कब है तुलसी एकादशी? जानते हैं शुभ मुहूर्त , पूजा विधि एवं व्रत कथा।


आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी, हरि शयनी एकादशी, पदमा एकादशी और कुमाऊं में तुलसी एकादशी के नाम से जाना जाता है। देवभूमि उत्तराखंड में इसे तुलसी एकादशी के नाम से ही जाना जाता है। इस दिन तुलसी वृंदावन में तुलसी के पौधे रोपे जाते हैं और चातुर्मास भर उनकी पूजा की जाती है। जो लोग संपूर्ण वर्ष भर एकादशी का व्रत नहीं रख पाते हैं वह सिर्फ आषाढ़ मास के देवशयनी एकादशी व्रत से लेकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात हरि बोधनी एकादशी तक व्रत ले सकते हैं। देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास के हरि बोधनी एकादशी तक तुलसी वृंदावन में प्रत्येक दिन जल चढ़ाया जाता है एवं प्रातः सायं वहां पर प्रतिदिन दिया जलाया जाता है और हरि बोधिनी एकादशी के दिन व्रत उद्यापन किया जाता है।
शुभ मुहूर्त इस बार सन् 2023 में देवशयनी एकादशी व्रत दिनांक 29 जून 2023 दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन एकादशी तिथि 53 घड़ी 30 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 2:42 बजे तक है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन स्वाति नामक नक्षत्र 27 घड़ी 53 पल अर्थात शाम 4:27 तक है तदुपरांत विशाखा नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन सिद्धि नामक योग 55 घड़ी 55 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 3:40 बजे तक है। यदि करण की बात करें इस दिन वणिज नामक करण 24 घड़ी 33 पल अर्थात शाम 3:07 बजे तक है। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण तुला राशि में विराजमान रहेंगे।

व्रत कथा—एक बार पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा- हे केशव! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं। एक समय नारद जी ने ब्रह्मा जी से यही प्रश्न किया था। तब ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया कि हे नारद! तुमने कलयुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न किया है। क्योंकि देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इसी व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वह नर्क गामी होते हैं। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस एकादशी का नाम पदमा एकादशी भी है। अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूं। तुम मन लगाकर सुनो । सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है। जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी प्रजा धन-धान्य से परिपूर्ण और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था। एक समय उस राजा के राज्य में 3 वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञ आदि भी बंद हो गए एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजन !सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन !कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना के साथ लेकर एक वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषि-मुनियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतर कर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशल सेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवान !सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। जब मैं धर्म अनुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म के चारों चरण सम्मिलित हैं। अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज! मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देव शयनी नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त पापों का नाश करने वाला है। एकादशी का व्रत तुम प्रजा सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक देवशयनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अतः इस मास की एकादशी का व्रत सभी मनुष्य को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इसके अतिरिक्त इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा विधि—
देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पवित्र नदियों या जल स्रोत के पास या सरोवर मैं स्नान करें। यदि ऐसा संभव ना हो तो घर में ही स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। तदुपरांत व्रत का संकल्प लें। इस दिन तुलसी वृंदावन में तुलसी के पांच पौधे रोपे। उन्हें जल अर्पित करें और रोली कुमकुम चढ़ाएं।भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार पूजन करना चाहिए सर्वप्रथम उन्हें स्नान करावे फिर पंचामृत स्नान करवाकर पुनः शुद्ध जल से स्नान करावे तत्पश्चात भगवान को रोली कुमकुम चढ़ाएं अक्षत में चावल की जगह जौ का प्रयोग करें। भगवान को धूप दीप पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए। भगवान को तांबूल पुंगी फल अर्थात सुपारी और पान का पत्ता अर्पित करने के बाद उनकी स्तुति की जानी चाहिए इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताए गए हैं उनका सख्ती से पालन करना चाहिए। ध्यान रहे उस दिन घर में कोई भी व्यक्ति चावल का प्रयोग ना करें।

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लेखक-: पंडित प्रकाश चन्द्र जोशी गेठिया,नैनीताल ।

By admin

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