दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गए । उनकी सेवानिवृत्ति पर शुक्रवार को सुप्रीम में विदाई समारोह हुआ । साथ ही सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी उन्हें भावपूर्ण विदाई दी ।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, जिनका जन्म 10 अगस्त 1960 को उत्तराखंड के जनपद पौड़ी गढ़वाल के छोटे से गाँव मदनपुर में हुआ ।

 

उनके पिता श्री केशव चंद्र धूलिया इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे, जबकि उनकी माता संस्कृत की प्राध्यापिका थीं। उनके दादा पंडित भैरव दत्त धूलिया स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लिया और सात वर्षों तक जेल में रहे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने कोटद्वार से ‘कर्मभूमि’ नामक हिंदी समाचार पत्र भी प्रकाशित किया।

न्यायमूर्ति धूलिया के दो भाई हैं—प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक तिग्मांशु धूलिया और नौसेना से सेवानिवृत्त अधिकारी हिमांशु धूलिया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून, इलाहाबाद और लखनऊ में प्राप्त की। वर्ष 1981 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और 1983 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद 1986 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री ली।

ALSO READ:  गुड न्यूज -: उत्तराखंड के कथानक व लोकेशन पर बनी हिंदी फिल्म " भेड़िया धसान" का इंटरनेशनल प्रीमियर मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया में होगा ।

न्यायमूर्ति धूलिया  ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में 14 वर्षों तक वकालत की। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद वे नैनीताल उच्च न्यायालय में कार्यरत हुए। उन्हें उत्तराखंड राज्य का पहला चीफ स्टैंडिंग काउंसिल नियुक्त किया गया, तत्पश्चात वे अतिरिक्त महाधिवक्ता भी बने। जून 2004 में उन्हें उत्तराखंड उच्च न्यायालय का वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया।

वर्ष 2008 में वे उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए, जहाँ अपने कार्यकाल में उन्होंने 1119 निर्णय लिखे और कुल 1415 पीठों का हिस्सा रहे। इसके बाद 10 जनवरी 2021 को वे गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। यहाँ एक वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने 81 निर्णय दिए और 110 पीठों में शामिल रहे।

9 मई 2022 को उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम की सिफारिश पर हुई थी।

 

चंदर भान बनाम मुख्तियार सिंह (2024): इसमें उन्होंने ‘लिस पेंडेंस’ के सिद्धांत और संपत्ति के अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि धारा 52 तकनीकी रूप से लागू न हो, फिर भी यह सिद्धांत प्रभावी रहेगा।

ALSO READ:  मौसम अलर्ट-: 4 व 5 अगस्त को भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट । राज्य आपदा प्रबंधन परिचालन केंद्र ने जारी की एडवाईजरी ।

प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024): नौ-सदस्यीय संविधान पीठ में उन्होंने अल्पमत में रहते हुए निजी संपत्ति को ‘सामुदायिक संसाधन’ मानने की वकालत की और कहा कि इसका व्यापक अर्थ निकाला जाना चाहिए।

आयशा शिफा बनाम कर्नाटक राज्य (2022): कर्नाटक सरकार द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर दिए गए विभाजित निर्णय में उन्होंने हिजाब को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आस्था और अभिव्यक्ति का विषय बताते हुए प्रतिबंध को असंवैधानिक ठहराया।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया का न्यायिक जीवन निष्पक्षता, संवेदनशीलता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा है। उत्तराखंड की धरती से निकलकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक की उनकी यात्रा, न केवल युवाओं के लिए प्रेरणा है बल्कि भारतीय न्यायपालिका के उज्ज्वल भविष्य की दिशा भी है। उनके द्वारा दिए गए निर्णय आने वाले वर्षों तक न्यायिक दृष्टिकोण को दिशा देंगे।

 

By admin

"खबरें पल-पल की" देश-विदेश की खबरों को और विशेषकर नैनीताल की खबरों को आप सबके सामने लाने का एक डिजिटल माध्यम है| इसकी मदद से हम आपको नैनीताल शहर में,उत्तराखंड में, भारत देश में होने वाली गतिविधियों को आप तक सबसे पहले लाने का प्रयास करते हैं|हमारे माध्यम से लगातार आपको आपके शहर की खबरों को डिजिटल माध्यम से आप तक पहुंचाया जाता है|

You cannot copy content of this page