नैनीताल । सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट बार कौंसिल्स से नए अधिवक्ताओं के पंजीयन में अधिवक्ता एक्ट में निर्धारित शुल्क से अधिक फीस न लेने के निर्देश देने के बाद उत्तराखंड बार काउंसिल ने फिलहाल नए अधिवक्ताओं के पंजीयन की प्रक्रिया रोक दी है । पंजीयन की यह प्रक्रिया अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशा निर्देशों के बाद शुरू होगी । उत्तराखंड बार काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र सिंह पाल की ओर से जारी आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गौरव कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में 30 जुलाई को जारी निर्देश का हवाला देते हुए बताया है कि अधिवक्ताओं के नए पंजीयन में तत्काल रोक लगा दी गई है ।
यहां बता दें कि देश की कई स्टेट बार कौंसिल्स द्वारा एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24 में अधिवक्ताओं के पंजीयन हेतु निर्धारित शुल्क से कई गुना अधिक फीस वसूली जा रही थी । जिसमें सबसे अधिक उड़ीसा बार काउंसिल शामिल था । जबकि गुजरात दूसरे,उत्तराखंड तीसरे व केरल चौथे नम्बर पर था । उत्तराखंड बार काउंसिल द्वारा अधिवक्ता पंजीयन शुल्क 6 हजार सहित अन्य खर्चों के साथ करीब 25 हजार रुपये वसूल किये जा रहे थे । उड़ीसा में यह शुल्क 42 हजार था । गुजरात का शुल्क भी उत्तराखंड के करीब है ।
इस अत्यधिक पंजीयन शुल्क के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं विचाराधीन थी । जिस पर 30 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सख्त निर्देश देते हुए कहा कि अधिवक्ताओं के पंजीयन में स्टेट बार कौंसिल्स अधिवक्ता एक्ट में निर्धारित शुल्क से अधिक शुल्क नहीं ले सकते । यह संसद द्वारा बनाये गए कानून का उल्लंघन है । अधिवक्ता एक्ट के मुताबिक सामान्य श्रेणी के लॉ स्टूटेंट से रु.750 व आरक्षण श्रेणी के स्टूडेंड से मात्र रु.125 रुपये ही पंजीयन शुल्क लिया जाना है ।