देवभूमि उत्तराखंड का प्रमुख त्यौंहार( घ्यू त्यार)घी संक्रांति या सिंह संक्रांति या ओलगिया ।


शुभ मुहूर्त —
इस बार दिनांक 17 अगस्त 2023 दिन गुरुवार को सिंह संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 घड़ी 38 पल अर्थात शाम 5:35 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन मघा नक्षत्र 35 घड़ी 28 पल अर्थात शाम 7:55 बजे तक है। यदि संक्रांति प्रवेश की बात करें तो इस दिन दोपहर 1:32 बजे सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करेंगे।

देवभूमि उत्तराखंड जहां हरेला पर्व से लगभग त्योहारों की झड़ी सी लग जाती है। सावन मास के बाद फिर जब भादो मास के पहले दिन यानी एक पैट (एक गते) भादो को एक ऐसा त्यौहार भी है जिस दिन पारंपरिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति को घी खाना नितांत आवश्यक है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन घी का सेवन नहीं करेगा वह अगले जन्म में घोंघा (जिसे कुमाऊंनी में गनेल कहते हैं) की योनि को प्राप्त होता है। यह एक किंवदंती है।इस दिन भगवान सूर्य देव 12 राशियों में से कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं। यहां लोक पर्व के साथ-साथ अनेकों मान्यताएं भी जुड़ी हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि इन्हें न माना जाए तो व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मेरा भी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इन मान्यताओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि परंपराओं को कुछ सोच समझकर ही बनाया गया होगा। जिन मान्यताओं में से कुछ इस प्रकार से हैं। घी खाने की परंपरा संभवतः गर्मी व बरसात के मौसम में खानपान को लेकर कुछ परहेज किया जाता था। बरसात जाने के बाद नया मौसम आने पर अपने खाने की इच्छाएं पूरी करने के लिए संभवतः घी के पकवान खाए जाते थे। किसान लोग अपने घर के दरवाजे पर गाय का गोबर चिपकाते हैं ऐसा करना शुभ माना जाता है। बड़े बुजुर्गों का मानना है कि अखरोट के फल का सेवन घी संक्रांति के दिन से ही किया जाता है । घ्यूत्यार को लेकर एक पौराणिक मान्यता है कि इस दिन घी का सेवन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी लाभ होता है। राहु और केतु ग्रह का व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि व्यक्ति सकारात्मक सोच रखते हुए जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ता है।
इसी दिन से पिनालू (अरबी) के गाबे मंदिरों में चढ़ने के उपरांत इस दिन से इसकी सब्जी बनाने की शुरुआत होती है। घ्यूत्यार के दिन नये बनने वाले व्यंजनों मैं सबसे मुख्य है (मांसक बेडु रोट) उड़द दाल से निर्मित मोमनदार रोटी। यह उड़द की दाल को लगभग 6 घंटे पानी में भिगोकर बाद में साफ करके सिलबट्टे में पीसकर बनाई जाती है। इसे घी और गाबे की सब्जी के साथ खाने का आनंद ही कुछ और है। यह बहुत शुभ भी माना जाता है। घ्यूत्यार के दिन घी खाने के अतिरिक्त शरीर के अंगों में जैसे कुहनी घुटने आदि में लगाना भी बुजुर्ग लोग बताते हैं। यदि बात करें ग्रंथों की तो चरक संहिता के अनुसार भी घी खाने से अनेक लाभ हैं। इससे शरीर की अनेक व्याधियां दूर होती हैं। उदाहरणार्थ कफ पित्त दोष तो दूर होते ही हैं बुद्धि भी तीव्र होती है। इसके अतिरिक्त इससे स्मरण शक्ति भी बढ़ती है। वेद पुराणों में भी घी के बिना कोई कार्य संपूर्ण नहीं होता है। यज्ञ में भी घी की आहुति देना आवश्यक है। पंचामृत एवं पंचगव्य में गाय के घी को निम्न मंत्रोचार के साथ किया जाता है-
ॐ घृतं घृत पावन: पिबतान्तरिक्ष स्य: हविरसि स्वाहा।
अतः पाठकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि हमें अपनी संस्कृति विलुप्त होने से बचाएं। एवं इन लोक पर्वों को हर्षोल्लास के साथ मनाएं।कम से कम वर्ष के तीज त्यौहार के दिन अपनी संस्कृति के अनुसार तो घर में पकवान बनाएं।
अतः सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि फास्ट फूड का प्रयोग कम से कम करें और अपनी संस्कृति से संबंधित पकवानों को एहमियत दें। ऐसा करने से हमारी संस्कृति जिंदा रहेगी।
इसी संदर्भ में मैं अपनी स्वरचित कुमाऊंनी कविता के कुछ लाइनें लिख रहा हूं। इसमें जो भी कुछ भूल चूक रहे उसके लिए क्षमा चाहता हूं।

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*जनश्रुति छू यो झन समझ्या खेल।*
*घ्यू निखलात् अघिल जनम बनला गनेल।।*
*संस्कृति तो भुली गयीं पहाड़ाक लोग आब।*
*खानपान ले भुलि गयीं, भुलिगयीं पिनालुक गाब।।*
*मैगी नूडल्स चाउमिन मोमो, और मंगुनी पिज्जा।*
*मांसक बेडु रोट क्य हुं, भुलिगै खिमुलिक ईज्जा।।*
*फास्ट फूड खराब हुं,आजिले नि समझि लोग।*
*चारों तरफ फैलि रैयीं,छनि बनिका रोग।।*
✍️लेखक-:  पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया नैनीताल।

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