नैनीताल । इंडियन नेशनल ट्रस्ट फ़ॉर आर्ट एंड हेरिटेज “इंटेक” द्वारा शनिवार को कुमाऊं विश्व विद्यालय के हरमीटेज सभागार में  ‘नैनीताल बटरफ्लाई या मॉथ’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया । जिसमें वक्ताओं ने नैनीताल के प्राकृतिक संशाधनों अस्थिर दोहन पर गम्भीर चिंता जताते हुए नीति नियंताओं से समय रहते इस रोक लगाने की अपील की । वक्ताओं ने कहा कि नैनीताल की भार क्षमता समाप्त हो चुकी है । लेकिन शासन प्रशासन इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहा है । जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं ।
    सेमिनार के विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त वाइस एडमिरल ए.आर. टंडन ने कहा कि वे शुरू में नैनीताल में बसे थे लेकिन नैनीताल में बढ़ती भीड़ के कारण वे बाद में नौकुचियाताल शिफ्ट हुए । कहा कि जिस तरह से इन पहाड़ी शहरों में आबादी बढ़ रही है और पर्यटक सीजन के दौरान बेतहाशा भीड़ बढ़ती है वह गम्भीर चिंता का कारण है ।
  मुख्य वक्ता इतिहासकार पद्मश्री प्रो.शेखर पाठक ने कहा कि नैनीताल में बसासत से पूर्व आसपास के गांवो के लोग इसे दैवीय स्थान मानते थे । शुरू में अंग्रेजों ने भी लोगों की इस धार्मिक मान्यता का सम्मान किया । इस शहर का परिचय दुनिया से कराने वाले पी बैरन ने अपनी किताब में इस तथ्य का उल्लेख किया है । अंग्रेजों ने नैनीताल को सुव्यवस्थित तरीके से बसाया । लेकिन हाल के वर्षों में इस शहर का हर तरीके से अंधाधुंध दोहन हुआ है । प्रो.पाठक ने कहा कि 1880 में जब सात नम्बर की पहाड़ी में भूस्खलन हुआ तब यहाँ की आबादी महज 9 हजार थी । तब करीब 150 लोग भूस्खलन में मारे गए थे ।  अब पर्यटक सीजन में  यह आबादी एक से सवा लाख तक होती है । उन्होंने नैनीताल नगर पालिका के कई बायलॉज का उल्लेख करते हुए कहा कि इस पालिका को सम्पूर्ण अधिकार थे । उन्होंने नैनीताल के साथ हो रही प्रशासनिक छेड़छाड़ के प्रति भी आगाह किया।
  कार्यक्रम के संयोजक पद्मश्री अनूप साह ने
 कहा कि अनियोजित विकास से नैनीताल व अन्य पहाड़ी शहरों की स्थिति सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की हत्या करने जैसी हो गयी है । जहां पर्यटकों का दबाव, पार्किंग और यातायात के मुद्दे, भड़कीले शहरी सौंदर्यशास्त्र, विरासत को परिभाषित करने वाले चरित्र का लगातार क्षरण, जल संसाधनों का अस्थिर दोहन, जलवायु परिवर्तन से संबंधित विनाशकारी घटनाएं, सरकार की ओर से किये जा रहे अनियोजित विकास गम्भीर चिंता के मुद्दे हैं । उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन शहर के बुद्धिजीवियों व जानकार लोगों के सुझावों की अनदेखी कर रहा है ।
देहरादून से आए एन्थ्रोपोलेजिस्ट लोकेश आहोरी ने भार वाहन क्षमता खो चुके शहरों पर पड़ रहे दबावों का ज़िक्र करते हुए समाज में लगातार काम करते रहने की जरूरत पर जोर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने कहा कि आज विरोध करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। अगली पीढ़ी में गुस्सा नदारद है यह चिन्ता का विषय है।
वाटर पॉलिसी रिसर्चर कविता उपाध्याय ने कहा कि इतनी समस्याएं हैं कि पानी की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। नैनीताल का तालाब, पर्यटकों का आकर्षण नहीं बल्कि यहां की जल आपूर्ति का  स्रोत है।
 इंटेक के प्रिंसपल डायरेक्टर मनु भटनागर ने कहा कि व्यापार के इस दौर में हैरिटेज को बचाने का प्रयत्न अवश्य हो। उन्होंने बताया कि दुनिया भर के देश अति पर्यटन के खिलाफ संघर्ष रत हैं।
 विनोद पांडे ने नैनीताल की इकोलॉजी पर पर्यटन के दुष्प्रभावों को चिंहित किया । कहा कि जंगलों से लाइकेन का समाप्त होना यहां के प्रदूषण को दर्शाता है।
डा. रीतेश साह ने स्लाइड के माध्यम से पार्किंग समस्या, बढ़ते अवैध निर्माण,  बड़ी संख्या में काटे जा रहे पेड़ आदि से नैनीताल को हो रहे नुकसान की जानकारी दी ।
  इंटेक के नैनीताल सह संयोजक प्रदीप पांडे ने सेमिनार के उद्देश्यों पर चर्चा की । सेमिनार में प्रो.टी डी जोशी,दिनेश उपाध्याय सहित अन्य लोग मौजूद थे । संचालन ध्रुव साह ने किया ।

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