*धर्म एवं आस्था का केंद्र और बाबा जी नीम करोली महाराज की* *मनसा सिद्धि का प्रतीक श्री कैंची धाम मंदिर।*


बाबा जी महाराज की मंशा मन में उठी मौज लहर बात ही उनका
संकल्प बन जाती थी। ऐसी मौज में उठी
मनसा कब कैसे किस रूप में पूरी होगी केवल
वे ही जानते थे। वर्ष 1942 में कैंची ग्रामवासी
पूर्णानन्द तिवारी जी सवारी के अभाव में
नैनीताल से गेठिया होते हुए अकेले कैची को
लौट रहे थे। रात होने को आ गई थी। थके
महादेव तिवारी आगे खूपी डांट नामक जगह में
तथाकथित भूत से डरे हुए आगे बढ़ रहे थे।
और खूपी डॉठ पर उन्हें एक स्थूल काय व्यक्ति
कंबल में लिपटा दिखाई दिया। तिवारी जी
बहुत डर गए। उस व्यक्ति ने उनका नाम लेकर
पुकारा और उनके वहां इस समय आने का कारण भी बता दिया यह थे बाबा नीम करोली
जी महाराज। तिवारी जी कुछ अस्वस्थ हुए बाबा जी ने उनसे कुछ और बातें की और निडर
होकर आगे बढ़ने को कहा तथा यह भी कहा
कि आगे जाकर ट्क मिल जाएगा। तब बाबा
जी से तिवारी जी ने पूछा महाराज अब फिर
दर्शन कब होंगे। जवाब मिला 20 साल बाद।
कुछ विश्वास और कुछ अविश्वास लेकर तिवारी
जी आगे बढ़े । बाबा जी भी दूसरी दिशा को
आगे बढ़े। और शीघ्र ओझल हो गए तिवारी जी
की दुष्टि से तिवारी जी को कुछ ही देर बाद ट्रक
मिल गया और ठीक 20 वर्ष बाद सन 1962
में जब बाबाजी तुलाराम शाह जी एवं श्री सिद्धि मां के साथ टैक्सी में रानीखेत से लौट
रहे थे नैनीताल के लिए तो बाबा जी कैंची में
उतर गए। यहां बता दूं कि रानीखेत जाते समय
रास्ते में महाराज जी के मुंह से एकाएक निकल
गया” श्यामलाल बड़ा अच्छा आदमी
था” श्याम लाल जी तुला राम जी के समधी थे।
श्री मां को महाराज जी का श्याम लाल जी के प्रति “था” शब्द का उपयोग तभी खटक गया
था। और रानीखेत पहुंचने पर दूरभाष से खबर
मिली कि श्याम लाल जी की हार्ट फेल से मृत्यु
हो गई उसी दिन। इसी सिलसिले में श्री मां और
तुला राम जी नैनीताल वापस जा रहे थे।
बाबा जी कुछ देर सड़क के पैराफिट पर बैठे
हैं। तब एक व्यक्ति द्वारा पूर्ण आनंद जी को
बुलाया गया 20 साल पूर्व की स्मृति ताजा हुई।
स्थान के बारे में चर्चा हुई और बाबा जी ने उस
स्थान को देखने की इच्छा प्रकट की जहां साधु
प्रेमी बाबा तथा सोमवारी महाराज ने वास
किया था। और हवन किए थे। श्री मां के साथ
बाबा जी ने नदी पार कर अपने पावन चरण
वर्तमान कैंची आश्रम की भूमि पर रखे। तारीख
25 मई सन 1962 घास जंगल साफ कर उस
हवन कुंड को बाबा जी को दिखाया गया,बाबा
जी ने आज्ञा दी कि फॉरेन इस कुंड को चबूतरे
से ढक दिया जाए। जब यह कार्य हो रहा था तो जंगलात के लोगों ने आपत्ति की। बाबा जी ने
शीघ्र तत्कालीन चीफ कंजरवेटर से दूरभाष
द्वारा संपर्क किया और लीज में कैंची कि यह
भूमि जो आज मंदिरों और आश्रम से
आच्छादित है अधिग्रहित कर ली। और इस
प्रकार 20 वर्ष पूर्व की मनसा शक्ति ने श्री कैंची
धाम की स्थापना का श्रीगणेश कर दिया जिस
का वर्तमान रूप आज दृष्टिगोचर हो रहा है।
इसी चबूतरे के ऊपर हनुमान जी का मंदिर
खड़ा है तथा इसके पीछे गुफा में सोमवारी
बाबा की धोनी के अवशेष भी सुरक्षित हैं। अब बाबा जी जब भी उत्तराखंड को आते तो
