*कुमाऊं में मकर संक्रान्ति (घुघुतिया त्यार) विष कुम्भ योग और पुनर्वसु नक्षत्र के संयोग में 14 जनवरी को मनाया जाएगा इस बार मकर संक्रांति पर्व -:
मकर संक्रांति सूर्य और शनि यानी पिता-पुत्र के
मिलन का दिन माना गया है। इस दिन सूर्य से
संबंधित चीजें जैसे तांबा, गुड़, तिल, लाल रंग
के फूल, वस्त्र आदि का दान करें । वहीं शनि
को प्रसन्न करने के लिए काले तिल का दान
करें। ये उपाय आर्थिक संकट से बचाता है। और
शनि दोष भी दूर होता है।
मकर संक्राति पर गंगाजल से स्नान करना विशेष फलदायी है,
मान्यता है असाध्य रोग खत्म हो जाते है।
व्यक्ति सालभर निरोगी रहता है। स्नान के बाद
सूर्य देव के मंत्र-
‘ॐ हरीं हीं सूर्याय नमः
का जाप करते सूर्य को जल चढ़ाएं। 3 बार उसी
स्थान पर परिक्रमा करें इससे करियर में तरक्की होती है।
*तिल-गुड़ से करें ये काम-:*
मकर संक्रांति पर गुड़ और तिल से बने लड् का भोग लगाएं और इन्हें अपनों में बांटकर खाने से रिश्तों में मिठास बढ़ती है। इस दिन पक्षियों
को दाना खिलाना धन आगमन के रास्ते
खोलता है।
*मकर संक्रांति अथवा घुघुतिया की कथा-*
मकर सक्रांति कुमाऊं के प्रमुख त्योहारों में से एक
है। इस बार यह त्यौहार मंगल वार दिनांक 14 जनवरी को मनाया जाएगा। देवभूमि के कुमाऊ में इस त्यौहार को कहीं “घुघूती त्यार” तो कहीं “पुषूडिया त्यार” के नाम से भी जाना जाता है। यह एक स्थानीय पर्व है जिसको कुमाऊं में उत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार कुमाऊ में 2 दिन में मनाया जाता है। इन 2 दिनों का विभाजन अल्मोड़ा जनपद के बहने वाली पवित्र सरयू नदी से किया जाता है। सरयू नदी के पूर्वी भाग में उस पार इसका आयोजन पौष मास के अंतिम दिन अर्थात 13 जनवरी को किया जाता है अर्थात
घुघुति पौष मास के अंतिम दिन बनाए जाते हैं और माघ मास के प्रथम दिन इसको कौवे को खिलाया जाता है। इसी कारण इ्से पुषुडिया त्यार कहा जाता है। इसी प्रकार सरयू नदी के इस पार के समस्त कुमाऊं में यह मकर संक्रांति के दिन अर्थात माघ मास के प्रथम दिन मनाते हैं। और माघ महीने के दूसरे दिन इन्हें कौवे को दिया जाता है। यह त्यौहार भले ही अलग-अलग दिन मनाया जाता हो या फिर इस त्यौहार को कई अलग-अलग नामों से पुकारा जाता हो लेकिन त्यौहार में बनने वाले व्यंजन लगभग पूरे उत्तराखंड में एक समान होते हैं।इस त्यौहार में बनने वाले व्यंजनों में जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है वह है घुघुती। यह व्यंजन आटा और सूजी को मिलाकर उसको गुड़ युक्त पानी
तथा दूध के साथ गोंदा जाता है। फिर उसका
आकार लगभग हिदी के अंक ४ की तरह बनाया
जाता है। इसके अतिरिक्त उस आटे से और आकृतियां भी बनाई जाती है जैसे ढाल तलवार डमरु दाड़िम के फूल आदि अनेक तरह की आकृतियां बनाई जाती है। और साथ में कुछ खजूरे भी बनाए जाते हैं। खजूरे बनाने के लिए आटे को बेलकर रोटी बनाई जाती है फिर उस मोटी रोटी को
चाकू से छोटे-छोटे चौकोर टुकड़ों में काट दिया जाता है। और शाम को फिर इन सब को तेल में तल कर रख दिया जाता है। घुघुती त्यौहार के दिन घर में तरह-तरह के व्यंजन जैसे पूरी ,बड़े पुवे, सिंगल, चावल
से बनी खीर आदि बनाए जाते हैं। इन घुघुतों को
फिर एक माला में पिरोया जाता है। और उस माला
के बीचो-बीच मध्य भाग में एक संतरा या नारंगी
फल लगा दिया जाता है। अगले दिन सुबह होने पर
