*दिनांक 16 अक्टूबर 2023 को होगी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा जानिए कथा शुभ मुहूर्त पूजा विधि एवं महत्व*

*शुभ मुहूर्त*
दिनांक 16 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार को द्वितीय नवरात्र होगा इस दिन द्वितीया तिथि 47 घड़ी 20 पल अर्थात मध्य रात्रि 1:13 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन स्वाति नामक नक्षत्र 33 घड़ी 8 पर अर्थात रात्रि 9:32 बजे तक है। इस दिन विष्कुंभ नामक योग नौ घड़ी 13 पल अर्थात प्रातः 9:58 बजे तक है। यदि इस दिन के करण की बात करें तो बालव नामक करण 16 घड़ी 38 पल अर्थात दोपहर 12:56 बजे तक है। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण तुला राशि में विराजमान रहेंगे।

*मां ब्रह्मचारिणी की कथा*।

नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ‘देवी ब्रह्मचारिणी’रूप की पूजा करने का विधान है। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल है।
शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान
महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।

*ऐसे पड़ा ब्रह्मचारिणी नाम*

हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही
इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। उन्हें
त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। अपनी इस
तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार
रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न
कर लिया। इनके इसी रूप की पूजा और स्तवन दूसरे
नवरात्र पर किया जाता है।
हजारों वर्षों तक की थी मां ने तपस्या, देवी
ब्रह्मचारिणी भगवती दुर्गा की नव शक्तियों में इनका दूसरा रूप माना जाता है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख आया है कि माता ब्रह्मचारिणी पूर्व जन्म में राजा
हिमालय के घर मैना के गर्भ से उत्पन्न हुई। देवर्षि नारद के कहने पर माता ब्रम्हचारिणी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में जाकर हजारों वर्ष
केवल फल का खाकर कठिन तपस्या की। पुनः शिव को विशेष प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मचारिणी ने 3000 वर्ष तक वृक्षों से गिरे सूखे पत्तों को खाकर कठिन
तपस्या की।
ब्रह्मचारिणी मां की उपासना एवं आराधना करने से
भक्तों को अनेक प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती हैं, जैसे
तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार इत्यादि की वृद्धि होती है।
इनकी कृपा से भक्तों को सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती
है एवं जीवन की अनेक प्रकार की परेशानियां भी समाप्त हो जाती हैं। माता ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला, बाएं हाथ में कमंडल। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा निम्न मंत्र के माध्यम से की
जाती है-
*दधाना करप्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।*
*देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।*

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(अर्थात जिनके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे
हाथ में कमण्डल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां
दुर्गा मुझ पर कृपा करें।)

*मां ब्रह्मचारिणी पूजन का महत्व*

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मां ब्रह्मचारिणी ही हैं जो व्यक्ति को मार्ग दिखाती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति में तप, त्याग, सदाचार,
संयम और वैराग्य जैसे गुणों की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कर्तव्य पथ से विचलित
नहीं होता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को हमेशा अपने काम में सफलता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि मां
ब्रह्मचारिणी दुनिया में ऊर्जा प्रवाहित करती हैं।

*इन मंत्रों से करें मां की आराधना*

द्धांना कर पहाभ्यामक्षमाला कमण्डलम।
देवी प्रसीदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ऊं भूर्भुवः स्वः ब्रह्मचारिणी। इहागच्छ इहतिष्ठ। ब्रह्मचारिण्यै
नमः । ब्रह्मचारिणीमावाहयामि स्थापयामि नमः । पाद्यादिभिः
पूजनम्बिधाय।
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम् जपमालाकमण्डलु
धराब्रह्मचारिणी शुभाम् ॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल
परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् ॥।
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम्
कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥।

मां ब्रह्मचारिणी की कृपा हम और आप सभी पर बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ
।।🙏 जय माता दी 🙏।।
लेखक–: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया, नैनीताल।

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