गुणादित्य में होगी भगवान आदित्य की पूजा ।
*15 दिसंबर को है इस बार पूस का पहला रविवार, पांच रविवार होंगे इस बार पौष मास में, क्या है गुणादित्य मन्दिर की विशेषता जानिए इस आलेख में।*
15 दिसंबर को है इस बार पौष माह का पहला रविवार। इस बार पौष मास में पांच रविवार होंगे। पौष माह की शुरुआत रविवार से शुरू होने के कारण इस बार पोस्ट माह में पांच रविवार होंगे। पहले रविवार 15 दिसंबर 2024,दूसरा रविवार 22 दिसंबर 2024, तीसरा रविवार 29 दिसंबर 2024 , चौथा रविवार 5 जनवरी 2025, तथा पांचवा रविवार दिनांक 12 जनवरी 2025 को होगा। पौष माह में पांच रविवार होना बहुत शुभ माना जाता है।
हमारे सनातन धर्म में पौष मास के रविवार व्रत का बहुत महत्व है। वैसे
तो पौष रविवार व्रत संपूर्ण भारत वर्ष में प्रचलित हैं परंतु हमारी
देवभूमि के उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में यह बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। इस दिन भगवान सूर्य देव
की पूजा बड़े विधि विधान के साथ की जाती है। इस दिन यदि संभव
हो तो महिलाएं सूर्य मंदिर में पूजा करें अन्यथा घर पर ही करें।भारतवर्ष में दो मुख्य सूर्य मंदिर हैं
एक दक्षिण भारत के कोणार्क का सूर्य मंदिर दूसरा हमारी देवभूमि में
कटारमल का सूर्य मंदिर। देव भूमि में इसके अतिरिक्त अल्मोड़ा जनपद के धौलादेवी क्षेत्र अंतर्गत काफलीखान नामक स्थान से लगभग 12 किमी0 दूरी पर
गुणादित्य नामक पावन स्थल पर(आदित्य मंदिर) सूर्य मंदिर है।गुणादित्य गुण और आदित्य शब्दों
के संयोग से बना है। पौष के इतवार को बड़ी संख्या में इस दिन महिलाएं पौष के इतवार व्रत रखकर यहां पूजा अर्चना करने आती हैं।
पूजा विधि-:
देवभूमि के कुमाऊं संभाग में इस दिन महिलाएं प्रातः ब्रह्म मुहुर्त में उठकर पवित्र नदियों में अथवा जल स्रोतों (नौले) मैं जाकर प्रातः 4:00बजे स्नान आदि से निवृत होकर घड़े में शुद्ध जल लाकर सूर्योपासना
करती हैं। और दिन भर निराहार व्रत रखती हैं। महिलाओं के अतिरिक्त कुंवारी कन्याएं भी इस
दिन व्रत रखती हैं। सुमुखश्रेत्यादिना
गणेशाय पुष्पांजलि समर्पय।
हरि:ओम् विष्णुः विषणुः विष्णुः
नमः आदि आदि श्री भास्कर देवप्रीतये तदंग्वेन लिखितयन्त्रे सपरिवारस्य श्री भास्कर देवस्य
षोडशोपचारै.पूजनंकरिष्ये संकल्प लेकर फिर सूर्य देव को अर्ध्य दें
स्नान कराएं तदुपरांत पंचामृत स्नान कराएं तदुपरांत गंधत लेपनम रोली कुमकुम आदि सूर्य देव को चढ़ाएं इसके बाद अंग पूजा करें ओम
मित्राये नमः पादो पूज्यामि, ओम रवे
नमः जंघे पूज्यामि, ओम सूर्यायनम;जानुनिपूज्यामि, ओम खगाय नमः
उरूपूज्यामि आदि आदि सभी अंगों की पूजा करें। तदपरांत सभी महिलाएं एवं कुंवारी कन्या एक
स्थान पर बैठकर किसी ब्राह्मण देव के श्री मुख से रविवार व्रत कथा श्रवण करें।
रविवार व्रत कथा-:
प्राचीन काल की बात है एक बुढ़िया थी जो नियमित तौर पर रविवार के दिन सूर्योंदय से पूर्व उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर अपने आंगन को गोबर से लीपती थी जिससे वह
स्वच्छ हो सके। इसके उपरांत वह सूर्य देव की पूजा अर्चना करती थी।
साथ ही रविवार की व्रत कथा भी सुनती थी। इस दिन वह एक समय
भोजन करती थी और उससे पहले सूर्य देव को भोग भी लगाती थी।
सूर्यदेव उस बुढ़िया से बेहद प्रसन्न थे। यही कारण था कि उसे किसी
भी तरह का कष्ट नहीं था और वह धन-धान्य से परिपूर्ण थी।
जब उसकी पड़ोसन ने देखा कि वह बहुत सुखी है तो उससे बहुत जलने
