वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार सन् 2023 में दिनांक 16 अप्रैल दिन रविवार को वरुथिनी एकादशी मनाई जाएगी।

शुभ मुहूर्त,,,,, यदि 16 अप्रैल 2023 को एकादशी तिथि की बात करें तो इस दिन शाम 6:16 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन शतभिषा नामक नक्षत्र अगले दिन प्रातः 4: 07 बजे तक रहेगा। यदि करण की बात करें तो इस दिन बव नामक करण प्रातः 7:32 बजे तक रहेगा तदुपरांत बालव नामकरण शाम 6:16 बजे तक रहेगा। इस दिन शुक्ल नामक योग मध्य रात्रि 12:12 बजे तक रहेगा।
वरुथिनी का अर्थ है सुरक्षित या जिसे बचा कर रखा जाए। इसलिए भगवान विष्णु के भक्त सुखमय जीवन की कामना के साथ यह व्रत रखते हैं।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा, ,,,,,,, पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण जी से इस व्रत के बारे में पूछते हैं कि हे नंद नंदन! वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी व्रत का क्या नाम है इसकी क्या विधि है और इसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप कृपा करके विस्तार पूर्वक मुझे बताइए। मैं आपको नमस्कार करता हूं। तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे धर्मराज युधिष्ठिर! इस एकादशी का नाम वरुथिनी एकादशी है। यह सौभाग्य देने वाली है और सभी पापों को नष्ट करने वाली है। तथा अंत में मोक्ष प्रदान करने वाली है। यदि कोई अभागन स्त्री इस व्रत को करे तो उसे सौभाग्य मिलता है। इसी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा मांधाता स्वर्ग को गए। वरुथिनी एकादशी व्रत का फल 10000 वर्ष तक तपस्या करने के बराबर होता है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथी का दान घोड़े के दान से बड़ा होता है। भूमि दान हाथी दान से बड़ा तिल दान भूमि दान से बड़ा स्वर्ण दान तिल दान से बड़ा परंतु स्वर्ण दान से भी बड़ा अन्न दान होता है। अन्न दान से श्रेष्ठ कोई दान नहीं है। हां कन्यादान और अन्न दान लगभग बराबर होते हैं। आगे श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि राजा मांधाता बहुत दानी और तपस्वी राजा माने जाते थे। उनकी ख्याति चारों ओर फैली थी। एक बार वे जंगल में तपस्या कर रहे थे। इसी समय वहां एक भालू आया और उनके पैरों को खाने लगा। इसके बाद भी राजा मांधाता अपनी साधना में लीन रहे उन्हें तनिक भी क्रोध नहीं आया। उन्होंने भालू से कुछ नहीं कहा। परंतु जब उन्हें दर्द और पीड़ा अधिक होने लगी तो उन्होंने भगवान विष्णु का स्मरण किया। भक्त की पुकार पर भगवान विष्णु राजा की सहायता के लिए आए और राजा के प्राण बचाए परंतु भालू तब तक राजा के पैरों को अत्यधिक हानि पहुंचा चुका था। राजा यह देख कर दुखी हुए परंतु भगवान विष्णु ने कहा कि हे राजन परेशान ना हो क्योंकि भालू ने तुम्हें उतनी ही हानि पहुंचाई है जितना पिछले जन्म में तुम्हारे पाप कर्म थे। भगवान विष्णु ने राजा से कहा कि तुम्हारे पैर ठीक हो जाएंगे यदि तुम मथुरा की भूमि पर वरुथिनी एकादशी व्रत करोगे। राजा ने भगवान की बात का पालन किया और उनके पैर ठीक हो गए। और राजा अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ।
वरुथिनी एकादशी का महत्व, ,,,,,,, वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने का विधान है मान्यता के अनुसार जितना पुण्य कन्यादान और वर्षों तक तपस्या करने से प्राप्त होता है उतना पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। यह एकादशी दरिद्रता का नाश करने वाली और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली मानी गई है। इस दिन व्रत करने से घर में सुख समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है। मनुष्य के सभी पापों का अंत होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि, ,,,,,, इस व्रत पर दशमी तिथि अर्थात एकादशी के दिन से पहले दिन शाम को सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण ना करें। एकादशी के दिन प्रात उठकर स्नान आदि करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तदुपरांत एक चौकी पर गंगाजल छिड़क कर स्वच्छ करें और आसन बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। तदुपरांत धूप दीप प्रज्वलित करें और तिलक करें। भगवान विष्णु को गंध पुष्प आदि अर्पित करें अब पूरे दिन व्रत करें। द्वादशी तिथि यानी अगले दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके पूजा करें और किसी सुयोग्य ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा दें इसके बाद स्वयं भी शुभ मुहूर्त में व्रत खोलें।

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लेखक –:: पंडित प्रकाश जोशी गेठिया, नैनीताल।

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