नैनीताल ।  नैनीताल पीपुल्स फोरम द्वारा नगरपालिका हॉल, नैनीताल में “उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जोशीमठ भू-धंसाव के मायने” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने कहा कि, “पूरा हिमालय विकास के मौजूदा ढांचे के तले कराह रहा है। लेकिन जोशीमठ जैसी तमाम चेतावनियों मिलने के बाद भी हमारी सरकारें कुंभकर्णी निंद्रा में सोई हुई हैं।”
उन्होंने कहा कि, यह सिर्फ जोशीमठ का सवाल नहीं है, विकास का जिस तरह का ढांचा पूरे हिमालय में बनाया जा रहा है, यह खतरा सभी जगह है।  चारधाम यात्रा मार्ग , रेलवे की सुरंग और जल विद्युत परियोजनाओं के जाल ने पूरे क्षेत्र को खतरे में धकेल दिया है। जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है । इन योजनाओं के निर्माण से प्रकृति, पर्यावरण और पारिस्थितिकी का विनाश तो हो ही रहा है यह आने वाली पीढ़ी के भी अस्तित्व पर का संकट खड़ा कर रहा है। सम्पूर्ण हिमालय जो कि बहुत ही संवेदनशील है, कमज़ोर है, साथ ही जैव विविधता का खजाना है सारी मानवता की धरोहर है। इसका संरक्षण सभी की जिम्मेदारी है और मानवता के अस्तित्व के लिए भी यह आवश्यक है ।
इसी परिपेक्ष्य में जोशीमठ के संकट को भी देखा जाना चाहिए।”
अतुल सती ने कहा कि, “उत्तराखंड का अधिकांश पहाड़ी क्षेत्र आपदा के साए में है। उत्तरकाशी से लेकर धारचुला तक उत्तराखंड का संपूर्ण पहाड़ी क्षेत्र आज संकट की स्थिति में है, नैनीताल शहर की स्थिति भी अलग नहीं है, बलियानाला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। नैनीताल में जिस तरह के हालात पैदा कर दिए गए हैं उसके चलते यह पहाड़ी नगर अब इस दबाव को सहने में सक्षम नहीं है।”
विशिष्ट अतिथि भूगर्भ शास्त्री प्रो चारू पंत ने कहा कि, “भूगर्भीय दृष्टि से दुनिया के सबसे नए पहाड़ हिमालय को कम से कम छेड़छाड़ की जरूरत है। लेकिन हिमालय पर हमने अतिरिक्त दबाव पैदा कर उसकी पूरी संरचना को ही बदलने की दिशा में धकेल दिया है। इसके विकल्प में छोटे छोटे नगर बनाए जाने चाहिए जिनमें 3000 से अधिक आबादी न हो।”
भाकपा माले राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि, “सबसे बड़ा सवाल है कि परियोजनाओं से विकास किसका होगा और उजड़ेगा कौन। क्या दोनों पक्ष एक ही हैं, बिल्कुल नहीं। विकास बड़े पूंजीपतियों का और उजड़ने वाले गरीब ग्रामीण मजदूर किसान। मुनाफा किसी का और कीमत चुकाए कोई और। इसी तरह की प्रक्रिया की कीमत जोशीमठ और उत्तराखण्ड का संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र उठा रहा है।”
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रसिद्ध इतिहासकार पद्मश्री प्रो. शेखर पाठक ने कहा कि,
“जोशीमठ उत्तराखण्ड हिमालय की सबसे पुरानी बसासतों में से एक है। लेकिन हिमालयी विकास के मौजूदा मॉडल ने एक सबसे पुराने पर्वतीय नगर को खतरनाक संकट के मुहाने पर पहुंचा दिया है। जोशीमठ के सबक हमारे लिए यही हैं कि हिमालयी क्षेत्र में विकास की नीति को नए सिरे से तैयार करने के लिए खुले दिल से व्यापक विचार विमर्श में जाएं और यहां की संवेदनशील परिस्थितियों के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं।”
संगोष्ठी में प्रतिभाग करने वाले कई नागरिकों ने जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती से जोशीमठ आपदा के कई पहलुओं पर अपनी जिज्ञासा, प्रश्न रखे जिसका उनके द्वारा विस्तृत रूप से जवाब दिया गया।
 वक्ताओं में विशिष्ट अतिथि भूगर्भ शास्त्री प्रो. चारू पंत, प्रो. उमा भट्ट, नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह, भाकपा माले राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी, वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. अजय रावत, सद्भावना समिति हल्द्वानी के अखलाख, प्रो. कविता पाण्डे आदि शामिल रहे। इनके अतिरिक्त संगोष्ठी में  प्रो0शीला रजवार, वरिष्ठ रंगकर्मी जहूर आलम, विनोद पांडे,भारती जोशी, समाजसेवी इस्लाम हुसैन, एडवोकेट दुर्गा सिंह मेहता,बलिया नाला संघर्ष समिति के अध्यक्ष डी एन भट्ट, माले जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय, एडवोकेट नवनीश नेगी, माया चिलवाल, प्रो. एम सी जोशी, प्रो. रमेश चंद्रा, विनीता यशस्वी, आइसा जिला अध्यक्ष धीरज कुमार, पंकज भट्ट, भूमिका, इंदर नेगी, हेमा उनियाल, महेश जोशी, श्रुति, सीमांतिका, प्रभात पाल, मेधा पांडे, रोहित आदि मुख्य रूप से शामिल रहे। संगोष्ठी का संचालन एडवोकेट कैलाश जोशी ने किया।

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