*मात्र देवता ही नहीं अपितु पितृ भी प्रसन्न होते हैं इस एकादशी व्रत से-:*
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार इंदिरा एकादशी व्रत दिनांक 17 सितंबर 2025 दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस एकादशी व्रत की कथा के अनुसार
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी सभी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। इंदिरा एकादशी का व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से नीच योनि में पड़े पितरों को मोक्ष मिलता है। इंदिरा एकादशी के दिन पितरों के नाम से श्राद्ध कर्म करने के साथ-साथ पद्म पुराण में वर्णित इंदिरा एकादशी कथा का पाठ करना चाहिए। हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनें। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है।
*शुभ मुहूर्त-:*
इस बार दिनांक 17 सितंबर 2025 दिन बुधवार को इंदिरा एकादशी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन एकादशी तिथि की बात करें तो 44 घड़ी सात पल अर्थात मध्य रात्रि 11:40 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो पुनर्वसु नामक नक्षत्र एक घड़ी दो पल अर्थात प्रातः 6:26 बजे तक है तदुप्रांत पुष्य नक्षत्र प्रारंभ होगा। यदि योग की बात करें तो परिधि नामक योग 42 घड़ी 15 पल अर्थात रात्रि 10:55 बजे तक है। इस दिन बव नामक करण 14 घड़ी 52 पल अर्थात दोपहर 11:58 बजे तक है। इस दिन संक्रांति पर्व भी मनाया जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कर्क राशि में विराजमान रहेंगे।
*व्रत कथा-:*
प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।
सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।
मैं एक समय ब्रह्मलोक से दमलीक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी धर्मराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने जो संदेश दिया सो में तुमसे कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं। सो हे पुत्र! यदि तुम आश्विन कृष्ण इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमिन करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
इतना सुनकर राजा कहने लगा कि है महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत होकर पुनः दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रातः काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें। फिर प्रतिज्ञा करें कि में आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।
हे अच्युता! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण में हूँ। आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राहाणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रातःकाल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाऐंगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।
नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बन्धु बान्धवों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया।
हे युधिष्ठिर यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते है और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।
*पूजा विधि-:*
इंदिरा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान करें यदि संभव नहीं हो तो स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तुलसी वृंदावन के समीप एक चौका रखें उसे पर पीला वस्त्र बिछाए। तदुपरांत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। उन्हें स्नान कराएं पंचामृत स्नान कराएं पुणे शुद्ध जल से स्नान कराकर होली कुमकुम चढ़ायें अक्षत के स्थान पर जों का प्रयोग करें। ध्यान रहे उस दिन परिवार में कोई भी सदस्य चावल का प्रयोग ना करें। श्री हरि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें। आरती के उपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।
*आलेख -:आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*