अधिकतर गेठिया भूमियाधार और कैंची में ही रहते थे। भक्तों भंडारों कीर्तन भजनों की धूम
मच गई। 15 जून को हनुमान जी की कथा
अन्य मन्दिर की प्रतिष्ठित मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा धूमधथाम से संपन्न हुई। और 15 जून का दिन सदा के लिए कैंची धाम में मालपुआ के भंडारे के लिए नियत हो गया। आज इस 15 जून के भंडारे में हजारों भक्तगण थक थक कर प्रसाद पाते हैं तथा बांध कर घर भी ले जाते हैं। सभी खाद्य सामग्री शुद्ध घी में बनती है। इन सब का प्रबंध कैसे होता है? उस समय
महाराज जी ने कहा था कि ऐसा समय आएगा
कि इस मंदिर में आने का रास्ता अलग और
जाने का रास्ता अलग होगा क्योंकि भीड इतनी
बढ़ जाएगी कि ऐसा ही करना पड़ेगा। अब
पहले 15 जून के भंडारे के लिए मंदिर से भंडारे
तक जाने के लिए दो दरवाजे बनाने पड़े और
सन 1988 से 15 जून के लिए मंदिर से बाहर
जाने के लिए दूसरा पुल बनाया गया सन 1991 के 15 जून के भंडारे में पुलिस बनाई गई जिसमें तकरीबन 30 पुलिसवाले ट्रेफिक को कंट्रोल करने के लिए आए थे। वह कहते थे कि जब हमें ट्रैफिक को कंट्रोल करने में दिक्कत हो रही है तो मंदिर में इतने भक्तों को भंडारा कैसे खिलाया जा रहा होगा? परंतु
महाराज जी का खेल इतनी भीड़ आकर
बिल्कुल शांति से भंडारा पाकर दर्शन करके
ऐसे ही वापस जा रही थी। कहते हैं कि उस
समय ऐसा लग रहा था जैसे महाराज जी स्वयं
ही आकर सभी कुछ कर रहे हो। यह महाराज
जी की अपनी सारस्वत शक्ति का प्रतीक है।
इसी प्रकार 15 जून 1973 को श्री विंध्यवासिनी देवी और 15 जून 1974 को श्री
वैष्णवी देवी के मंदिर की स्थापना श्री कैंची
धाम में हुई। श्री विंध्यवासिनी देवी मंदिर की स्थापना का पूरा प्रबंध अपने निर्माण के पूर्व महाराज जी स्वयं कर गए थे। प्रतिष्ठा समारोह
की सबसे अद्भुत घटना प्रत्यक्षदर्शियों के
अनुसार यह थी कि बाबा जी महाराज ने स्वयं
एक छोटी बाल्टी भर दूध हनुमान जी को अपने
हाथों से पिला दिया। वहां उपस्थित लोगों ने
यही देखा किे बाल्टी का दूध थोड़ी देर में ही
खत्म हो गया और केवल एक पतीली दूध की धार फर्श पर गिरी थी और कुछ दूध हनुमान जी
के होठों से लगा था। आश्रम तथा मंदिर के प्रति भक्तों के अंतर में भक्ति निष्ठा श्रद्धा त्याग आदि स्पंदित होते रहे इस हेतु बाबा जी ने यहां कई
उत्सव जैसे 15 जून का प्रतिष्ठान दिवस श्री
गुरु पूर्णिमा रक्षाबंधन जन्माष्टमी एवं शरद
कालीन नवरात्रि में दुर्गा पूजा एवं हवन की
पद्धति प्रारंभ करा दी थी। जो यथावत अब भी
चलती रहती है तथा जिसमें प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में भक्तों एवं अन्य साधारण जन पूजा
एवं भंडारों में सम्मिलित होते हैं। साथ में 15
अप्रैल से 15 अक्टूबर तक नाम कीर्तन होता
है। यहां तक कि विगत वर्ष से देश के प्रधानमंत्री, उप-राष्ट्रपति तथा अनेकों वी आई पी जन श्रद्धालु जन यहां दर्शनार्थ पंहुच रहें हैं।
बजरंगबली हनुमान जी की कृपा एवं बाबा नीम करोली महाराज जी की कृपा आप और हम सभी पर बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।
*लेखक-: पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*

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