*2 फरवरी को ही मनायें बसंत पंचमी। असमंजस की स्थिति से रहें बिल्कुल दूर-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी।
इस बार बसंत पंचमी पर्व पर कुछ विद्वानों का मत 2 फरवरी तो कुछ का 3 फरवरी। ऐसे में आम जनता असमंजस की स्थिति में रहती है।
पंचांग के अनुसार,माघ माह शुक्ल पंचमी तिथि की शुरुआत 2 फरवरी को 5 घड़ी 26 पल अर्थात प्रातः 09 बजकर 14 मिनट पर हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 03 फरवरी को प्रातः 06 बजकर 53 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व है।ऐसे में वसंत पंचमी का त्योहार 2 फरवरी को मनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त इस दिन शिव योग, सिद्ध साध्य योग और रवि योग बन रहे हैं।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार यह त्यौहार 2फरवरी रविवार को मनाया जाएगा। वैसे तो संपूर्ण भारत में यह त्यौहार मनाया जाता है, परंतु देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में यह त्यौहार कुछ विशेष रीति से मनाया जाता है, जिसे कुमाऊं में सिर पंचमी का त्यौहार कहते हैं। कुमाऊं में यह त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार में विशेष यह है कि इस दिन खेतों से जौं की पत्तियां लाकर सर्वप्रथम स्नान करने के उपरांत जों की पत्तियां
मंदिरों, देवालयों में चढ़ाई जाती है। फिर परिवार के
सभी सदस्य एक दूसरे को हरेले की तरह जौ पूजते हैं।लड़कियां अपने माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची,ताऊ-ताई आदि घर के सभी सदस्यों के सिर में जौं
पूजती हैं। बालिकाएं इस पावन दिन अपने नाक-कान छिदवाती हैं।
कुमाऊं के अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, नैनीताल,चंपावत जनपदों के कई भागों में इस दिन जौं की पत्तियां गाय के गोबर के साथ टीका चंदन कर घर की
देहरी पर भी रखते हैं। देवभूमि के कई भागों में इस दिन यज्ञोपवीत चूड़ाकर्म संस्कार भी करवाए जाते हैं। देवभूमि उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के नौकुचिया ताल में स्थित हरकी पैड़ी में भी इस दिन यज्ञोपवीत संस्कार कराये जाते हैं।
बसंत पंचमी के दिन छोटे बच्चों की शिक्षा-दीक्षा
आरंभ करने के लिए भी लिए भी यह पावन दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। इस पावन दिवस पर बच्चे की जीभ में मधु अर्थात शहद से ओम
बनाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से बच्चे ज्ञानवान बनते हैं। क्योंकि जिह्वा का संबंध मां सरस्वती से है। वाणी जो जिह्वा से प्रकट होती है,उसका संबंध भी मां सरस्वती से है। इसके अतिरिक्र 6
माह पूरे कर चुके बच्चे को अन्न का पहला निवाला अर्थात अन्नप्राशन के लिए भी यह पावन दिन शुभ माना जाता है। इस दिन मुहुर्त निकलवाने की आवश्यकता नहीं होती है। बसंत पंचमी के दिन सरसों के खेतों में
सुनहरी चमक फैल जाती है। पेड़ों पर फूल खिलने
लगते हैं। संपूर्ण धरती श्रृंगार करती हैआदिकाल से ही विद्वानों ने भारत वर्ष में पूरे वर्ष को 6 भागों में विभक्त किया था। जो छह ऋतु के नाम से जानी जाती हैं। इसमें वसंत ऋतु लोगों को सबसे मनचाही एवं सर्वश्रेष्ठ ऋतु लगी। इसी कारण इसे ऋतुराज के नाम से भी जाना जाता है। मात्र प्रकृति प्रेमियों के लिए ही नहीं, वरन सभी जीव- जंतुओं के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। यह वह मौसम है जब प्रकृति में बहार आ जाती है। सरसों के खेत सुनहरे रंग
से चमकने लगते हैं। जौ एवं गेहूं की बालियां आने
लगती हैं। प्रत्येक तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगती हैं। इसी ऋतुराज वसंत के स्वागत के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन उत्सव मनाया जाता
