कल से प्रारंभ होगा होलाष्टक, शुभ कार्य होंगे वर्जित -:
होलाष्ट्क कलसे शुरू होकर 14 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक के इन आठ दिनोंको वर्षका सबसे अशुभ समय माना जाता है।इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य न करें।
अशुभ दिन-:
7 मार्च शुक्रवार अष्टमी तिथि को चंद्रमा।
8 मार्च 2025 दिन शनिवार नवमी को सूर्य।
9 मार्च 2025 दिन रविवार दशमी को शनि, 10 मार्च 2025 दिन सोमवार एकादशी को शुक्र।
11 मार्च 2025 दिन मंगलवार द्वादशी को गुरु ।
12 मार्च 2025 दिन बुधवार त्रयोदशी को बुध ।
13 मार्च 2025 दिन गुरुवार चतुर्दशी को मंगल तथा 14 मार्च 2025 दिन शुक्रवार पूर्णिमा को राहु ।
उपरोक्त ग्रहों का उग्र रूप माना जाता हैं जिसके कारण इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गये हैं।

होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए दो डंडे स्थापित
किये जाते हैं, जिनमेंसे एक को होलिका तथा दूसरेको प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्रमें होलिका दहनके लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्रमें होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अशुभ फल मिलते हैं। क्योंकि होलिका दहन की परम्पराको सनातन धर्मको माननेवाले सभी मानते हैं, इसलिए होलाष्ट्क की अवधि में हिन्दू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। संपूर्ण देश के अनेक भागों में होलाष्टक नहीं मानते।लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है, इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं । फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए। होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी एवं होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिनको होलाष्ट्क प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है।होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबंधित क्षेत्रमें होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य सम्पन्न नहीं किया जाता है।

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मान्यता -:
ऐसा माना जाता है कि राजा हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रहलाद को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक कई प्रकार की यातनाएं दी थीं । इसके अतिरिक्त भगवान शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन कामदेव को अपनी क्रोध अग्नि से भस्म कर दिया था। इस कारण होलाष्टक में शुभ कार्य
वर्जित माने गए हैं। इस दौरान विवाह, यज्ञोपवीत, मुंडन
आदि शुभ कार्य नहीं करते। जप, तप, ध्यान आदि अवश्य करना चाहिए।

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लेखक -: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी।

By admin

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