*कुम्हड़े(कुमिल या भुज)की बलि पसंद है मां कूष्मांडा को।संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं।*
आज दिनांक 26 सितंबर 2025 दिन शुक्रवार को मां कुष्मांडा की पूजा होगी।

शुभ मुहूर्त-:
26 सितंबर 2025 दिन शुक्रवार को यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो आठ घड़ी 37 पल अर्थात प्रातः 9: 33 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगी। आज विशाखा नामक नक्षत्र 40 घड़ी सात पल अर्थात रात्रि 10:09 बजे तक रहेगा। विष्टि नामक करण आठ घड़ी 37 पल अर्थात प्रातः 9:33 बजे तक है। यदि आज के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो आज चंद्र देव शाम 3:24:बजे तक तुला राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्र देव वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे।

नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

मां कुष्मांडा को कुम्हड़े (जिसे कुमाऊनी में भुज या कहीं कुमिल कहते हैं) की बलि पसंद है। इसीलिए इस देवी को कुमिल की मिठाई यानी पेठा भी चढ़ाया जाता है।
इस देवी की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है।
इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।
विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।

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मां कूष्मांडा के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र-:

मां कूष्मांडा के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र का महत्त्व अत्यधिक है। देवी कूष्मांडा मां दुर्गा के चौथे रूप में पूजित हैं। इनके बीज मंत्र का जाप करने से साधक को सुख, समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है।

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मंत्रः- “ऐं ह्री देव्यै नमः”

अर्थ:- इस मंत्र का अर्थ यह है कि “ज्ञान, शक्ति और माया स्वरूपिणी देवी को मेरा नमन है।” इस मंत्र के जाप से भक्त को देवी का आशीर्वाद, ज्ञान और आंतरिक शक्ति की प्राप्ति होती है।

माँ कूष्मांडा का पूजन मंत्र-:

“ सुरासम्पूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।”
अर्थ: यह श्लोक माँ कूष्मांडा को समर्पित है और इस श्लोक के माध्यम से उनका ध्यान करते हुए उनकी कृपा का आह्वान किया है।
इसका अर्थ है कि जो देवी अपने हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश और रक्त से सिक्त माला धारण करती हैं, वे माँ कूष्मांडा हमें शुभ और कल्याणकारी आशीर्वाद प्रदान करें।
“या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
अर्थ:- यह श्लोक माँ कूष्मांडा की महिमा का वर्णन करता है और उन्हें समर्पित है इस श्लोक के माध्यम से भक्त माँ कूष्मांडा से आशीर्वाद और कृपा की प्रार्थना करते हैं, और उन्हें सर्वव्यापी शक्ति के रूप में मानते हैं। यह श्लोक शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
मां कुष्मांडा की कृपा आप हम सभी पर बनी रहे।

 

आलेख-:
आचार्य पंडित प्रकाश जोशी

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By admin

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