*21 जुलाई 2024 को है इस बार गुरु पूर्णिमा (वेद व्यास जन्मोत्सव) पूर्णिमा व्रत 20 जुलाई को रखा जाएगा।क्या है गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है व्यास जन्मोत्सव कथा आइए जानते हैं?*
शास्त्रों में “गु” का अर्थ बताया गया है-
अंधकार या मूल अज्ञान और “रु” का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से
निवारण कर देता है। अर्थात दो अक्षरों से
मिलकर बने गुरु शब्द का अर्थ- प्रथमअक्षर ‘गु का अर्थ- ‘अंधकार’ होता है
जबकि दूसरे अक्षर ‘रु का अर्थ- ‘उसको हटाने वाला’ होता है।अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की
ओर ले जाने वाले को ‘गुरु कहा जाता है।
गुरु वह है जो अज्ञान का निराकरण करता है अथवा गुरु वह है जो धर्म का मार्ग दिखाता है। अर्थात सदगुरु की महिमा अपरंपार है। उन्होंने शिष्य पर अनंत उपकार किए है।उसने विषय-वासनाओं से बंद शिष्य की बंद आंखों को ज्ञान चक्षु द्वारा खोलकर
उसे शांत ही नहीं अनंत तत्व ब्रह्म का दर्शन
भी कराया है।
गुरु के संबंध में कबीर दास जी का एक दोहा है-
*गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांई। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।।*
अर्थात गुरु और भगवान एक साथ खड़े हैं तो सबसे पहले किसे प्रणाम करें? क्योंकि गुरु ने भगवान को जानने समझने के लिए मार्गदर्शन दिया है। अतः गुरु पहले पूजनीय है।
यहां तक की कबीर दास जी ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है-
*सब धरती कागज करूं लेखनी सब वन राय ।सात समुद्र की मशि करूं गुरु गुण लिखा न जाए।।*
अर्थात-संपूर्ण धरती के बराबर यदि कागज हो, संपूर्ण वनों के वृक्षों की लेखनी अर्थात कलम बनी हो, और सात समुद्रों की मशि अर्थात स्याही (इंक)बना दी जाए, इन सब से गुरु की महिमा लिखी जाए तो भी कम पड़ जाएगी।
आगे इसी प्रसंग में कबीर जी लिखतेहै।
*”भली भई जुगुर मिल्या, नहीं तर होती हांणि।दीपक दिष्टि पतंग ज्यूं, पड़ता पूरीजांणि।*
अर्थात् अच्छा हुआ कि सदटदूरु मिल गए,
वरना बड़ा अहित होता। जैसे सामान्यजन पतंगे के समान माया की चमक-दमक में पड़कर नष्ट हो जाते हैं वैसे ही मेरा भी नाश हो जाता। जैसे पतंगा दीपक को पूर्ण समझ लेता है, सामान्यजन माया को पूर्ण समझकर उस पर अपने आपको न्यौछावर
कर देते हैं। वैसी ही दशा मेरी भी होती।
अत: सदगुरु की महिमा तो ब्रह्या. विष्णु औ र महेश से भी बढ़ कर है।
*गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:।*
*गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।*
गुरु ब्रह्मा है गुरु विष्णु है गुरु महेश्वर अर्थात शिव है गुरु साक्षात परम ब्रह्म है अतः ऐसे गुरु को मेरा शत-शत नमन है।
*शुभ मुहूर्त -*
इस बार आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा दिनांक 21 जुलाई 2024 दिन रविवार के दिन उत्तराषाढा नक्षत्र तथा मकर राशि के चंद्रमा
की साक्षी में आ रही है। रविवार के दिन
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र होने से ही सर्वार्थ सिद्धि योग
बन रहा है। मुहुर्त चिंतामणि की गणना से देखें तो उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषढ़ा, उत्तरा भाद्रपद
यह यह तीनों नक्षत्र धनदायक व प्रगतिकारक
माने गए हैं।
इस योग में की गई विशेष प्रकार की साधना
सिद्ध की जा सकती है। वैसे भी ज्योतिष शास्त्रों में तीनों उत्तरा अर्थात (उत्तराषाढा,उत्तरा फाल्गुनी,उत्तरा भाद्रपद) रोहिणी और रविवार युक्त धुर्व स्थिर संज्ञा मानी गई है।
*सर्वार्थ सिद्धि योग*
सर्वार्थ सिद्धि योग हिंदू पंचांग में शुभ योगों में
से एक है। यह योग तब बनता है जब किसी
विशेष दिन किसी विशेष नक्षत्र के साथ मिलता है। इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं, इसलिए इसे शुभ कार्यों में
उत्तम माना जाता है। इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन
सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। यह योग 21
जुलाई को सुबह 05 बजकर 36 मिनट से
शुरू होकर 22 जुलाई को मध्य रात्रि 1बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा। इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।
