और श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए ऐसा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पितरों को संतुष्टि और मुक्ति मिलती है।
कुश निकालने के नियम—
कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन निकली हुई कुशा वर्ष भर उपयोग की जा सकती है। संयोग से यदि इस दिन सोमवार हो तो यह कुश 12 वर्षों तक उपयोग की जा सकती है। हमारे धर्म शास्त्रों में 10 प्रकार के कुश का वर्णन मिलता है। जैसे -कुशा,कांशा,यवा, दुर्वा,उशीराच्छ,सकुंदका।
गोधूमा,ब्राह्मयो,मौन्जा,दश दर्भा,सबल्वजा।।
इन 10 प्रकारों में से कुश महत्वपूर्ण है यदि संभव न हो सके तो अन्य नौ प्रकार भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं। जहां तक संभव हो सके कुश का प्रयोग ही श्राद्ध कार्यों में करना चाहिए। कुशा कभी धार वाली चीजों से नहीं कटनी चाहिए कुशा हाथ से ही तोड़नी चाहिए। जिससे कि वह अखंडित न हो जाए। कुशा सुबह के समय ही तोड़नी चाहिए।
कुश की उत्पत्ति की कथा—
मत्स्य पुराण में कुश की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार जब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर अपने परम भक्त भक्त प्रहलाद की प्राणों की रक्षा के लिए हिरण कश्यप नामक राक्षस का वध किया था तो फिर से धरती को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी। भगवान के अवतार ने जब अपने शरीर पर लगे पानी को झटका तब उनके शरीर से कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिरे और कुश का रूप धारण कर लिया तभी से कुश को पवित्र माना जाता है।
लेखक–: पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया नैनीताल।