*शुभ मुहूर्त*
इस दिन यदि द्वितीया तिथि की बात करें तो 17 घड़ी 50 पल अर्थात दोपहर 1:47 बजे तक द्वितीया तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन जेष्ठा नामक नक्षत्र 50 घड़ी 45 पल अर्थात अगले दिन प्रात 2:57 बजे तक है ।यदि करण की बात करें तो इस दिन कौलव नामक करण 17 घड़ी 50 पल अर्थात दोपहर 1:48 बजे तक है ।सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे।
भाई दूज का त्योहार
15 नवंबर दिन बुधवार यानी कल मनाया जाएगा। इसके साथ
ही कार्तिक पंचपर्व का समापन हो जाएगा। भाई दूज के दिन
बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं।भाई को च्यूड़े पूजती है। च्यूड़े पूजने से पूर्व दुर्वा से सिर पर सरसों का तेल धारण किया जाता है।हाथ पर कलावा
बांधती हैं और उनकी लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना
करती हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दिन जो भाई बहन से
तिलक करवाता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है।
*भाई को तिलक करने का मुहूर्त*
इस वर्ष भाई दूज पर भाई को तिलक करने के दो शुभ मुहुर्त
हैं। पहला शुभ मुहुर्त प्रातः 6 बजकर 44 मिनट से प्रातः 9
बजकर 24 मिनट तक है। जबकि दूसरा शुभ मुहूर्त सुबह 10
बजकर 40 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजे तक है। इसके बाद राहुकाल शुरू हो जाएगा।
*कैसे मनाएं भाई दूज?*
भाई दूज के दिन भाई प्रातःकाल चन्द्रमा के दर्शन करें
और शुद्ध जल से स्नान करें, भाई दूज के मौके पर बहनें, भाई
के तिलक और आरती के लिए थाल सजाती हैं। इसमें च्यूड़े दुर्वा, सरसों के तेल के अतिरिक्त कुमकुम,सिंदूर, चंदन, फल, फूल, मिठाई और सुपारी आदि सामग्री होनी चाहिए।
भैया दूज की पौराणिक कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था।
उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ
था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह
उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित
उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त
यमराज बात को टालता रहा। कातिक शुक्ला का
दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को
भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे आपने घर आने
के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूँ।
मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन
जिस सद्धावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन
करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज
ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर
दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना
की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर
पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया।
यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न
होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे
घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने
भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे
तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर
यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की
राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी
मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें
यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को
यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
लेखक–: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया नैनीताल।