भारतीय ज्योतिष व
धर्मशास्त्र की इसी मान्यता से जीवन में आ
रही बाधाओं के निवारण तथा इच्छित सफलता के लिए इस दिन भगवान भैरव की साधना आराधना करने का विधान है। गुरु की
कृपा प्राप्ति के लिए भी यह़ दिन विशेष है।
स्कंद पुराण के अवंतिका खंड की मान्यता के
अनुसार उज्जैन को अष्ट महाभैरव तीर्थ कहा
गया है। अष्ट महाभैरव को आठ दिशाओं का
अधिपति माना गया है। इनमें कालभैरव,
आताल पाताल भैरव, आनंद भैरव, दंडपाणि
भैरव आदि शामिल है। आषाढ़ी पूर्णिमा पर
अष्ट महाभैरव की यात्रा का उल्लेख मिलता है।
नगरवासी बाधा बंधन, अज्ञान भय, रोग दोष
की निवृत्ति के लिए अष्टमहाभैरव के दर्शन व
पूजन करने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के
अनुसार भैरव की प्रसन्नता के लिए उन्हें पानी वाला नारियल तथा इमरती का भोग लगाना
चाहिए।
गुरु पूर्णिमा के दिन पंचम वेद कहे जाने वाले हिन्दू धार्मिक ग्रंथ महाभारत के रचयिता भगवान वेद व्यास जन्मोत्सव मनाया जाता है।
आज के दिन गुरुजनों का सम्मान करना चाहिए। और गुरुजनों का आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।
*भगवान वेद व्यास जन्मोत्सव की पौराणिक रोचक कथा -*
प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य
निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने
को राजा की पत्नी के पास पहँचाने आकाश में
उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी पर दूसरे
शिकारी पक्षी ने हमला कर दिया। दोनों पक्षियों
में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी
के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में
ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती
थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुए वीर्य
को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई।एक निषाद ने गर्भ पूर्ण होने पर उस मछली को अपने जाल में फैसा लिया। निषाद ने जब
मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक
बालक तथा एक बालिका निकली। वह निषाद
उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास
गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण
उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया,
जिसका नाम ‘मत्स्यराज’ हुआ। बालिका
निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम
‘मत्स्यगंधा’ रखा गया, क्योंकि उसके अंगों से
मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को
‘सत्यवती’ के नाम से भी जाना जाता था।
बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य
करने लगी। एक बार पाराशर मुनि को उसकी
नाव पर बैठ कर यमुना पार करनी पड़ी।
पाराशर मुनि सत्यवती के रूप-सौन्दर्य पर
आसक्त हो गये और बोले- “देवि! हम तुम्हारे
साथ सहवास के इच्छुक हैं।” सत्यवती ने कहा-
“मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद
कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।” तब
पाराशर मुनि बोले- “तुम चिन्ता मत करो।
प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।”
इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों
ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और
सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे
आशीर्वाद देते हुए कहा- “तुम्हारे शरीर से जो
मछली की गंध निकलती है, वह सुगन्ध में
परिवर्तित हो जायेगी।”
समय आने पर सत्यवती के गर्भ से वेद-वेदांगों
में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह
बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला-
“माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण
करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।” इतना कह कर
वे तपस्या करने के लिये द्वैपयन द्वीप चले गये।
द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर
का रंग काला होने के कारण उन्हें “कृष्ण
दैपायन”‘ कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों
का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम
से विख्यात हुए।
*लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*