नैनीताल । भारतीय भाषा तथा संस्कृति केंद्र, नई दिल्ली द्वारा हिंदी विभाग कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के सहयोग से विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष में “विश्व की हिंदी”, हिंदी का विश्व, विषय पर आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन सोमवार से यूजीसी मानव संसाधन विकास केंद्र के बुरांश सभागार में शुरू हुआ।
सम्मेलन का शुभारंभ मुख्य अतिथि लेखक और कहानीकार डॉ सुभाष शर्मा (भारतीय प्रशासनिक सेवा); विशिष्ट अतिथि प्रो. एल एम जोशी, निदेशक डीएसबी परिसर कुमाऊं तथा डॉ0 रितेश शाह, उप निदेशक, यूजीसी मानव संसाधन विकास केंद्र ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मोहित कुमार जोशी, कंप्यूटर इंजीनियर एरीज द्वारा की गई।
उद्घाटन सत्र में सम्मेलन के आयोजक महिपाल सिंह, सचिव, भारतीय भाषा तथा संस्कृति केंद्र ने हिंदी की वर्तमान स्थिति को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि हिंदी स्थानीयता की सीमा को पार कर चुकी है और विश्व की भाषा बन चुकी है। उन्होंने कार्यालयों में अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी के अधिक से अधिक प्रयोग किए जाने को भी हिंदी के प्रसार में सहायक बताया।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि डॉ सुभाष शर्मा ने हिंदी की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि विश्व भर के 153 विश्व विद्यालयों में पढ़ाए जाने और 110 करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने के बावजूद हिंदी को वो सम्मान नहीं मिला है जो मिलना चाहिए। हिंदी केवल विषय के रूप में ही नहीं बल्कि माध्यम के रूप में महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिंदी की लिपि रोमन किए जाने के स्कूलों में जबरन अंग्रेजी को पढ़ाने के सामाजिक संस्कृति खतरों पर भी बात रखी।
डॉ रितेश शाह ने हिंदी की महत्व पर चर्चा करते हुए आजादी के बाद 220 भाषाओं को खोने तथा यूनेस्को द्वारा कई भारतीय भाषाओं को लुप्तप्राय घोषित किए जाने पर चिंता व्यक्त की।
अध्यक्षीय संबोधन करते हुए मोहित कुमार जोशी द्वारा हालिया विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लिए जाने के उनके अनुभवों को साझा किया। उन्होंने तकनीकी क्षेत्रों में हिंदी के विस्तार की संभावनाओं पर बात रखी। श्री जोशी ने अनुवाद के क्षेत्र में आईआईटी बॉम्बे के ‘उड़ान’ जैसे प्रोजेक्ट को महत्वपूर्ण बताया।
उद्घाटन सत्र के अंत में भारतीय भाषा और संस्कृति केंद्र की स्मारिका सांस्कृतिक समन्वय के लोकार्पण उपरांत हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. निर्मला ढैला बोरा द्वारा कार्यक्रम के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया गया। सम्मेलन का प्रथम सत्र राजभाषा नियम, अधिनियम एवम् कार्यान्वयन समस्याएं एवम् समाधान विषय पर केंद्रित रहा।
सत्रीय वक्तव्य डॉ दीक्षा मेहरा द्वारा दिया गया। उन्होंने हिंदी के राजभाषा बनने की ऐतिहासिक और संवैधानिक जटिलताओं पर प्रकाश डाला, उन्होंने राजभाषा अधिनियम तथा राजभाषा नियमों में हिंदी के विकास के लिए आवश्यक प्रावधानों पर चर्चा की
प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. चंद्रकला रावत ने हिंदी के विकास में ऐतिहासिक-राजनीतिक परिवर्तनों पर बात की। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ निधि वर्मा तथा प्रथम सत्र का मंच संचालन शोध छात्रा सृष्टि गंगवार ने किया ।
सम्मेलन में प्रो. शिरीष मौर्य, प्रो. सावित्री कैड़ा, डॉ शुभा मटियानी, डॉ शशि पांडे, डॉ कंचन आर्य, डॉ दीक्षा मेहरा, मेघा नैवाल, मथुरा इमलाल आदि विभाग के शोधार्थी कपिल कुमार, भगवती, पंकज पाण्डेय, सृष्टि गंगवार, शिवानी शर्मा आदि तथा विश्वविद्यालय के 100 से अधिक छात्र उपस्थित रहे।