बच्चे सुबह उठकर नहा धोकर इन मालाओं को पहन लेते हैं। और अपनी छत पर जाकर पूरी व कुछ घुघुतों को एक स्थान पर रखकर जोर जोर से कौवे को बुलाना प्रारंभ कर देते हैं और साथ ही साथ एक मधुर आवाज में कर्ण प्रिय लगने वाला गाना भी गाते हैं। जिसमें अपने लिए बहुत सारी मनोकामनाएं कौवे से पूरी करने के लिए कहते हैं।जो निम्न है।
काले कौवा काले ।
घुघुति माला खाले ।।
ल्हे कौवा बड़ो।
मैं कें दीजा सुनुक घडो।।
लहे कौवा ढ़ाल ।
मैं कै दीजा सुनुक थाल ।।
ल्हे कौवा पुरी।
मैं के दीजा सुनुक छुरी।।
लहे कौवा तलवार ।
मैं कैं दे ठुलो घरबार।।
काले कौवा काले ।
पूसै रोटी माघे खाले ।।
सुबह-सुबह संपूर्ण इलाकों में बच्चों की मधुर
आवाजों से एक सुंदर एवं मनमोहक शोरगुल पैदा हो
जाता है। जो सुनने में बेहद कर्णप्रिय लगता है।
उनके इस जोर-जोर से चिल्लाकर कौवा को
आमंत्रण देने से कौवे भी तुरंत आ जाते हैं। और
उनके पूरी और घुघूती को ले जाकर कहीं दूर गगन में उड़ जाते हैं। बच्चे इस काम को बहुत ही उत्साह व खुशी से करते हैं। और अपनी माला से घुघुती निकाल निकाल कर कौवे को खिलाते हैं। जिसका
घुघुती कौवा सबसे पहले लेकर उड़ जाता है उसे
सबसे भाग्यशाली समझा जाता है।इस त्यौहार के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
उन्हीं में से एक प्रचलित कथा यह है कि कुमाऊं के
चंद्र शासक कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी।
इसलिए उन्होंने एक बार मकर संक्रांति के पर्व पर
बागेश्वर जा कर पवित्र सरयू और गोमती के पवित्र संगम पर स्नान कर भगवान बागनाथ (बागनाथ यानी शिव जी का विशाल मंदिर बागेश्वर में सरयू एवं गोमती के संगम पर स्थित है) की पूजा करते हुए उन से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की भगवान भोलेनाथ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अगले मकर संक्रांति में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई कल्याण
चंद ने अपने पुत्र का नाम निर्भय चंद्र रखा। लेकिन
माता उसे प्यार से घुूघुती पुकारती थी। राजकुमार
निर्भय के गले में मोती की एक माला हमेशा रहा
करती थी। जिसमें घुंगरू लगे थे। जिसे देखकर वह
बालक बहुत प्रसन्न होता था। और वह उस माला से बहुत स्नेह रखता था। किंतु जब कभी वह रोने
लगता या जिद करने लगता तो माता उसे चुप कराने के लिए कहती चुप रह घुघुती चुप हो जा नहीं तो तेरी यह प्यारी सी माला कौवे को दे दूंगी और जोर से चिल्लाती ओ आजा कौवे आजा घुघूती की माला खाजा ।इस प्रकार बालक डर से चुप हो जाता। और कभी
कभी कौवे सचमुच में ही आ जाते थे। राजकुमार
उनको देखकर खुश हो जाता और रानी उनको कुछ पकवान खाने को दे देती। लेकिन राजा का एक दुष्ट मंत्री इस राज्य को हड़पने की बुरी नियत से इस प्यारे से राजकुमार को मार डालना चाहता था। इसी वजह से वह एक दिन राजकुमार को उठाकर जंगल की तरफ चल दिया लेकिन इस घटना को उसके साथ खेलने वाले एक कौवे ने देख लिया और वह
कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकीआवाज सुनकर और भी कौवे वहां पर इकट्ठे हो गएऔर सभी जोर-जोर से चिल्लाने लगे राजकुमार ने अपने गले की माला उतार कर अपने हाथ में रखी थी
और एक कौवे ने झपट कर उसकी माला उसके हाथ से ले ली और सी्धे राजमहल की तरफ उड़ गया।कौवे के मुंह में राजकुमार की माला देखकर और राजकुमार को वहां न पाकर सभी लोग घबरा गए।कौवा माला को लेकर कभी इधर-उधर घूमता और
