नैनीताल । उत्तराखंड हाईकोर्ट ने माना है कि अस्वस्थता के कारण यदि पत्नी अप्राकृतिक  यौन संबंध बनाने से इंकार करती है तो इसे पति के प्रति मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट ने इस तथ्य के आधार पर हरिद्वार की एक पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश को सही करार दिया है । पारिवारिक न्यायालय ने पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन अप्राकृतिक संबन्ध बनाने से क्षुब्ध पत्नी के मायके में रहने व पत्नी को 25 हजार व पुत्र को 20 हजार रुपये मासिक भरण पोषण हेतु देने का सितम्बर 2023 में निर्देश दिया था । जिसे उक्त व्यक्ति जो कि पेशे से प्राध्यापक हैं, ने इसे पत्नी द्वारा की जा रही मानसिक क्रूरता बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी ।
  इस याचिका की न्यायमूर्ति  रवींद्र मैठानी की पीठ ने इस आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया ।
  याचिकाकर्ता के अनुसार उनकी दिसंबर 2010 में शादी हुई । लेकिन पत्नी ने कथित  दहेज उत्पीड़न और प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण पोषण का वाद दायर किया । साथ ही पति पर उसकी इच्छा के विरुद्ध बार-बार अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे उसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हुई और कई नामी अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ा ।
आरोप लगाया गया कि उसने अपने बच्चे को धमकाने के लिए अश्लील वीडियो भी दिखाए, हिंसक व्यवहार किया, और बच्चे की स्कूल फीस की उपेक्षा की। यह भी दावा किया गया कि पत्नी को जबरन अप्राकृतिक यौन सम्बंध के कारण लगी चोटों के चलते कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और विभिन्न अस्पतालों में उसका इलाज हुआ। जिसके बाद वह सितम्बर 2016 में पति को छोड़कर चली गई ।
पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों से इनकार करते हुए पति ने दावा किया कि उसने अपनी पत्नी का हर सम्भव ध्यान रखा और शादी के दौरान या बाद में कोई दहेज नहीं मांगा। कहा कि पत्नी ने स्वयं उस के साथ संबंध विच्छेद कर लिया क्योंकि उसने उसके साथ अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाये।  यह भी तर्क दिया गया कि 2018 के नाजतेज सिंह जौहर और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाना कोई अपराध नहीं है। तर्क दिया कि पति को धारा 377 आईपीसी के तहत पत्नी द्वारा अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, इसलिए पत्नी अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाने से इंकार नहीं कर सकती। यदि लंबे समय तक यौन सम्बन्ध बनाने से मना किया जाता है, तो यह एकतरफा निर्णय पति के प्रति मानसिक क्रूरता माना जाएगा।
न्यायालय ने माना कि पत्नी ने दावा किया था कि उसके पति  ने उसकी इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए, जिससे उसे ऐसी चोटें आई जिनका अस्पताल में इलाज की आवश्यकता पड़ी। जिसके साक्ष्य भी दिए गए ।
 जबकि पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी को पहले से ही कब्ज और बवासीर की चिकित्सकीय समस्याएं थीं, जिनका इलाज शादी से पहले भी किया गया था और जर्मनी में इलाज जारी था । लेकिन पति ने अपने दावों को साबित करने के लिए सबूत प्रस्तुत नहीं किए।
 दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने से इंकार करने के वैध कारण थे । क्योंकि वह चोटों के कारण ऐसा करने में शारीरिक रूप से असमर्थ थी। इसलिए यह इंकार मानसिक क्रूरता नहीं है और पत्नी के पति से अलग रहने के पर्याप्त कारण हैं । यह पति के खिलाफ मानसिक क्रूरता नहीं है । हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा है ।

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