नैनीताल । अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नैनीताल प्रथम संजीव कुमार की अदालत ने एक हत्यारोपी को हत्या करने का दोषी ठहराते हुए उसे आजीवन कठोर कारावास व 10 हजार रुपये अर्थदण्ड की सजा सुनाई है ।
अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता राम सिंह रौतेला ने कोर्ट को बताया कि वादी मुकेश चंद्र निवासी ग्राम महतौली, पट्टी पतलिया भीड़ापानी,धारी ने 29 जनवरी 2022 को मुक्तेश्वर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उसके छोटे भाई सोहन कुमार (सोनू) 26 जनवरी को गांव में ही एक बर्थ डे पार्टी में गया था । सोहन कुमार, पार्टी के बाद महेंद्र प्रसाद और कुछ अन्य लोगों के साथ रात्रि में घर को लौटा। लेकिन वह घर नहीं पहुंचा और 27 जनवरी 2022 की सुबह उसकी लाश गांव के रास्ते में मिली। जिसके शरीर पर चोट के निशान थे, जिससे हत्या का संदेह हुआ। वादी मुकेश चंद्र ने महेंद्र प्रसाद पर पुरानी रंजिश के कारण सोहन की हत्या करने का आरोप लगाया। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जाँच शुरू की।
सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने 15 गवाहों को कोर्ट में पेश किया। गवाहों ने पुष्टि की कि जन्मदिन की पार्टी में महेंद्र प्रसाद और सोहन कुमार के बीच ताश खेलने को लेकर झगड़ा हुआ था। इसके अलावा, जब वे सब वापस लौट रहे थे, तो रास्ते में भी दोनों के बीच झगड़ा हुआ।
कई गवाहों ने यह भी बताया कि उन्होंने आखिरी बार सोहन कुमार को महेंद्र प्रसाद के साथ एक अलग रास्ते से जाते हुए देखा था। पुलिस ने महेंद्र प्रसाद की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल किया गया गमछा और एक पत्थर बरामद किया। फॉरेंसिक जाँच में, मृतक की टी-शर्ट और गमछे पर मिला डीएनए और फाइबर महेंद्र प्रसाद के डीएनए से मेल खाया। साथ ही, घटना के समय दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन भी एक ही जगह पर पाई गई।
बचाव पक्ष के वकील ने आरोपों को खारिज करने की कोशिश की, उन्होंने तर्क दिया कि शिकायत दर्ज करने में देरी हुई थी । घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं था और बरामद किए गए सबूतों में भी खामियां थीं।
सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता राम सिंह रौतेला ने अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए बताया कि शिकायत में देरी का कारण राजस्व क्षेत्र की घटना होना और अंतिम संस्कार की व्यस्तता थी, और परिस्थितिजन्य साक्ष्य की हर कड़ी पूरी तरह से साबित हुई थी। दोनों पक्षों की दलीलों के आधार पर कोर्ट ने आरोपी महेंद्र प्रसाद को धारा 201 (साक्ष्य छुपाने) के आरोप से बरी कर दिया गया, क्योंकि यह साबित नहीं हो पाया था कि शव को छिपाने का प्रयास किया गया था।
जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या)के तहत दोषी ठहराया और उसे आजीवन कठोर कारावास की सजा व 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया ।