जमानत याचिका में कहा गया है कि वह न्यायिक अभिरक्षा में जेल है। अभियुक्त को मामले में पब्लिक के दबाव में झूठा आरोपित किया गया है जिससे उसकी ख्याति को प्रभावित किया जा सके। अभियुक्त उक्त पते का स्थाई निवासी है, जमानत पर रिहा होने पर उसके भागने का कोई अंदेशा नहीं है। उक्त आधारों पर अभियुक्त को जमानत पर रिहा किये जाने की याचना की गई है।

3. अभियोजन की ओर से जमानत प्रार्थनापत्र का घोर विरोध करते हुए कथन किया गया है कि अभियुक्त द्वारा 12 वर्षीय नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म जैसा घिनौना अपराध कारित किया है, उसका जमानत प्रार्थनापत्र निरस्त किये जाने की याचना की गई है।

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उभयपक्षों को सुना व पत्रावली का अवलोकन किया गया।

5. पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों के अवलोकन से विदित है कि पीड़िता 12 वर्षीय नाबालिग बालिका है। अभियुक्त पर अभियोग है कि उसके द्वारा 12 वर्षीय नाबालिग बालिका के साथ बलात्कार व प्रवेशन लैंगिक हमला कारित किया गया तथा घटना के बारे में किसी को बताने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई। पीड़िता ने अपने धारा 180 व 183 बी.एन.एस.एस. के बयानो में अभियोजन कथानक व प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंकित घटना का समर्थन किया है। पीड़िता ने चिकित्सीय परीक्षण के दौरान भी चिकित्सक को दिये गये अपने कथनो में यह स्वीकार किया है कि अभियुक्त ने मुझे पैसे देकर अपनी लाल गाड़ी के अन्दर चाकू दिखाकर कपड़े से मुंह बन्द किया और मेरे साथ गलत काम किया । मुझे जान से मारने की धमकी दी। मामले से संबंधित इलैक्ट्रानिक साक्ष्य सीडीआर आदि को परीक्षण हेतु भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट आना शेष है। मामला अभी विवेचनाधीन है। अभियुक्त एक पहुंच वाला व्यक्ति है, यदि उसे जमानत पर रिहा किया जाता है तो उसके द्वारा साक्ष्य को प्रभावित किये जाने की संभावना है। अभियुक्त जो कि लगभग 70 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति है, के द्वारा 12 वर्षीय नाबालिग बालिका से दुष्कर्म जैसा घिनौना एवं जघन्य अपराध कारित किये जाने का आक्षेपब है। अभियुक्त द्वारा कारित अपराध गम्भीर प्रकृति का है। आधार जमानत पर्याप्त नहीं है। अतः अभियुक्त का जमानत प्रार्थनापत्र निरस्त किये जाने योग्य है।

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आदेश

अभियुक्त उस्मान अली पुत्र आसिफ अली का जमानत प्रार्थनापत्र अन्तर्गत धारा 65(1), 351(1) बी.एन.एस. व धारा 3/4 पॉक्सो एक्ट एवं धारा 3(1) (ब) (i), 3(v) (ii) एस.सी.एस. टी. एक्ट निरस्त किया जाता है। आदेश की प्रति अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता को निःशुल्क प्रदान की जाए।

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