*कब है आंवला एकादशी,कब पड़ेगा रंग?आंवले के वृक्ष की पूजा का महत्व कथा एवं शुभ मुहूर्त*
इस बार दिनांक 10 मार्च 2025 दिन सोमवार को आंवला एकादशी व्रत मनाया जाएगा। और होली का रंग ध्वजारोहण चीर बंधन का मुहूर्त दिनांक 9 मार्च 2025 दिन रविवार को प्रातः 7:45 से सूर्यास्त तक रहेगा।
शुभ मुहूर्त-:
यदि 9 मार्च 2025 दिन रविवार को एकादशी तिथि की बात करें तो इस दिन तीन घड़ी चार पल अर्थात प्रातः 7:45 बजे से एकादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन पुनर्वसु नामक नक्षत्र 43 घड़ी 28 पल अर्थात मध्य रात्रि 11:55 बजे तक है। यदि योग की बात करें तो सौभाग्य नामक योग 21 घड़ी 6 पल अर्थात दोपहर 2:58 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव शाम 5:46 बजे तक मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्र देव कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।
महत्व -:
आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करना महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब
भगवान विष्णु सूष्टि की रचना कर रहे थे तब आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ था। इसके चलते आंवले के वृक्ष को पवित्र माना जाता है। आमलकी एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा करने पर सौभाग्य की प्राप्ति होती है और घर-परिवार में शांति बनी रहती है, साथ ही सभी का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।
आमलकी एकादशी पर करें इन मंत्रों का जाप-:
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
ॐ विष्णवे नमः
ॐ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।।
-ॐ अं वासुदेवाय नमः ।।
आंवला एकादशी व्रत कथा-:
इस कथा में मांधाता वशिष्ठ संवाद के अनुसार मांधाता वशिष्ठ से इस प्रकार कहते हैं-मांधाता बोले कि हे वशिष्ठजी! यदि आप मुझ पर
कृपा करें तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए
जिससे मेरा कल्याण हो। महर्षि वशिष्ठ बोले कि
हे राजन! सब व्रतों से उत्तम और अंत में मोक्ष
देने वाले आमलकी एकादशी के व्रत का मैं वर्णन करता हूं। यह एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का फल एक हजार गौदान के फल के बराबर होता है। अब मैं
आपसे एक पौराणिक कथा कहता हूं, आप
ध्यानपूर्वक सुनिए।
एक वैदिश नाम का नगर था जिसमें ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण आनंद सहित
रहते थे। उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गुंजा करती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था। उस नगर में चैत्ररथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था। वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था। उस नगर में कोई भी
व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी
विष्णु भक्त थे और बाल-वृद्ध सत्री- पुरुष
एकादशी का व्रत किया करते थे।एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ
स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से
धात्री (आंवले) का पूजन करने लगे और इस
प्रकार स्तुति करने लगे-
हे धात्री! तुम ब्रह्मस्वरूप हो, तुम ब्रह्माजी द्वारा
उत्पन्न हुए हो और समस्त पापों का नाश करने वाले हो, तुमको नमस्कार है। अब तुम मेरा अर्ध्य स्वीकार करो। तुम श्रीराम चन्द्रजी द्वारा
सम्मानित हो, मैं आपकी प्रार्थना करता हूं, अतः
आप मेरे समस्त पापों का नाश करो। उस मंदिर में सब ने रात्रि को जागरण किया।रात के समय वहां एक बहेलिया आया, जो
अत्यंत पापी और दुराचारी था। वह अपने कुटुम्ब का पालन जीव-हत्या करके किया करता था।भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गया और विष्णु भगवान तथा एकादशी माहात्म्य की कथा सुनने लगा। इस प्रकार अन्य मनुष्यों की भांति उसने भी सारी रात जागकर बिता दी।प्रात:काल होते ही सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी अपने घर चला गया। घर जाकर उसने भोजन किया। कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई।मगर उस आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया। युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना के सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा।
वह तेज में सूर्य के समान, कांति में चन्द्रमा के समान, वीरता में भगवान विष्णु के समान और क्षमा में पृथ्वी के समान था। वह अत्यंत धार्मिक,सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था। वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था। दान देना उसका नित्य कर्तव्य था एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया।दैवयोग से वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वहां पर आ गए और राजा को अकेला देखकर ‘मारो, मारों शब्द करते हुए राजा की ओर दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे कि इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता, पिता, पुत्र,
पौत्र आदि अनेक संबंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है अत: इसको अवश्य मारना चाहिए।ऐसा कहकर वे म्लेच्छ उस राजा को मारने दौड़े
और अनेक प्रकार के अस्त्र- शस्त्र उसके ऊपर
फेंके। वे सब अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते
ही नष्ट हो जाते और उनका वार पुष्प के समान प्रतीत होता। अब उन म्लेच्छों के अस्त्र-शस्त्र उलटा उन्हीं पर प्रहार करने लगे जिससे वे मूर्छित होकर गिरने लगे। उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्रीअत्यंत सुंदर होते हुए भी उसकी भृकुटी टेढी थी,उसकी आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी जिससे वह दूसरे काल के समान प्रतीत थी।वह स्त्री म्लेच्छों को मारने दौड़ी और थोड़ी ही देर में उसने सब म्लेच्छों को काल के गाल में पहुंचा दिया। जब राजा सोकर उठा तो उसने म्लेच्छों को मरा हुआ देखकर कहा कि इन शत्रुओं को किसने मारा है? इस वन में मेरा कौन हितैषी रहता है? वह ऐसा विचार कर ही रहा था कि आकाशवाणी हुई- हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है। इस आकाशवाणी को सुनकर राजाअपने राज्य में आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा।महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन्! यह आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णुलोक
को जाते हैं।
आलेख के लेखक -: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।