दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि एलोपैथी डॉक्टरों और आयुर्वेद डॉक्टरों को समान वेतन के हकदार होने के लिए समान कार्य करने वाला नहीं माना जा सकता। एलोपैथी डॉक्टर आपातकालीन ड्यूटी करने में सक्षम हैं और जो ट्रॉमा देखभाल करने में सक्षम हैं, लेकिन आयुर्वेद डॉक्टर ऐसा नहीं कर सकते। आयुर्वेद डॉक्टरों के लिए जटिल सर्जरी करने वाले सर्जनों की सहायता करना संभव नहीं है, जबकि एमबीबीएस डॉक्टर ऐसा कर सकते हैं।
डॉ0 पी ए भट्ट बनाम गुजरात राज्य सम्बन्धी याचिका की सुनवाई में न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यम व न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की खंडपीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि मेडिसिन और सर्जरी में बैचलर ऑफ आयुर्वेद की डिग्री रखने वाले डॉक्टरों को एमबीबीएस की डिग्री रखने वाले डॉक्टरों के बराबर माना जाना चाहिए और वे टिक्कू वेतन आयोग की सिफारिश के लाभ के हकदार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-::
“हमारा मतलब यह नहीं समझा जाए कि एक मेडिसिन सिस्टम दूसरे से बेहतर है। चिकित्सा विज्ञान की इन दो प्रणालियों के सापेक्ष गुणों का आकलन करना हमारा अधिकार नहीं है और न ही हमारी क्षमता के भीतर है।
“इसलिए, हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि चिकित्सा की हर वैकल्पिक प्रणाली का इतिहास में अपना गौरवपूर्ण स्थान हो सकता है। लेकिन आज, स्वदेशी चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक जटिल सर्जिकल ऑपरेशन नहीं करते हैं। आयुर्वेद का एक अध्ययन उन्हें इन सर्जरी को करने के लिए अधिकृत नहीं करता है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पोस्टमॉर्टम या ऑटोप्सी में आयुर्वेद डॉक्टरों की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। शहरों/कस्बों के सामान्य अस्पतालों में बाह्य रोगी दिनों (ओपीडी) के दौरान, एमबीबीएस डॉक्टरों को सैकड़ों रोगियों की देखभाल करनी पड़ती है, जो आयुर्वेद डॉक्टरों के मामले में नहीं है।