कभी जोर जोर से चिल्लाने लगता। तब राजा की समझ में आया कि राजकुमार किसी संकट में है और वह कौवे के पीछे पीछे जंगल की तरफ चले गए।
जहां मंत्री डर के मारे राजकुमार को छोड़कर भाग चुका था। रानी अपने पुत्र को पाकर बहुत प्रसन्न हुई और कौवे का एहसान मानकर उन्हें प्रत्येक मकर संक्रांति पर पकवान बना कर खिलाती थी। और
राजकुमार के जन्मदिन के अवसर पर कौवों
बुलाकर पकवान खिलाने की यह परंपरा उन्होंने
राज्य भर में प्रारंभ कर दी। इस त्यौहाार को मनाए जाने के पीछे एक और कारण यह है कि जनवरी के माह में देवभूमि के पर्वतीय इलाकों में अत्यधिक ठंड
और हिमपात की वजह से सारे पक्षी मैदानी इलाकों में चले जाते हैं लेकिन कौवा ही वह प्राणी है जो अपने आवास को छोड़कर कहीं नहीं जाते हैं।
संभवत इसी वजह से इन्हें आदर देने हेतु इन्हें यह पकवान बनाकर खिलए जाते हैं।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार दिनांक 14 जनवरी 2025 दिन मंगलवार को मकर संक्रांति पर्व मनाया जाएगा। इस दिन माघ मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि 50 घड़ी 25 पल अर्थात अगले दिन प्रात 3:21 मिनट बजे तक है। इस दिन पुनर्वसु नामक नक्षत्र सात घड़ी 44 पल अर्थात प्रातः 10:17 बजे तक है यदि विषकुंभ योग की बात करें तो इस दिन 49 घड़ी 27 पल अर्थात अगले दिन प्रात 2:58 बजे तक यह योग रहेगा। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रुपेण कर्क राशि में विराजमान रहेंगे।
*मकर संक्राति पर स्नान कब करे?*
14 जनवरी को मकर
संक्रांति के अवसर पर आप गंगा स्नान महा पुण्य काल में करें, इसका समय सुबह 9 बजकर 3 मिनट से
सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक है।यदि आप किसी कारणवश इस समय में स्नान नहीं कर पाते हैं तो दिन में कभी भी कर लें क्योंकि मकर संक्रांति का पुण्य काल शाम 5 बजकर 46
मिनट तक हैं।
*इन राशि के जातकों को मिलेगा सर्वाधिक लाभ -:*
मेष -:
इस मकर संक्रांति पर मेष राशि के जातकों के
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। आर्थिक समस्याओं का समाधान होगा, और विद्यार्थियों के लिए यह समय बेहद अनुकूल रहेगा। ऑनलाइन व्यवसाय
करने का विचार सफल हो सकता है। प्रेम
संबंधों में मजबूती आएगी औट संतान से जुड़ी चिंताएं दूर होंगी।
वृषभ-:
वृषभ राशि वालों के लिए मकर संक्रांति का समय व्यापार में सफलता लेकर आएगा। इच्छित
कार्य पूरे होंंगे, और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति सहज होगी। संतान पक्ष से भी शुभ समाचार
मिलेगा। विद्यार्थियों को मानसिक राहत मिलेगी।
सिंगल जातकों के जीवन में नया साथी प्रवेश कर सकता है।
मकर -:
मकर राशि वालों को कैरियर में तरक्की और
आय के नए सोत प्राप्त होंगे। मनचाही नौकरी मिलने की संभावना
बनेगी। इस समय का उपयोग व्यक्तिगत और
व्यावसायिक उन्नति के लिए करें। धन संबंधी
योजनाओं में सतर्कता बरतें और पारिवारिक
आनंद का अनुभव करें।
कुंभ-:
कुंभ राशि के लिए यह समय जमीन-जायदाद के
मामलों के समाधान का है। सामाजिक प्रतिष्ठा
में वृद्धि होगी और परिवार में आयोजन हो
सकता है। विदेशी व्यापार में सफलता मिलेगी।साथी के साथ संबंध मजबूत होंगे, और
पारिवारिक सामंजस्य बढ़ेगा।
लेखक-: ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी।
गेठिया नैनीताल (उत्तराखंड)