21 अगस्त 2023 को एक साथ मनाई जाएगी इस बार नागपंचमी एवं बिरुडा पंचमी —
नाग पंचमी व्रत भारतवर्ष में अलग-अलग समय में मनाया जाता है। मुख्य रूप से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी व्रत मनाया जाता है।

शुभ मुहूर्त—– इस बार सन 2023 में दिनांक 21 अगस्त 2023 दिन सोमवार को मनाई जाएगी।
यदि पंचमी तिथि की बात करें तो इस दिन पंचमी तिथि 50 घड़ी 35 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 2:00 बजे तक है। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो इस दिन चित्रा नामक नक्षत्र अहोरात्र तक है। यदि योग की बात करें तो इस दिन शुभ योग 41 घड़ी 13 पल अर्थात रात्रि 10:15 बजे तक रहेगा। यदि करण की बात करें तो बव नामक करण 18 घड़ी 43 पल अर्थात दोपहर 1:15 बजे तक रहेगा। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव साम 5:24 बजे तक कन्या राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव तुला राशि में प्रवेश करेंगे।

प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी व्रत पूरे उत्तर और मध्य भारत में बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से कालभय, सर्प भय नहीं रहता है। नाग पंचमी के व्रत का सीधा संबंध उस नाग पूजा से भी है जो शेषनाग भगवान शंकर और भगवान विष्णु की सेवा में तत्पर हैं और उनकी पूजा से शिव पूजा विष्णु पूजा के तुल्य फल प्राप्त होता है। नाग जाति का वैदिक युग में बहुत लंबा इतिहास रहा है जो भारत से लेकर चीन तक फैला है चीन में आज भी ड्रैगन यानी महा नाग की पूजा होती है और उनका राष्ट्रीय चिन्ह भी यही ड्रैगन है।
पृथ्वी पर नागों के चित्र अंकित करके काष्ट या मिट्टी के नाग बनाकर पंचमी के दिन करवीर, कमल, चमेली ,आदि पुष्पगंधा और विविध नैवेद्य से उसकी पूजा करके खीर लड्डू ब्राह्मणों को खिलाएं । कुछ वर्षों पहले कई जगहों पर सपेरे भी नाग अजगर लेकर घूमते थे पर अब वन्यजीव एक्ट के अंदर जिंदा सर्प कैद करना भी जुर्म है अतः शहरों में सपेरे भी कम दिखाई देते हैं। प्रतीकात्मक नाग बनाकर पूजना ही बेहतर है। देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में आदिकाल से ही महिलाएं कागज या दीवार पर तुरई के हरे पत्तों के रंग से नाग की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं। देवभूमि में तो कई जगहों के नाम भी नागों के नाम से प्रसिद्ध है प्रचलित हैं। जैसे बेरीनाग यह वास्तव में बेडीनाग है यहां ऐतिहासिक वेरीनाग मंदिर है कालांतर में यह “वेणीनाग” नाम से प्रचलित था फिर अंग्रेजों के शासनकाल से वह वेरीनाग हो गया ।
नागों के कई नाम है जैसे शेषनाग, अनंत ,वासुकी, शंख ,पदम् ,कंबल ,कर्कोटक, शंखपाल ,तक्षक ,विषधर ,शेषनाग आदि। मुख्य रूप से 12 प्रकार के नामों का वर्णन है। जो भी कोई नागपंचमी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करता है उसे शुभ फल प्राप्त होता है। इस दिन नागों को दूध का स्नान पान कराने से सभी बड़े-बड़े नाग अभयदान देते हैं। परिवार में सर्पभय नहीं रहता है।
अनेक नाग अपने कर्म और विद्वता से ऋषि पद तक पहुंचे हैं। ऐसे कई नामों का उल्लेख ऋग्वेद में है। कपिल मुनि भी नागराज थे जिन्होंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म किया था। महर्षि जरत्कारु भी ऐसे ही नाग थे। जरत्कारु वासुकी नाग की बहन मनसा के पुत्र थे। जरत्कारु के पुत्र आस्तिक ने तो जन्मेजय के यज्ञ में अनेकों नागों की जान बचाई थी । कुछ नाग शेष और अनंत के रूप में अति उच्च स्थान पाने में समर्थ हुए। आर्यों को समुद्र मंथन में अनंत नामक नाग का सहयोग लेना पड़ा था क्योंकि वह समुद्री कार्य में विशेष दक्ष थे। नागों ने मंदराचल पर्वत के रास्ते पर भूमि को काटने छांटने और समुद्री यात्रा में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी। वासुकी ने समुद्र मंथन में मदद की पर समुद्र की प्राप्तियों को आर्यों ने नागों में नहीं बांटा इससे नाग रुष्ट हो गए और आर्यों को समय-समय पर तंग करने लगे। यदि महाभारत की बात करें तो अर्जुन ने खांडव वन का दाह करके नाग जाति को बहुत हानि पहुंचाई थी। कृष्ण ने मथुरा तक फैले हुए नागों का भारी विध्वंस विनाश किया। नागों ने हसनापुर राज्य से बदला लेने का निश्चय किया। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अनेक नाग पुरुषों को बंदी बनाकर उन्हें आग में जीवित झोंक दिया महर्षि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक नागराज बने थे। उन्होंने कुछ प्रमुख नागों को बचा दिया। नागों का क्षेत्र बहुत व्यापक था कुरुक्षेत्र में उनका प्रमुख राज्य था। प्रयाग में भी उनका प्रमुख राज था। प्रयाग में गंगा के किनारे वासुकी का मंदिर आज भी विराजमान है। महाभारत में यदि जरासंध पर्व की बात करें उसके अनुसार मगध में राजगृह में नाग वंश के राज्य का उल्लेख है। यहां राजगृह की खुदाई में मणि नाथ का मंदिर भी मिला है।

