(पं. प्रकाश जोशी,गेठिया नैनीताल ।)

बहुत महत्वपूर्ण है वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी व्रत । इस एकादशी व्रत से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

शुभ मुहूर्त ,,,,,, इस बार मोहिनी एकादशी व्रत दिनांक 12 मई 2022 दिन गुरुवार को मोहिनी एकादशी मनाई जाएगी। इस दिन एकादशी तिथि 33 घड़ी 37 पल अर्थात शायं 6:51 बजे तक रहेगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन उत्तराफाल्गुनी नामक नक्षत्र 35 घड़ी दश पल अर्थात शायं 7:28 बजे तक रहेगा तदुपरांत हस्त नक्षत्र उदय होगा। यदि योग के बारे मैं जाने तो इस दिन हर्षण नामक योग 31 घड़ी 0 पल अर्थात शायं 5:48 बजे तक रहेगा। बव नामक करण चार घड़ी 27 पल अर्थात प्रातः 7:11 बजे तक रहेगा तदुपरांत विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा प्रारंभ होगी जो शाम 6:51 बजे तक रहेगी। यदि इस दिन चंद्रमा की स्थिति जाने दो चंद्रदेव पूर्णरूपेण कन्या राशि में विराजमान रहेंगे।
मोहिनी एकादशी महत्व ,,,,,,संसार में आकर मनुष्य केवल प्रारब्ध का भोग नहीं भोगता अपितु वर्तमान को भक्ति और आराधना से जोड़कर सुखद भविष्य का निर्माण भी करता है। एकादशी व्रत का महत्व में भी हमें इसी बात की ओर संकेत करता है। मोहिनी एकादशी व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके महात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से 1000 गोदान का फल प्राप्त होता है। स्कंद पुराण के अनुसार मोहिनी एकादशी के दिन समुद्र मंथन में निकले अमृत का बंटवारा हुआ था। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में शिप्रा को अमृत दायिनी पुण्य दायिनी कहा गया है अतः मोहिनी एकादशी पर शिप्रा में अमृत महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसलिए कहते हैं ” तत सोमवती शिप्रा विख्याता यति पुण्यदा पवित्रताय ” अवंतिका खंड के अनुसार मोहिनी रूप धारी भगवान विष्णु ने अवंतिका नगरी में अमृत वितरण किया था। देवासुर संग्राम के दौरान मोहिनी रूप रखकर राक्षसों को चकमा दिया और देवताओं को अमृत पान करवाया। यह दिन देवासुर संग्राम का समापन दिन भी माना जाता है।
पूजाविधि,,, मोहिनी एकादशी के अवसर पर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समीप के नदिया सरोवर में स्नान करके पवित्र होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु को चंदन और जौ चढ़ाने चाहिए । क्योंकि यह व्रत परम सात्विकता और आचरण की शुद्धि का व्रत होता है। अतः हमें अपने जीवन काल में धर्म अनुकूल आचरण करते हुए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ढूंढना चाहिए। एकादशी व्रत बहुत सावधानी का व्रत है। एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है। यह एकादशी व्रत समस्त पापों का क्षय करता है तथा व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करता है। इस व्रत को करने से मनुष्य को समाज परिवार तथा देश में प्रतिष्ठा मिलती है तथा उसकी ख्याति चारों ओर फैलती है।
मोहिनी एकादशी व्रतकथा,,,,,, पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार युधिष्ठिर ने श्री हरि भगवान कृष्ण से वैशाख माह में आने वाली एकादशी के महत्व और इसके बारे में पूछा। युधिष्ठिर के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री हरि ने कहा हे धर्मपुत्र !आज से अनेक वर्ष पूर्व इस एकादशी के विषय में जो कथा वशिष्ठ मुनि ने प्रभु रामचंद्र जी को सुनाई थी उसी का वर्णन में करता हूं। ध्यान पूर्वक सुनना यह कहकर श्री हरि ने मोहिनी एकादशी व्रत कथा का प्रारंभ किया। एक बार प्रभु श्री रामचंद्र जी ने गुरु वशिष्ठ मुनि से बड़ी ही विनम्रता से पूछा हे मुनिवर आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जिसके प्रभाव से समस्त पापों और दुखों से मुक्ति प्राप्त हो सके। भगवान राम को संबोधित करते हुए वशिष्ठ मुनि ने कहा हे राम आपका प्रिय नाम समस्त प्राणियों के दुखों का नाश करता है लेकिन फिर भी आपने जन कल्याण के लिए यह कल्याणकारी प्रश्न पूछा है जो अति प्रशंसनीय है। वशिष्ठ मुनि ने बताया प्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी बसी हुई थी। उस नगरी में द्युतिमान नामक राजा राज्य करता था। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था। जो धनधान्य से पूर्ण था। उसका नाम धनपाल था। वह अत्यंत धर्मात्मा तथा नारायण भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय कुंए तालाब धर्मशालाएं आदि बनवाए। सड़कों के किनारे आम जामुन नीम आदि के अनेकों वृक्ष लगवाए। जिससे राह में चलने वाले पथिकों को सुख प्राप्त हो। उस वैश्य के 5 पुत्र थे। जिसमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यंत पापी व दुष्ट था। वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। वह बड़ा ही अधम था और देवता पित्र आदि किसी को भी नहीं मानता था। अपने पिता का अधिकांश धन वह बुरे व्यसनों में ही उड़ाता था। मदिरा तथा मांस का भक्षण करना उसका नित्य कर्म था। जब काफी समझाने बुझाने पर भी वह सीधे रास्ते पर नहीं आया तो दुखी होकर उसके पिता भाइयों तथा कुटंबियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निंदा करने लगे। घर से निकलने के बाद वह अपने आभूषणों तथा वस्तुओं को बेच बेच कर अपना गुजारा करने लगा। धन नष्ट हो जाने पर वेश्याओं तथा उसके दुष्ट साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। जब वह भूख प्यास से व्यथित हो गया तो उसने चोरी करने का विचार किया और रात्रि में चोरी करके अपना पेट पालने लगा। परंतु एक दिन वह पकड़ा गया। किंतु सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र जान कर छोड़ दिया। जब वह दूसरी बार पुनः पकड़ा गया तब सिपाहियों ने भी उसका कोई लिहाज नहीं किया और राजा के सामने प्रस्तुत करके उसे सारी बात बताई। तब राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया। कारागार में राजा के आदेश से उसे बहुत कष्ट दिए गए और अंत में उसे नगर छोड़ने के लिए कहा गया। दुखी होकर उसे नगर छोड़ना पड़ा। अब वह जंगल में पशु पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा। फिर बहेलिया बन गया और धनुष बाण से जंगल में निरीह जीवों को मार मार कर खाने और बेचने लगा। एक बार वह भूख और प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज में निकला और कौटिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। इन दिनों वैशाख का महीना था। कौटिल्य मुनि गंगा स्नान करने आए थे। उनके भीगे वस्त्रों की छींटे मात्र से इस पापी को कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वह अधम ऋषि के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगा है महात्मा मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किए हैं। कृपा कर आप उन पापों से छूटने का कोई साधारण और बिना धन का उपाय बतलाइए। ऋषि ने कहा तू ध्यान देकर सुन वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कर। इस एकादशी का नाम मोहिनी है। इसका उपवास करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। ऋषि के वचनों को सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी बताई हुई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड पर सवार होकर विष्णु लोक को गया।

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