*देवभूमि में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है विषुवत संक्रांति*
14 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी विषुवत संक्रांति।
वर्ष का प्रारंभ यद्यपि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही होता है तथापि सौरमास क्रम में मेष संक्रांति के वर्ष का प्रारंभ होना उससे कम महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। इस दिन सूर्य देव 12 राशियों को पूर्ण करके पुनः मेष राशि में प्रवेश करते हैं। जिस प्रकार वर्ष अनेक राशियों के लिए अपैट (चंद्र बल) ठीक नहीं होता है ठीक इसी प्रकार विषुवत संक्रांति के आधार पर सौर वर्ष के अनुसार भी कई राशियों के लिए वर्ष ठीक नहीं होता है। प्राय: रोग व्याधियां उस राशि के लिए प्रभावी होती है। सामान्य भाषा में उसे “विषुवत संक्रांति बाएं पैर जाना” कहते हैं। प्रत्येक वर्ष 27 नक्षत्रों में से तीन नक्षत्रों की स्थिति बाएं पैर में होती है। इसी क्रम में इस बार जिन तीन नक्षत्रों की स्थिति बाएं पैर में है वह तुला राशि एवं वृश्चिक राशि के तीन नक्षत्र विशाखा, अनुराधा, और जेष्ठा नामक नक्षत्र हैं। अतः इन राशियों के जातकों को विश्वत संक्रांति अर्थात 14 अप्रैल को चांदी के बाएं पैर की आकृति, सफेद वस्त्र, चावल, दही, दूध चीनी आदि सफेद वस्तुएं दक्षिणा सहित दान करनी चाहिए। ऐसा करने से रोग व्याधियां उक्त वर्ष के लिए कम प्रभावी होती हैं।
विषुवत संक्रांति के दिन प्रत्येक व्यक्ति बूढ़े बच्चे रोगी आदि सभी को स्नान करना अनिवार्य होता है शरीर के जिस भाग में जल न पहुंचे वहां विष पैदा होता है ऐसी एक धारणा है। स्वस्थ व्यक्ति को यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदियां या जल स्रोत में स्नान करना चाहिए यदि संभव न हो सके तो स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर या स्वर्ण स्पर्श किया गोमूत्र युक्त जल से स्नान करना चाहिए। इस दिन शरीर के किसी भी भाग में तेल का उपयोग करना वर्जित है इससे भी विष पैदा होता है यह भी एक धारणा है। इस दिन कुमाऊं के कई भागों में लोहे की गरम शलाका शरीर में लगाने का विधान है। ऐसा करने से शरीर का विष नष्ट होता है।
आलेख के लेखक-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।