10 मई को हो सकते हैं विवाह आदि शुभ लग्न ।
*आज से लग जाएगा विवाह आदि कार्यों में विराम। क्यों वर्जित है शुक्रास्त में विवाह लग्न आइए जानते हैं।*
आज 28 अप्रैल से विवाह आदि के लिये लग्न के मुहूर्त नहीं हैं। क्योंकि शुक्र अस्त में विवाह लग्न वर्जित माने गए हैं। हां, 10 मई को अक्षय तृतीया के दिन विवाह कराये जा सकते हैं।
10 को है अबूझ मुहूर्त
धर्म शास्त्रों की ज्योतिष गणना के अनुसार गुरु शुक्र अस्त में विवाह आदि मांगलिक कार्य पूर्णतया वर्जित
माने गये हैं। इसलिए गुरु शुक्र अस्त के कारण किसी भी पंचांगों में मई – जून के विवाह मुहुर्त नहीं दिए गए
हैं। लेकिन अक्षय तृतीया को अबूझ मुहुर्त विवाह के लिए माना जाता है। जो 10 मई को है। ऐसे में अबूझ मुहुर्त चलते इस दिन विवाह अधिक संख्या में होंगे। 9
जुलाई से विवाह मुहूर्त शुरू होंगे। जो, 15 जुलाई तक मात्र कुछ दिन जारी रहेंगे। बहुत से पाठकों के मन में यह जिज्ञासा होगी कि आखिर यह शुक्रास्त्र है क्या चीज और कैसे होता है ?तो पाठकों की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा की हमारे सौरमंडल के नवग्रहों में शुक्र का विशेष महत्व है। शुक्र आकाश में सबसे तेज चमकने वाला तारा माना जाता हैं। शुक्र जब
सूर्य के दोनों ओर 10(अंश) डिग्री या इससे अधिक पास आ जाता है तो शुक्र अस्त हो जाता है।
ज्योतिष में ग्रहों के राजा सूर्य के निकट जब
कोई ग्रह एक तय दूरी पर आ जाता है तो वह
सूर्य ग्रह के प्रभाव से बलहीन हो जाता है।
यही अवस्था ग्रह का अस्त होना मानी जाती
है। शुक्र चूंकि सुख, वैवाहिक जीवन,
विलासता, विवाह, धन, ऐश्वर्य का कारक माने
गए हैं ऐसे में शुक्र के अस्त होने पर कोई मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है ।
*जानिए अक्षय तृतीया को क्यों होता है अबूझ मुहूर्त।*
आखातीज आर्थांत अक्षय तृतीया को सूर्य व चन्द्रमा उच्च के होते हैं। यानी सूर्य मेष राशि में व
चन्द्रमा वृषभ राशि में होते हैं। इससे आखातीज
को किसी प्रकार का दोष नहीं लगता। इसी कारण
आखातीज अबूझ मुहुर्त होता है। आखातीज या
अक्षय तृतीया को किए सभी मांगलिक कार्य
अक्षय हो जाते हैं।
*क्यों वर्जित है शुक्रास्त में विवाह लग्न?*
पाठकों की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा कि शुक्रास्त में विवाह क्यों वर्जित है। इसके लिए आपको यह कथा पढ़नी नितांत आवश्यक है।
प्राचीन काल की बात है।
एक नगर में 3 मित्र रहते थे। एक राजकुमार
दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा वनिक पुत्र।
राजकुमार व ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका
था। वनिक पुत्र का विवाह भी हो गया था किंतु गौना शेष था। 1 दिन तीनों मित्र स्त्रियों की
चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की
प्रशंसा करते हुए कहा नारी हीन घर भूतों का
डेरा होता है। वनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरंत ही
अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया। माता
पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र अस्त हुए
हैं अर्थात शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू
बेटियों को उनके घर से विदा करवालाना शुभ
नहीं होता है। किंतु वनिक पुत्र नहीं माना और
ससुराल जा पहुंचा। ससुराल में भी उसे रोकने के बहुत प्रयास किए गए मगर उसने जिद नहीं
छोड़ी। माता-पिता को विवश होकर अपनी
कन्या की विदाई करनी पड़ी। ससुराल से विदा
हो पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि
उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया और एक बैल की टांग टूट गई। दोनों को अत्यधिक
चोटें आई फिर भी वे आगे बढ़ते रहें। कुछ दूर
जाने पर उनकी भेंट डाकुओं से हो गई। डाकू
धन लूट ले गए। दोनों रोते हुए घर पहुंचे वहां
वनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता
ने वैद्य को बुलाया। वैद्य ने निरीक्षण के बाद
घोषणा की कि वनिक पुत्र तीन दिन में मर
जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार
मिला तो वह तुरंत आया। उसने माता पिता को
शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्श दिया और कहा इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें।
यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त मैं पत्नी को विदा करा लाया है। यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा। वनिक को ब्राह्मण कुमार की बात
ठीक लगी उसने वैसा ही किया। ससुराल
पहुंचते ही वनिक कुमार की हालत ठीक होती
चली गई। शुक्र प्रदोष के महात्म्य से सभी घोर
कष्ट टल गये । प्रिय पाठकों को इस कथा से
सीख भी प्राप्त हो गई होगी की इसीलिए शुक्रास्त के समय विवाह लग्न नहीं होते हैं या विवाह नहीं कराए जाते हैं।
*लेखक–: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया, नैनीताल ।