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नाग पंचमी की पौराणिक कथा।—–

एक बार राक्षस और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से अत्यंत श्वेत उच्चै: श्रवा नाम का एक घोड़ा निकला। उसे देखकर नाग माता कदुरु ने अपनी सौतन विनता से कहा कि देखो यह घोड़ा सफेद रंग का है परंतु इसके बाल काले रंग के दिखाई पड़ते हैं। वनीता ने कहा कि नहीं न तो यह घोड़ा श्वेत रंग का है नहीं काला नहीं लाल है। यह सुनकर कदरु ने कहा आप मेरे साथ शर्त लगा लो जो भी शर्त जीतेगी वही दूसरी उनकी की दासी बन जाएगी। विनीता ने शर्त स्वीकार कर ली। दोनों अपने स्थान पर चली गई, कदरु ने अपने पुत्रों नागों को बुलाकर सारा वृत्तांत सुनाया और कहा कि आप सभी सूक्ष्माकार के होकर इस घोड़े में चिपक जाओ ताकि मैं शर्त जीतकर विनता को अपनी दासी बना सकूं। माता के इस कथन को सुनकर नागों ने कहा मां आप शर्त जीतें या हारें परंतु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे । कदरु ने कहा तुम मेरी बात नहीं मानते? मैं तुम्हें श्राप देती हों कि पांडवों के वंश में उत्पन्न जन्मेजय जब सर्प यज्ञ करेगा तब तुम सभी उस अग्नि में जल जाओगे । माता का श्राप सुनकर सभी घबराए और वासुकी को साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सारी घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने कहा चिंता मत करो यायावर वंश में बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारु नामक ब्राह्मण उत्पन्न होगा। उसके साथ आप अपनी बहन का विवाह कर देना। उसी से आस्तिक नाम का पुत्र उत्पन्न होगा वही जन्मेजय के सर्प यज्ञ को रोककर आपकी रक्षा करेगा। ब्रह्मा जी ने यह वरदान पंचमी के दिन दिया था और आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी। तभी नाग पंचमी की तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है। सावन शुक्ल पंचमी को उपवास कर नागों की पूजा करनी चाहिए। 12 महीने तक प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को एक बार भोजन करके पंचमी को व्रत करें। जो भी कोई नागपंचमी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करता है उसे शुभ फल प्राप्त होता है। ऐसे जातक जिनके कुंडली में कालसर्प योग है उन्हें मुख्य रूप में इस दिन एक विशेष प्रकार की पूजा करके चांदी के बने नाग और नागिन पूजा के उपरांत बहते हुए जल में विसर्जित करने होते हैं।
नाग पंचमी की सबसे प्राचीन कथा।–
प्राचीन समय की बात है एक सेठ के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदुषी और सुशील थी परंतु उसके भाई नहीं था।
1 दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहू को साथ चलने को कहा तो सभी थैलियां और कुदाल लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला जिसे बड़ी बहू कुदाल से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा इसे मत मारो यह बेचारा निरपराध है।
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सब के साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंस गयी सर्प से जो वादा किया वह भूल गई।
उसे दूसरे दिन जब बात याद आई तो सबको साथ लेकर वह वहां गई और सर्प को वहां पर बैठा देखकर बोली -सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा तू भैया कह चुकी है इसलिए तुझे छोड़ देता हूं नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली भैया मुझसे भूल हो गई उसकी क्षमा मांगती हूं। तब सर्प बोला अच्छा तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो मांग ले। वह बोली भैया मेरा कोई भाई नहीं है अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहन को भेज दो। सब ने कहा कि इसके तो कोई भाई नहीं था तो वह बोला मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वही सर्प हूं इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाइयां हो वहां तू मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने ऐसा ही किया और दोनों घर पहुंच गए। वहां के धन ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई। 1 दिन सर्प की माता ने उससे कहा मैं एक काम के लिए बाहर जा रही हूं। तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान नहीं रही उसने गर्म दूध पिला दिया। जिससे उसका मुंह बुरी तरह जल गया।
यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हो गई। परंतु सर्प के कहने पर शांत हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना चांदी जवाहरात वस्त्र आभूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहु ने ईर्ष्या से कहा भाई तो बड़ा धनवान है तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दी। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन्हें साफ करने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाड़ू भी सोने की लाकर रख दी।
सर्प ने अपने छोटी बहन को हीरे मोतियों की एक हार भी दी। उस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए। राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठ जी से जाकर कहा की महारानी छोटी बहू का हार पहनेगी वह उसे लेकर मुझे दे दो। सेठ जी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगा कर दे दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की भैया !रानी ने हार छीन लिया है तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मोतियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना वैसे ही वह हार सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देखकर राजा ने सेठ के यहां खबर भेजी की छोटी बहू को तुरंत यहां भेजो। सेठ जी डर गए कि राजा न जाने क्या कर देगा। सेठ जी स्वयं छोटी बहू को लेकर राजमहल पर पहुंचे।
राजा छोटी बहू से बोला तूने यह क्या जादू कर दिया यह हार सर्प बन गया है। छोटी बहू बोली महाराज यह हार है ही ऐसा जब किसी और के गले में पहनाया जाता है तो यह सर्प बन जाता है और मेरे गले में फिर वही हीरे मोती का बन जाता है। राजा ने छोटी बहु से हार पहनने को कहा जैसे ही छोटी बहू ने हार पहना वह हीरे मोती का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दी। छोटी बहू वह अपने हार और धन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।
तभी इस समय सर्प ने प्रकट होकर कहा यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूंगा यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती है।

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लेखक–: पण्डित प्रकाश जोशी,गेठिया नैनीताल ।

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