देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र अंतर्गत चहज में सन 2020 एवं 2021 में कोविड-19 के कारण पांडव पड़वा मेला नहीं लग पाया। इस वर्ष 2022 में 2 वर्ष के अंतराल बाद इस बार बड़े हर्षोल्लास के साथ पांडव पड़वा मेला लगा । जो आज पहली नवरात्र को मनाया गया। यहां पड़वा मेला प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि के पहले दिन पड़वा अर्थात शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एवं आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। बहुत दूर-दूर से लोग इस मंदिर में श्रद्धा एवं भक्ति से आते हैं। यहां मंदिर में पूजा अर्चना के बाद लोग मंदिर परिसर में ही पंडितों के श्री मुख से नव संवत्सर का श्रवण करने के बाद मेले में शामिल होते हैं। इस पांडव मंदिर के संबंध में माना जाता है कि स्वर्गारोहण के समय पांडव यहां आए थे। यहां के पांडव मंदिर के संबंध में एक प्राचीन कथा यह है कि आज से 500 वर्ष पूर्व समीप के गांव ड्यूल के बिष्ट लोगों की गायें यहां घास चरने आती थी। संयोग से 1 दिन गाय घास चरने के उपरांत एक पाषाण शिला पर दूध देती थी। और घर जाने के उपरांत दूध नहीं देती थी। तब गांव वालों को शक हुआ कि गाय दूध क्यों नहीं दे रही है। तब उन्होंने 1 दिन दिन भर गायों पर पूर्ण नजर रखने का फैसला किया। तब उन्होंने देखा की गाय एक पाषाण शिला को दुग्ध पान करा रही है। क्रोध में आकर चरवाहे ने उस पाषाण शिला पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया । कुल्हाड़ी के प्रहार करते ही पाषाण शिला से एक रक्त की धार निकली और आकाशवाणी हुई की अरे यह क्या किया? तुमने पांडवों द्वारा स्थापित इस पाषाण शिला पर प्रहार क्यों किया? और आकाशवाणी में यह भी कहा गया की सभी गांव वाले इस पाषाण शिला का पूजन करो और जो झांसी से आया हुआ जोशी परिवार है उसे यहां का पुजारी नियुक्त करो जो यह देव आज्ञा नहीं मानेगा वह नष्ट हो जाएगा। उस समय ड्यूल गांव में बिष्ट लोगों की 22 परिवार मौजूद थी। उसमें से 21 परिवारों ने आकाशवाणी को मानने से इनकार कर दिया वह समाप्त हो गए डर से 22 वें परिवार ने ऐसा ही किया। तब से चहज के जोशी परिवार को ही मन्दिर का पुजारी का अधिकार प्राप्त है। पांडव मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को एवं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मेले लगते हैं।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल