(एस आर चन्द्रा)भिकियासैंण। हिन्दी – संस्कृत शिक्षण मंच ने राजकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में द्वितीय राजभाषा संस्कृत के एल टी और प्रवक्ता संवर्ग में शिक्षकों के पद सृजन पूर्व की भांति करने की माँग की है। इस क्रम में मंच के प्रान्त संयोजक बालादत्त शर्मा , पत्रजात समिति प्रमुख डॉ0 हरिशंकर डिमरी , डॉ0 दीपक नवानी और द्वारिका प्रसाद पुरोहित ने देहरादून में विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक  वंशीधर तिवारी को पुनः ज्ञापन सौंपा है,लेकिन सरकार द्वारा अभी तक अमल में नहीं लाया गया है । मंच ने पूर्व में भी सभी जनपद संयोजकों-सह संयोजकों द्वारा 13 मुख्य शिक्षाधिकारियों के माध्यम से माध्यमिक शिक्षा निदेशक को ज्ञापन प्रेषित किए थे। महानिदेशक ने शिष्टमंडल को अवगत कराया कि मंच की मांग के अनुरूप संस्कृत शिक्षकों के पदसृजनपूर्वक नियुक्तियों के प्रस्ताव को पूर्व में ही शासन को भेजा जा चुका है।
“मंच” ने जनवरी 2021 से लगातार संस्कृत शिक्षकों की मांग के सम्बन्ध में राज्य के अनेक विधायकों , मंत्रियों , शिक्षामंत्री और  तत्कालीन मुख्यमंत्रियों त्रिवेन्द्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी  सहित , राजकीय शिक्षक संघ , संस्कृत भारती, संस्कृत अकादमी , केन्द्रीय शिक्षामंत्री , प्रधानमंत्री तक को पत्र प्रेषित कर चुका है ।
गतवर्ष 23 सितम्बर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संस्कृत शिक्षकों की नियुक्तियों की घोषणा की थी । किन्तु शासनादेश निर्गत नहीं हुआ और विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से मामला ठण्डे बस्ते में चला गया।
संस्कृत शिक्षकों के पदसृजन में हो रहे बिलम्ब से निराश मंच सदस्यों ने पुनः अधिकारियों / विधायकों/मन्त्री/ मुख्यमन्त्री को ज्ञापन देकर द्वितीय राजभाषा संस्कृत की अवधारणा को पूर्ण करवाने हेतु मुहिम छेड़ी हुई है।

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मंच के पदाधिकारियों का कहना है कि जब सरकार द्वितीय राजभाषा संस्कृत के शिक्षण कार्य हेतु शिक्षकों की व्यवस्था ही नहीं कर सकती है तो, द्वितीय राजभाषा बनाए जाने का ढिंढोरा क्यों पीटती रहती है ? यह देवभाषा संस्कृत , देवभूमि उत्तराखंड और भारतीय संस्कृति की उपेक्षा है।इस उपेक्षा को संस्कृतज्ञ जन सहन नहीं करेंगे ।
उन्होंने कहा उत्तराखंड सरकार संस्कृत विभाग और संस्कृत मंत्रालय के नाम पर जो भी विकास योजनाएं बना रही हैं , उसका लाभ राज्य के संस्कृत विद्यालयोँ और महाविद्यालयों को भले ही मिल रहा हो , लेकिन उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद” के 95 प्रतिशत विद्यालयोँ में एल टी और प्रवक्ता संस्कृत के शिक्षकों के पद ही सृजित नहीं हैं। अन्य असंगत विषयों के शिक्षकों द्वारा काम चलाऊ व्यवस्था के तौर पर संस्कृत पढ़ाई का कार्य कर रही है,जिससे छात्रों को न तो पूर्ण विषय ज्ञान मिलता है और न संस्कृत के प्रति छात्रों की अभिरुचि उत्पन्न हो रही है।

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उत्तराखंड के बाद हिमाचल प्रदेश देश का दूसरा राज्य है जिसने संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी किन्तु वहाँ माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में पाठ्यक्रम में लागू है और शिक्षकों के पद सृजित और नियुक्तियाँ होते रहते हैं।
उत्तराखंड सरकार को इस मांग को संज्ञान में लेते हुए सकारात्मक कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया गया है ।

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