लगी बुढ़िया के घर में गाय नहीं थी इसलिए वह अपनी पड़ोसन के आंगन से गोबर लाती थी। क्योंकि उसके यहां गाय बंधी रहती थी।पड़ोसन ने बुढिया को परेशान करने
के लिए कुछ सोचकर गाय को घर के अंदर बांध दिया। अगले दिन
रविवार बुढ़िया को आंगन लीपने के
लिए गोबर नहीं मिला । इसके चलते उसने सूर्य देवता का भोग भी नहीं लगा सकी और नहीं खुद
भोजन कर सकी। पूरे दिन भूखी प्यासी रही और फिर सो गई। अगले
दिन जब वह उठी तो उसने देखा कि उसके आंगन में एक सुंदर गाय
और एक बछड़ा बंधा था। बुढ़िया गाय को देखकर हैरान रह गई।
उसने गाय को चारा खिलाया वही उसकी पड़ोसन बुढ़िया के आंगन में अति सुंदर गाय और बछडे को देखकर और अधिक जलने लगी।
पड़ोसन ने उसकी गाय के पास सोने का गोबर पड़ा देखा तो उसने
गोबर को वहां से उठाकर अपनी गाय के गोबर के पास रख दिया।
सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिन में धनवान हो गई कई दिन तक
ऐसा चलता रहा। कई दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में
कुछ पता नहीं था। ऐसे में बुढ़िया पहले की ही तरह सूर्य देव का व्रत
करती रही। साथ ही कथा भी सुनती रही। इसके बाद जिस दिन
सूर्य देव को पड़ोसन की चालाकी का पता चला तब उन्होंने तेज आांधी
चला दी। तेज आंधी को देखकर बुढ़िया ने अपनी गाय को अंदर बांध
दिया। अगले दिन जब बुढ़िया ने गाय के पास सोने का गोबर देखा
तो उसे बहुत आश्वर्य हुआ। उस दिन से उसने गाय को अंदर ही बांधे
रखा। कुछ दिन बाद बुढ़िया बहुत धनवान हो गई। बुढ़िया के सुखी
और धनी स्थिति देखकर पड़ोसन और जलने लगी। पड़ोसन ने अपने
पति को समझा-बुझाकर उस नगर के राजा के पास भेजा जब राजा ने
उस सुंदर गाय को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। सोने के गोबर को देखकर तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहने लगा।
वही बुढ़िया भूखी प्यासी रहकर सूर्य भगवान से प्रार्थना कर रही थी।सूर्य देव को उस पर करुणा आई।उसी साल सूर्य देव राजा को सपने में आए और उससे कहा कि हे
राजन! बुढिया की गाय और बछड़ा तुरंत वापस कर दो। अगर ऐसा नहीं
किया तो तुम पर परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ेगा। सूर्य देव के सपने
ने राजा को बुरी तरह डरा दिया।इसके बाद राजा ने बुढ़िया को गाय और बछड़ा लौटा दिया। राजा ने बुढ़िया को ढेर सारा धन दिया और क्षमा मांगी। वही राजा ने पड़ोसनऔर उसके पति को सजा भी दी।इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में
घोषणा कराई कि रविवार को प्रत्येक व्यक्ति व्रत किया करें । सूर्यदेव का व्रत करने से व्यक्ति
धनधान्य पूर्ण हो जाता है। और घर में सुख शांति भी आती है। तो
बोलिए सूर्य देव भगवान की जय।
कुमाऊँ में पूस के पहले इतवार से बैठकी होली शुरू हो जाती है।
आज से वरसंत पंचमी तक पहाड़ में भक्ति परख
होलियाँ गाई जाएंगी। इन्हें ” निर्वाण ” की होली
कहा जाता है। इन होलियों में देवताओं की
दार्शनिकता और रहस्यात्मकता का वर्णन होता है।आध्यात्मिकता और धार्मिक भावों की प्रधानता होती है।
उदाहरणार्थ –
तुम सिद्धि करो महाराज, होली के दिन में।
सिंद्धि के दाता, विध्न विनासन होली खेलै गिरिजा को नंन्दन,
शंभु को नन्दन,मूसा को वाहन,होली खेले गिरिजा को नंन्दन।
राम,लछिमन,भरत,सहसगुन,होली के दिन में।
तुम सिद्धि करो महाराज,होली के दिन में। आदि आदि,,,
लेखक -:आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया
नैनीताल (नैनीताल)