भाद्रपद मास की अमावस्या को कुश ग्रहणी अमावस्या या पिठौरी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। शुभ मुहूर्त -:
इस बार 23 अगस्त 2025 दिन शनिवार को कुश ग्रहणी अमावस्या पर्व मनाया जाएगा।
दिनांक 23 अगस्त 2025 दिन शनिवार को यदि अमावस्या तिथि की बात करें तो तो इस दिन 14 घड़ी 30 पल अर्थात प्रातः 11:36 बजे तक अमावस्या तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन मघा नामक नक्षत्र 47 घड़ी 47 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:55 बजे तक है। इस दिन परिधि नामक योग 18 घड़ी 47 पल अर्थात दोपहर 1:19 बजे तक है। इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण सिंह राशि में विराजमान रहेंगे।
यदि स्नान दान के मुहूर्त की बात करें तो इस दिन प्रातः 4:26 बजे से प्रातः 5:10 तक स्नान दान का श्रेष्ठतम मुहूर्त है।
*कुश ग्रहणी अमावस्या का महत्व -*
इस दिन पवित्र नदी में स्नान दानऔर पितरों की पूजा और श्राद्ध आदि करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। कुशा एक अहम प्रकार की घास होती है जिसका उपयोग पूजा पाठ के अलावा श्राद्ध आदि में किया जाता है। इस दिन वैदिक मंत्रोचार के साथ अपने हाथों में कुश लेकर पितरों की पूजा और श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए ऐसा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पितरों को संतुष्टि और मुक्ति मिलती है।
* *कुश तोडने के नियम-*
कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन निकली हुई कुशा वर्ष भर उपयोग की जा सकती है।संयोग से यदि
इस दिन सोमवार हो तो यह कुश 12 वर्षों तक उपयोग की जा सकती है। हमारे धर्म शास्त्रों में 10 प्रकार के कुश का वर्णन मिलता है।
जैसे-कुशा, कांशा, यवा, दुर्वा उशीराच्छ, सकुंदका। गोधूमा, ब्राह्मयो, मौन्जा, दश दभो, सबल्वजा ।। कुश ग्रहणी अमावस्या को विभिन्न प्रकार कुश से पूजा करने का विधान है। शास्त्रों में 10 प्रकार कुशों का उल्लेख मिलता है मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो घास आसानी से मिल सके उसे पूरे वर्ष के लिए एकत्रित कर लिया जाता है। खास बात ये है कि सूर्योदय के समय घास को केवल दाहिने हाथ से उखाड़ कर ही एकत्र करना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये। कुशोत्पाटिनी अर्थात कुश ग्रहणी अमावस्या को साल भर के धार्मिक कार्यों के लिये कुश एकत्र
की जाती है, क्योंकि इसका प्रयोग प्रत्येक धार्मिक कार्य के लिए किया जाता है। ध्यान रहे कुशा का सिरा नुकीला होना चाहिए। इसका कोई भाग कटा फटा न हो। इस दिन पूर्व या उत्तर मुख बैठ कर ही पूजा करें। इस दिन का महत्व बताते हुए पुराणों में कहा गया है कि रूद्र अवतार माने जाने वाले हनुमान जी कुश का बना हुआ जनेऊ धारण करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कांधे मूंज जनेऊ साजे। साथ ही इस दिन को पिठौरा अमावस्या कहते हैं और इस दिन दुर्गा जी की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वयं पार्वती जी ने देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति और उसकी कुशलता की कामना के लिये उपवास किया जाता है और दुर्गा सहित सप्तमातृकाओं और 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है। भगवान ने नरसिंह अवतार धारण कर अपने परम भक्त ,भक्त प्रहलाद की प्राणों की रक्षा के लिए हिरणकश्यप नामक राक्षस का वध किया था तो फिर से धरती को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी।भगवान के अवतार ने जब अपने शरीर पर लगे पानी को
झटका तब उनके शरीर से कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिरे और कुश का रूप धारण कर लिया तब
से कुश को पवित्र माना जाता है।
आलेख के लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया नैनीताल।