*10 दिनों की होगी इस बार शारदीय नवरात्र और हाथी पर सवार होकर आएगी माता रानी।*


इस बार शारदीय नवरात्र दिनांक 22 सितंबर 2025 दिन सोमवार से प्रारंभ होंगे और इनका समापन दिनांक 1 अक्टूबर 2025 दिन बुधवार को होगा।

शुभ मुहूर्त -:
दिनांक 22 सितंबर 2025 दिन सोमवार को यदि प्रतिपदा तिथि की बात करें तो 52 घड़ी 10 पल अर्थात अगले दिन प्रात 2:56 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नामक नक्षत्र 13 घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 11:24 बजे तक है। शुभ योग 34 घड़ी 47 पल अर्थात शाम 7:59 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कन्या राशि में विराजमान रहेंगे।

कलश स्थापना या घट स्थापना का शुभ मुहूर्त-:
22 सितंबर को कलश स्थापना या घट स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 06 बजकर 09 मिनट से प्रातः 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगा। इस दौरान यदि घट स्थापना ना हो सके तो अभिजीत मुहूर्त में भी घट स्थापना की जा सकती है।
घटस्थापना का अभिजित मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।

पहले नवरात्र को कलश स्थापना के साथ पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है जैसा कि दुर्गा सप्तशती में उल्लेख किया गया है-
*प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चंद्रघंटेत कुष्मांडलेति चतुर्थकम।।*
*पंचमं स्कंदमातेति षष्टं कात्यायनीती च। सप्तम कालरात्रि च महागौरीतिचाष्ठमं ।। नवम सिद्धिदात्री च । नवदुर्गा प्रतेतिता ।।*
अर्थात पहली नवरात्र को मां शैलपुत्री की पूजा द्वितीय नवरात्र को ब्रह्मचारिणी की पूजा तीसरे नवरात्रि को माता चंद्रघंटा की पूजा चौथे नवरात्र को माता कुष्मांडा की पूजा पांचवा नवरात्र को स्कंदमाता की पूजा छठे नवरात्र को कात्यायनी माता की पूजा सातवें नवरात्रि को माता कालरात्रि की पूजा आठवीं नवरात्रि को महागौरी की पूजा एवं नवी नवरात्र को माता सिद्धिदात्री की पूजा मां दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है। कलश स्थापना के साथ पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है इस वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ दिनांक 22 सितंबर 2025 दिन सोमवार से होगा।
महत्वपूर्ण बात पाठकों को बताना चाहूंगा कि इस वर्ष मां दुर्गा हाथी की सवारी पर धरती लोक में पधारेंगी।। जिस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार माता अपनी सवारी अपने वाहन पर सवार होकर आती है। माता अपने भक्तों को एक विशेष प्रकार की सांकेतिक सूचना भी देती है। देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा की सवारी के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है। जिससे आप यह पता लगा सकते हैं कि किस दिन किस सवारी से माता धरती पर पधारती है? जिस संबंध में एक महत्वपूर्ण श्लोक लिखा है-
*शशि सूर्य गजरूढा शनिभौमे तुरंग मे।*
*गुरौशुक्रेच दौलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता।।*
अर्थात इस श्लोक के अनुसार यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से प्रारंभ होती है तो माता हाथी पर विराजमान होकर आती है। यदि नवरात्रि शनिवार या मंगलवार से प्रारंभ हो तो माता की सवारी घोड़ा होती है। वहीं यदि शुक्रवार और गुरुवार को नवरात्रि प्रारंभ हो तो माता रानी डोली में आती है। और अंत में यदि नवरात्रि प्रारंभ बुधवार से हो तो माता का आगमन नौका पर होता है। वैसे माता का मुख्य वाहन सिंह है इसलिए इसे सिंह वाहिनी भी कहते हैं।इसी प्रकार अनेक वाहनों पर सवारी का अर्थ भी भिन्न-भिन्न होता है अर्थात हाथी की सवारी का अर्थ सांकेतिक अधिक वर्षा माना जाता है। इसका अर्थ है कि इस बार वर्षा अधिक होगी। जिसके प्रभाव से चारों ओर हरियाली होगी। इससे फसलों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है इससे देश में अन्न के भंडार भी भरे रहेंगे। साथ ही धन-धान्य में वृद्धि होगी एवं संपन्नता आएगी ठीक इसी प्रकार इस साल शारदीय नवरात्रि का समापन दिनांक 1 अक्टूबर 2025 को होगा और दिनांक 2 अक्टूबर 2025 को विजयादशमी पर्व मनाया जाएगा
*शारदीय नवरात्र पर्व की पौराणिक कथा-:*
शास्त्रों में नवरात्र पर्व मनाए जाने की दो पौराणिक कथाएं हैं। पहली पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था जो ब्रह्माजी का बड़ा भक्त था। उसने अपने तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न करके
एक वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान में उसे कोई देव,दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य मार ना पाए। वरदान प्राप्त करते ही वह बहुत निर्दयी हो गया
और तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा। उसके आतंक से परेशान होकर देवी देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश
के साथ मिलकर मां शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की
जीत के रूप में मनाया जाता है।
दूसरी पौराणिक कथा के
अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले और रावण के साथ होने वाले युद्ध में जीत के लिए शक्ति की देवी मां भगवती जी की आराधना की थी। रामेश्वरम में उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने श्रीराम को
लंका में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन भगवान राम ने लंका नरेश रावण को युद्ध में हराकर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजयादशमी के रूप में जाना जाता है।
नवरात्र में होती है मां के इन 9 रूपों की पूजा नवरात्र के 9 दिनों में देवी भगवती के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-उपासना की जाती है।पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवें दिन मां स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और नौवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्र के पहले दिन विधिनुसार घटस्थापना का विधान है।धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार, शारदीय नवरात्र भगवती दुर्गाजी की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र के पावन दिनों में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं। नवरात्र का हर दिन देवी के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर देवी स्वरूप की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ पूर्ण होते हैं। नवरात्र का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है।
*इस बार नवरात्रों का विस्तृत विवरण-:*
दिनांक 22 सितंबर दिन सोमवार प्रथम नवरात्र मां शैलपुत्री की पूजा।
23 सितंबर मंगलवार द्वितीय नवरात्र मां ब्रह्मचारिणी की पूजा।
24 सितंबर दिन बुधवार तृतीय नवरात्र मां चंद्रघंटा की पूजा।
25 सितंबर गुरुवार तृतीय नवरात्र मां चंद्रघंटा की पूजा।
26 सितंबर शुक्रवार चतुर्थ नवरात्र मां कुष्मांडा की पूजा।
27 सितंबर शनिवार पंचमी नवरात्र स्कंद माता की पूजा।
28 सितंबर रविवार षष्ठी नवरात्र मां कात्यायनी की पूजा।
29 सितंबर सोमवार सप्तमी नवरात्र कालरात्रि की पूजा।
30 सितंबर मंगलवार अष्टमी नवरात्र मां महा गौरी की पूजा।
तथा दिनांक 1 अक्टूबर 2025 दिन बुधवार को नवमी नवरात्र मां सिद्धिदात्री की पूजा होगी। और दिनांक 2 अक्टूबर 2025 को विजयादशमी पर्व मनाया जाएगा।
*आलेख -: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*

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