नैनीताल। उत्तराखण्ड  हाईकोर्ट ने राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा, प्रवर सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों  को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने सम्बन्धी राज्य सरकार के 24 जुलाई 2006 के शासनादेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी है ।
 बुधवार को मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरएस खुल्बे की खंडपीठ में हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत अन्य की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकर्ताओं की ओर से अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अंतरिम अनुमति मांगी, जिसका  आयोग के अधिवक्ता ने कड़ा विरोध किया।
याचिकर्ताओं के अनुसार विभिन्न विभागों के दो सौ से अधिक पदों के लिए प्रारंभिक परीक्षा का  26 मई 2022 को परिणाम आया।परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की दो कट आफ लिस्ट निकाली गई। उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट आफ 79 थी, जबकि याचिकाकर्ता महिलाओं का कहना था कि उनके अंक 79 से अधिक थे, मगर उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया। क्योंकि 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के शासनादेश के अनुसार, उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-16 के अनुसार आवास के आधार पर कोई राज्य आरक्षण नहीं दे सकता, यह अधिकार केवल संसद को है। राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर व पिछले तबके को आरक्षण दे सकता है। हाईकोर्ट ने याचिकाओं की सुनवाई के बाद 24 जुलाई 2006 को जारी शासनादेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति दी है ।

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