है। जिसमें मां सरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु एवं कामदेव की पूजा होती है। जो बसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता है।
इस दिन बसन्ती अर्थात पीले रंग का का विशेष महत्व
है। लोग पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। यदि संभव न हो तो कम से कम पीले रंग का रुमाल अपने पास रखते हैं और पीले रंग का रुमाल मंदिरों, देवालयों में चढ़ाते हैं। इस दिन पकवान भी पीले रंग के बनाकर
रिश्तेदारों, मित्रों एवंआस पड़ोस में बांटने की परंपरा भी है। इसके अतिरिक्त छोटे शिशुओं की शिक्षा का प्रारंभ भी इसी दिन से किया जाता है। शिशु की तख्ती पर शुभ चिन्ह अंकित कर शिशु को अक्षर ज्ञान कराने का प्रारंभ भी इसी दिन किया जाता है। अब वर्तमान आधुनिक समय में तख्ती पर लिखने की परंपरा तो रही नहीं। शिशु को अक्षर ज्ञान घर पर कराने की व्यवस्था भी लगभग समाप्त हो चुकी है। इसके बावजूद भी शिशु के विभिन्न संस्कार इस पावन तिथि
पर संपन्न किए जाने की परंपरा कुछ शेष बची है।
देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में इस पावन दिवस का एक और महत्व इस कारण से भी है कि बसंत पंचमी के दिन से ही कुमाऊंनी बैठकी होली काआरंभ भी इस दिन से होता है। कुमाऊंनी बैठकी
होली की परंपरा के अनुसार इस पावन दिवस से लेकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी अर्थात आंवला एकादशी तक बैठकी होली गायन चलता है। इसी प्रकार बैठकी होली के गायन के प्रारंभ के साथ ही होली के उत्सव का प्रारंभ भी हो जाता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने 8400000 योनियों के साथ मनुष्य
योनि की रचना की, इसके बावजूद भी वे अपनी इस रचना से पूर्णतया संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि सृष्टि में कुछ कमी रह गई है। जिस कारण चारों ओर
मौन छाया रहता है।
अंत में विष्णु भगवान से आज्ञा लेकर ब्रह्मा ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जिस कारण जल के कण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा तथा वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। प्रकृति का
यह प्राकट्य एक चतुर्भुज देवी के रूप में था, उसके
एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वर देने की मुद्रा में था। अन्य दो हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया । जैसे ही देवी ने वीणा के तारों को झंकृत किया, मधुर नाद से धरती के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। विश्व के
समस्त जल धाराओं में स्वरों का संचार होते ही उसमें कोलाहल व्याप्त हो गया। सीधे शब्दों में कहें तो ध्वनि की उत्पत्ति उसी दिन से प्रारंभ हुई।पाठकों की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा कि ऋग्वेद में कहा गया है कि –
*प्रणोदेवी सरस्वती वाजेभिवर्जिनीवती धीनामणित्रयवततु ।*
अर्थात यह परम चेतना है, सरस्वती के रूप में यह हमारी बुद्धि प्रज्ञातथा मनोवृति की संरक्षिका है। हममें जो आचार और मेधा है, उसका आधार देवी भगवती सरस्वती ही है।
*शुभ मुहूर्त-*
इस बार दिनांक 2 फरवरी 2025 दिन रविवार को बसंत पंचमी (सिर पंचमी) का त्यौहार (पर्व )मनाया जाएगा। इस दिन यदि पंचमी तिथि की बात करें तो इस दिन 5 घड़ी 26 पल अर्थात प्रातः 9:14 बजे से पंचमी तिथि प्रारंभ होगी।यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन उत्तरा भाद्रपद नामक नक्षत्र 44 घड़ी 30 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:52 बजे तक है। शिवयोग पांच घड़ी 24 पल अर्थात प्रातः 9:14 बजे तक है इस दिन भद्रा प्रात 9:14 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मीन राशि में विराजमान रहेंगे।